क्या मोदी ने नेहरू की चिट्ठी को तोड़-मरोड़ कर  पेश किया, उस पर यू-टर्न लिया?

05:02 pm Feb 07, 2020 | प्रमोद मल्लिक - सत्य हिन्दी

क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने असम के पहले मुख्यमंत्री गोपीनाथ बरदोलोई को लिखी नेहरू की चिट्ठी को परिप्रेक्ष्य से काट कर और ग़लत ढंग से पेश किया है क्या इस मुद्दे पर बीजेपी और मोदी ने बिल्कुल यू-टर्न लिया है। क्या बीजेपी ने असम चुनाव के समय इस चिट्ठी को जिस रूप में उद्धृत किया था, अब उसी चिट्ठी को बिल्कुल उसके उलट रूप से पेश कर रही है

मोदी ने संसद में कहा कि नेहरू ने गोपीनाथ बरदोलोई को लिखी चिट्ठी में कहा था कि हिन्दू शरणार्थियों को मुसलिम विस्थापितों पर तरजीह दी जाए क्योंकि पूर्वी पाकिस्तान में उन पर अविश्वसनीय उत्पीड़न हुआ है।

नेहरू की चिट्ठी

दरअसल, मोदी ने नेहरू की जिस चिट्ठी का हवाला दिया है, उसे सबसे पहले 2006 में बीजेपी के तत्कालीन असम अध्यक्ष सिद्धार्थ भट्टाचार्य ने सार्वजनिक किया था। उनके पिता गौरीशंकर भट्टाचार्य गोपीनाथ बरदोलोई के बेहद क़रीबी थे। सिद्धार्थ भट्टाचार्य ने दावा किया था कि उन्हें यह चिट्ठी अपने पिता की संजोई हुई चीजों के बीच मिली।

असम के विधानसभा चुनाव के समय बीजेपी ने यह मुद्दा उठाया था कि गोपीनाथ बरदोलोई पूर्वी पाकिस्तान से आने वाले बांग्लाभाषी शरणार्थियों को राज्य में बसाने के पक्षधर नहीं थे क्योंकि उनका मानना था कि इससे असमिया पहचान को ख़तरा था।

लेकिन नेहरू ने बरदोलोई पर दबाव डाला था कि इन बांग्लाभाषी हिन्दुओं को बसाया जाए, क्योंकि पूर्वी पाकिस्तान में उनके साथ उत्पीड़न हुआ है।

बीजेपी का रवैया

सिद्धार्थ भट्टाचार्य ने चुनाव प्रचार के दौरान कहा था, ‘इस चिट्ठी से यह साफ़ होता है कि कांग्रेस शुरू से ही बाहर से आए शरणार्थियों को असम में बसाने के पक्ष में थी।’ लेकिन गोपीनाथ बरदोलोई इसके ख़िलाफ़ थे और उन्होंने राज्य विधानसभा में कहा था, ‘असम, असमियों के लिए है।’

 सत्य हिन्दी ने पड़ताल करने पर पाया कि सजल नाग नामक लेखक ने ‘नेहरू एंड नॉर्थ ईस्ट’ नाम से जो किताब लिखी थी, उसमें भी बरदोलोई-नेहरू के बीच हुई ख़तो-किताबत का ज़िक्र है। 

बरदोलोई की चिट्ठी

विभाजन के समय पूर्वी पाकिस्तान से बड़ी तादाद में बांग्ला भाषी शरणार्थी असम में घुस आए। स्थानीय जनता का सरकार पर दबाव था कि इन लोगों को यहाँ न बसाया जाए। गोपीनाथ बरदोलोई भी इतनी बड़ी तादाद में बांग्ला भाषियों को असम में बसाने के पक्ष में नहीं थे, पर वह इसे रोक भी नहीं पा रहे थे।

‘नेहरू एंड नॉर्थ ईस्ट’ पुस्तक के मुताबिक़, मार्च 1947 से ही पूर्वी पाकिस्तान (बांग्लादेश) से बड़ी तादाद में बांग्ला भाषी असम आने लगे थे। अगले तीन साल यानी 1950 तक बांग्लादेश से 2.50 लाख से ज़्यादा लोग असम में दाखिल हो चुके थे। इससे गोपीनाथ बरदोलोई परेशान थे। 

केंद्रीय पुनर्वास मंत्री मोहनलाल सक्सेना की अगुआई में बनी एक कमेटी 1949 में असम गई और राज्य सरकार से कहा कि इन लोगों को असम में बसाया जाना चाहिए। पर गोपीनाथ बरोदोलोई ने कह दिया कि उन्हें बसाने के लिए पर्याप्त ज़मीन नहीं है। उन्होंने इस पर नेहरू को एक चिट्ठी भी लिखी।

नेहरू ने बरदोलोई को लिखी चिट्ठी में कहा : 

‘आप कह रहे हैं कि असम में ज़मीन नहीं है, लेकिन देश के दूसरे हिस्सों तो ज़मीन की और कमी है, रेगिस्तान और जंगल को छोड़ कर तमाम इलाक़े घनी आबादी वाले हैं। यदि हर प्रांत इसी तरह की बातें करने लगे तो हम इन शरणार्थियों को कहाँ ले जाएंगे क्या हम उन्हें देश के बाहर खदेड़ दें या भूखों मरने के लिए छोड़ दें’


जवाहरलाल नेहरू, प्रथम प्रधानमंत्री

मुसलमानों को तरजीह

‘नेहरू एंड नॉर्थ ईस्ट’ में सजल नाग लिखते हैं : यह अफ़वाह उड़ रही थी कि बरदोलोई बांग्ला भाषी हिन्दुओं की तुलना में मुसलमानों को तरजीह दे रहे थे क्योंकि मुसलमान स्थानीय भाषा-संस्कृति के तेजी से अपनाने लगे थे, जबकि हिन्दू ख़ुद को श्रेष्ठ समझते थे। 

इस किताब के मुताबिक़, नेहरू तक यह बात पहुँची तो उन्होंने गोपीनाथ बरदोलोई को लिखा, ‘भारत की तीन बड़ी समस्याओं में एक शरणार्थियों से जुड़ी समस्या है। यह हमारी वित्तीय संस्थानों के इस्तेमाल से भी जुड़ा हुआ है। हमारी विकास योजनाएं कुछ हद तक उन्हें ध्यान में रख कर बनाई जा रही हैं। यदि असम शरणार्थियों की समस्या में मदद करने से इनकार करता है तो उसे वित्तीय मदद मिलने में भी दिक्क़त हो सकती है।’

ज़ाहिर है, नेहरू इस पर कड़ा रुख अपना रहे थे और एक तरह से असम को वित्तीय सहायता बंद या कम करने की चेतावनी भी दे रहे थे।

गोपीनाथ बरदोलोई का मानना था कि हिन्दुओं की तुलना में मुसलमान ज़्यादा तेजी से कांग्रेस से जुड़ रहे हैं और वे स्थानीय भाषा-संस्कृति को अपना रहे हैं। उन्होंने नेहरू को लिखी चिट्ठी में कहा : 

‘उन्होंने राज्य की स्थानीय भाषा को सीख लिया है और सहयोग कर रहे हैं। उनके ऐसा करने के पीछे के मंसूबे का पता अभी नहीं चला है, पर सरकार और प्रशासन भेदभाव नहीं कर सकता है। हमारी सरकार दूसरे प्रातों की सरकार की तरह ही शरणार्थी समस्या पर काम कर रही है।’


गोपीनाथ बरदोलोई, असम के प्रथम मुख्यमंत्री

नेहरू के कहने का मतलब

क्या नेहरू ने असम के मुख्यमंत्री को हिन्दू शरणार्थियों को तरजीह देने की बात इसी परिप्रेक्ष्य में कही थी, सवाल यह है।

सजल नाग की किताब से यह संकेत ज़रूर मिलता है कि नेहरू हिन्दू-मुसलमान भेदभाव के ख़िलाफ़ थे, वह यह नहीं चाहते थे कि असम में हिन्दुओं के साथ किसी तरह का भेदभाव हो।

अब बात करते हैं बीजेपी के यू-टर्न करने की। बेजीपी ने पहले नेहरू पर यह आरोप लगाया था कि वह असम में पूर्वी पाकिस्तान से आए शरणार्थियों को बसाना चाहते थे जबकि बरदोलोई इसके ख़िलाफ़ थे क्योंकि वे असमिया पहचान पर उन्हें ख़तरा माने रहे थे। वह एक तरह से नेहरू पर पूर्वी पाकिस्तान से आए लोगों को समर्थन देने और इस तरह असमिया पहचान के लिए ख़तरा पैदा करने का आरोप लगा रही थी।

अब वही बीजेपी कह रही है कि नेहरू पूर्वी पाकिस्तान से आए हिन्दुओं को तरजीह देना चाहते थे, क्योंकि उनके साथ उत्पीड़न हुआ था।

नेहरू के ख़िलाफ़ बीजेपी का प्रचार कुछ नया नहीं है। असम में बीजेपी की लाइन यह थी कि कांग्रेस ने असम के बेटे और असमिया पहचान के प्रतीक गोपीनाथ बरदोलोई की उपेक्षा की। मोदी ने खुले आम आरोप लगाया था कि कांग्रेस पार्टी एक परिवार से बाहर किसी को मानती ही नहीं है।

लेकिन संसद में जब मोदी ने नेहरू को उद्धृत किया तो वह जानबूझ कर इस बात को छुपा ले गए कि बरदोलोई मुसलमानों को तरजीह दे रहे थे और इसलिए नेहरू को हस्तक्षेप करना पड़ा। उन्होंने नेहरू की चिट्ठी के एक अंश का इस्तेमाल नागरिकता संशोधन क़ानून को उचित ठहराने के लिए किया और सवाल दाग दिया कि क्या इस वजह नेहरू को भी सांप्रदायिक कहा जा सकता है। मोदी की मंशा साफ़ है।