कांग्रेस और प्रशांत किशोर के बीच बातचीत क्यों नाकाम हुई?

09:52 pm Apr 26, 2022 | सत्य ब्यूरो

कांग्रेस और चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर के बीच बात क्यों नहीं बनी? वह भी तब जब कहा जा रहा था कि कांग्रेस को जितनी ज़रूरत पीके की है उतनी ही पीके को भी कांग्रेस जैसी पार्टी की ज़रूरत है! तो सवाल है कि आख़िर इसके पीछे की वजह क्या थी? क्या कांग्रेस नेताओं का अड़ियल रुख या फिर प्रशांत किशोर का तेलंगाना में केसीआर के साथ अनुबंध करना? या फिर उनके बीच में विचारधारा की दिक्कतें हैं?

प्रशांत किशोर ने जिन वजहों को बताते हुए कांग्रेस में शामिल होने से इनकार किया है वह वजह ऐसी है जिसे दूर करना मुश्किल नहीं था। रिपोर्ट है कि प्रशांत किशोर कांग्रेस में आमूल-चूल बदलाव चाहते थे और इसके लिए खुली छूट चाहते थे। लेकिन माना जा रहा है कि कांग्रेस इसके पक्ष में नहीं थी और वह चाहती थी कि एक-एक कर बदलाव किए जाएँ। क्या यह इतना मुश्किल था कि इस पर बात न बन पाए या फिर कुछ और वजह थी?

इसे ठीक से समझना हो तो दोनों तरफ़ से इस बातचीत की गंभीरता को महसूस कीजिए। पिछले कुछ हफ़्तों से कांग्रेस के आलाकमान और प्रशांत किशोर के बीच बातचीत की रिपोर्टें आ रही थीं। सोनिया गांधी से ही कई दौर की बातचीत हुई। कांग्रेस में कमेटी गठित की गई। प्रशांत किशोर से मुलाक़ात को सोनिया गांधी ने अपने तक ही सीमित नहीं रखा, बल्कि कई वरिष्ठ नेताओं से उनकी बातचीत कराई। प्रशांत किशोर भी पिछले कुछ हफ्तों से प्रजेंटेशन देने से लेकर कांग्रेस नेताओं से बातचीत में व्यस्त रहे। हालाँकि इसका कोई नतीजा नहीं निकल पाया।

इसका नतीजा नहीं निकल पाने के लिए क्या दोनों में से कोई एक पक्ष ज़िम्मेदार है? कांग्रेस की तरफ़ से रणदीप सुरजेवाला ने ट्वीट किया कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने पार्टी में 2024 लोकसभा चुनावों के लिए एक एम्पावर्ड एक्शन ग्रुप बनाकर प्रशांत किशोर को उसका सदस्य बनाकर पार्टी में शामिल होने का प्रस्ताव दिया लेकिन प्रशांत किशोर ने इनकार कर दिया। उन्होंने आगे प्रशांत किशोर की इस प्रयास के लिए तारीफ़ की।

बातचीत विफल होने को लेकर प्रशांत किशोर ने भी ट्वीट कर कहा है कि कांग्रेस में गहराई तक जड़ें जमा चुकीं सांगठनिक समस्याओं को परिवर्तनकारी सुधारों के ज़रिए सुलझाने के लिए मुझसे ज़्यादा पार्टी को नेतृत्व और सामूहिक इच्छाशक्ति की ज़रूरत है। 

दोनों के बयानों को पढ़ने से साफ़ तौर पर पता चलता है कि इसमें कोई वैचारिक मतभेद जैसी बात नहीं थी। तो क्या तेलंगाना विधानसभा चुनाव के लिए टीआरएस से आईपैक का अनुबंध वजह था?

तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव की तेलंगाना राष्ट्र समिति यानी टीआरएस ने दो दिन पहले ही इंडियन पॉलिटिकल एक्शन कमेटी यानी IPAC से सौदा कर लिया है। यह कंसल्टेंसी फर्म चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर से जुड़ी रही है, हालाँकि पिछले साल ही उन्होंने खुद को उस फर्म से आधिकारिक तौर पर अलग कर लिया है।

रिपोर्टों में इस वजह को भी खारिज किया गया है। एनडीटीवी ने सूत्रों के हवाले से ख़बर दी है कि न तो आईपैक और टीआरएस के बीच अनुबंध और न ही पश्चिम बंगाल में ममता के लिए प्रशांत किशोर का काम करना या पहले बीजेपी के लिए काम करना वह वजह है जिसके कारण कांग्रेस और पीके में बात नहीं बन पाई। 

रिपोर्ट में कहा गया है कि दोनों पक्षों के बीच बात नहीं बनने की वजह यह थी कि प्रशांत किशोर बीजेपी को हराने के लिए खुली छूट चाहते थे। लेकिन कांग्रेस एक बाहरी व्यक्ति को उस तरह की खुली छूट देने को तैयार नहीं थी।

रिपोर्ट है कि इसी कारण से प्रशांत किशोर तैयार नहीं हुए क्योंकि वह नहीं चाहते थे कि 2017 में जिस तरह के संकटपूर्ण हालात बने थे इस बार भी बने।

2017 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में वह कांग्रेस नेताओं से सीख ले चुके हैं। तब उनकी पूरी कार्ययोजना को बेहद आधे अधूरे ढंग से लागू करके उन्हें समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन करने को मजबूर कर दिया गया और उसके बाद कांग्रेस का जो हश्र हुआ उससे पीके पर ऐसा दाग लगा जिसे धुलने में उन्हें लंबा वक़्त लगा। इसलिए इस बार प्रशांत किशोर ने तय कर लिया था कि या तो उन्हें अपनी कार्ययोजना लागू करने की पूरी छूट मिले और उनके काम में किसी भी नेता का कोई दखल न हो, तब ही वह कांग्रेस में शामिल होंगे।

लेकिन लगता है कि इस मुद्दे पर दोनों पक्ष आगे बढ़ने को तैयार नहीं हुए। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि दोनों को एक-दूसरे पर शायद उस तरह का भरोसा नहीं है। एनडीटीवी से बातचीत में एक बार प्रशांत किशोर ने कहा भी था, 'दूसरों को यह स्वाभाविक लगता है कि प्रशांत किशोर और कांग्रेस को एक साथ आना चाहिए और एक साथ काम करना चाहिए। लेकिन दोनों पक्षों को एक साथ काम करने के लिए विश्वास की छलांग लगानी होगी। कांग्रेस के साथ ऐसा नहीं है।' उन्होंने खुद के बार में कांग्रेस के संदेह जताने को भी जायज ठहराया था। तो सवाल है कि क्या ऐसा भरोसा कभी आगे बन सकता है?