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अमृतपाल सिंह क्या अकाली दल का सियासी मोहरा है

अमृतपाल सिंह क्या अकाली दल का सियासी मोहरा है

अमृतपाल को लेकर अब पंजाब में राजनीति तेज होती जा रही है। कांग्रेस और भाजपा जहां अमृतपाल पर कार्रवाई का समर्थन कर रहे हैं वहीं शिरोमणि अकाली दल ने इस मसले पर सरकार की आलोचना की है। पार्टी के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने अघोषित आपातकाल और दमन एवं आतंक के शासन के लिए राज्य की आम आदमी पार्टी सरकार की कड़ी आलोचना की।

खालिस्तान समर्थक और स्वंयभू धर्मगुरु अमृतपाल सिंह पिछले दिन दिनों से फरार है। चौथे दिन मंगलवार को भी पंजाब पुलिस उसकी तलाश कर रही है। पहले दिन जब उसके खिलाफ कार्रवाई शुरु हुई तब शाम तक खबरें आने लगीं थी कि अमृतपाल पुलिस की गिरफ्त में है। लेकिन देर रात उसके भाग जाने की खबर आने लगी। उसके बाद से पंजाब पुलिस लगातार उसको खोज रही है।

पुलिस ने अबतक अमृतपाल से जुड़े 114 लोगों को हिरासत में ले लिया है, जिसमें उसके चाचा और  ड्राइवर जैसे करीबी लोग भी शामिल हैं। इस मामले में अबतक हुई कार्रवाई में पांच लोगों के खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा कानून(NSA) के तहत कार्रवाई की गई है।

अमृतपाल को लेकर अब पंजाब में राजनीति तेज होती जा रही है। कांग्रेस और भाजपा जहां अमृतपाल पर कार्रवाई का समर्थन कर रहे हैं वहीं शिरोमणि अकाली दल ने इस मसले पर सरकार की आलोचना की है। अकाली दल ने खालिस्तानी नेता अमृतपाल सिंह की तलाश के तीसरे दिन सोमवार को कट्टरपंथी नेता और उसके सहयोगियों को गिरफ्तार करने के लिए बड़े पैमाने पर चलाए जा रहे अभियान पर अपनी चुप्पी तोड़ी।

पार्टी के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने अघोषित आपातकाल और दमन एवं आतंक के शासन के लिए राज्य की आम आदमी पार्टी सरकार की कड़ी आलोचना की। उन्होंने आप पर सिख समुदाय को बदनाम करने के लिए 'साजिश की थ्योरी' फैलाने का आरोप लगाया और 'निर्दोष सिख युवकों' की गिरफ्तारी की निंदा की।

बादल ने सोमवार शाम सिलसिलेवार ट्वीट में यह भी कहा कि पांच बार के मुख्यमंत्री और अकाली दल के संरक्षक प्रकाश सिंह बादल ने राज्य को 'आतंक और दमन के खूनी चक्र' से बाहर निकाला और शांति एवं प्रगति के युग की शुरुआत की।

पंजाब के लिए आपातकाल और 1980 और 1990 के दशक की शुरुआत का वक्त खालिस्तान की मांग वाला अलगाववाद का दौर था, जिसमें हजारों सिखों को अपनी जान गंवानी पड़ी।

प्रकाश सिंह बादल के नेतृत्व वाली सरकार ने राज्य को आतंक और दमन के खूनी चक्र से बाहर निकाला था और शांति और प्रगति के युग की शुरुआत की थी। लेकिन इसके बाद की सरकारों ने पंजाब को असुरक्षा और दमन के जबड़े में वापस धकेल दिया है जो अंधेरे और दुखद युग की याद दिलाता है। सिखों को 'सबसे देशभक्त समुदाय' बताते हुए बादल ने आप सरकार पर चुनावी फायदे के लिए सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का आरोप लगाया।

सिख सबसे देशभक्त लोग हैं और उन्होंने भारत की स्वतंत्रता, एकता और अखंडता को सुरक्षित रखने और संरक्षित करने के लिए सबसे बड़ा बलिदान दिया है और जब भी देश को इसकी आवश्यकता होगी, हम फिर से ऐसा करेंगे। यह हमारा देश है और सिखों को अपनी देशभक्ति पर किसी से प्रमाणपत्र की जरूरत नहीं है। उन्होंने सिख युवाओं, विशेष रूप से अमृतधारी युवाओं की 'अंधाधुंध गिरफ्तारी' की निंदा की, जिन्हें उन्होंने निर्दोष बताया।

शिरोमणि अकाली दल के अलावा शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंध समिति और दमदमी टकसाल द्वारा भी अमृतपाल के खिलाफ की जा रही कार्रवाई की निंदा की गई है। ज्ञात हो कि गुरुद्वारा प्रबंध समिति में ज्यादातर अकालियों का ही कब्जा है। ऐसे में उससे किसी अलग प्रतिक्रिया की उम्मीद भी नहीं की जा रही थी।

दमदमी टकसाल के प्रमुख बाबा हरनाम सिंह धुम्मा सैन फ्रासिंस्को से वारिस पंजाब दे प्रमुख अमृतपाल सिंह पर पंजाब सरकार की कार्रवाई की निंदा की और एक बयान जारी करते हुए कहा कि पंजाब सरकार अमृतपाल सहित पकड़े गये सभी लोगों को सिख समुदाय के हवाले करे।

जिस दमदमी टकसाल की टकसाल की तरफ से अमृतपाल और उसके साथियों को समुदाय के हवाले किए जाने की मांग की गई है, यह वही दमदमी टकसाल का एक समय जिसका प्रमुख जरनैल सिंह भिंडरावाला हुआ करता है। टकसाल की स्थापना 1706 में मुकसर युद्ध के बाद गुरु गोविंद सिंह द्वारा की गई थी। जिसे अब दमदमा साहिब के तौर पर जाना जाता है।

शिरोमणी गुरुद्वारा प्रबंध समिति ने भी इस मसले पर सरकार की आलोचना की है। गुरुद्वारा प्रबंध समिति के प्रमुख हरजिंदर सिंह धामी ने इस मसले पर आप सरकार पर आरोप लगाया कि वह सिख समुदाय के लोगों को जानबूझकर फंसा रही है। बता दें कि शिरोमणी गुरुद्वारा प्रबंध समिति देशभर के गुरुद्वारों को प्रबंधन करने वाली सबसे बड़ी इकाई है जो केवल देश ही नहीं विदेशों में भी गुरुद्वारों का प्रबंधन देखती है। इस समिति में हमेशा से अकालियों का ही कब्जा रहा है। वर्तमान इस समय बादल परिवार का कब्जा है। उनपर आरोप लगाया जाता है कि वे अकाली दल पार्टी औ गुरुद्वारा समितियों को अपने राजनीतिक फायदे के लिए प्रयोग कर रहे हैं। 

1920 में स्थापित अकाली दल और गुरुद्वारा प्रबंध समिति की शुरुआत गुरुद्वारों के भ्रष्ट हो चुके महंतों के खिलाफ विद्रोह से हुई थी जिसने सिख धर्म की एक नई दिशा और दशा दी। लेकिन सौ साल बाद आज अकाली सबसे कमज़ोर स्थिति में हैं और अपने लिए नई जमीन की तलाश कर रहे हैं। और धर्म उनके लिए सबसे पुराना और आजमाया हुआ औजार है जिसके सहारे वे अपने को दोबारा से उभार सकते हैं। ऐसे में अमृतपाल उनके लिए एक मोहरे की तरह हैं  

इसके अलावा अमृतपाल के मुद्दे पर पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट में सोमवार को एक देश की एकता और अखंडता बनाये रखने के लिए निर्देश देने की मांग करते हुए एक याचिका भी दायर की गई है। याचिका में मांग की गई है कि जो लोग शांति व्यवस्था को बिगाड़ने का प्रयास कर रहे हैं उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाए।

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