‘द इकोनॉमिस्ट’, एक प्रतिष्ठित समाचार पत्रिका है। इसने हाल ही में एक रिपोर्ट छापी है जिसमें एक देश के प्रमुख की तरफ़ इशारा करते हुए बताया गया था कि वह किस प्रकार अपनी पार्टी या ख़ुद के ख़िलाफ़ की गयी किसी भी आलोचना के ख़िलाफ़ बदले की कार्रवाई करते हैं। इस पत्रिका ने एक घटना का हवाला देते हुए लिखा है कि कुछ समय पूर्व एक आलोचक ने उक्त प्रमुख के बारे में बात करते हुए कहा था कि वह व्यक्ति अपने नए कपड़े दिखाने वाला सम्राट नहीं, बल्कि एक नग्न मसख़रा है। इसके तुरंत बाद, उक्त आलोचक को भ्रष्टाचार के आरोप में 18 साल जेल की सजा सुना दी गई।
‘द इकोनॉमिस्ट’ में जिस राष्ट्र प्रमुख का ज़िक्र किया गया था, वह चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग है। लेकिन उपरोक्त कहानी को पढ़ने के समय आपको यह सोचने के लिए माफ़ किया जा सकता है कि ये ‘सम्राट’ आपके बहुत क़रीब है।
मेरे इस लेख लिखने के चौबीस घंटे से भी कम समय में दिल्ली पुलिस के ‘विशेष’ सेल ने ट्विटर इंडिया के नई दिल्ली के बाहरी इलाक़े में स्थित कार्यालयों का दौरा किया तथा उन्हें एक नोटिस दिया। दिल्ली पुलिस के ‘विशेष’ सेल के इस सद्भावना दौरे की पृष्ठभूमि यह है कि बीजेपी ने कांग्रेस पार्टी द्वारा कथित रूप से तैयार किए गए ‘टूलकिट’ को बीजेपी सरकार को बदनाम करने की साज़िश बताते हुए उस पर निराधार आरोप लगाए थे। जवाब में कांग्रेस पार्टी ने न केवल इन निराधार आरोपों का जोरदार खंडन किया, बल्कि इन जाली और चालाकी से तैयार की गयी टूलकिट की इमेज को साझा करने वालों के ख़िलाफ़ विभिन्न राज्यों में जालसाजी की आपराधिक शिकायत भी दर्ज करायी।
इस दौरान ट्विटर इंडिया ने अपनी जाँच के आधार पर बीजेपी प्रवक्ता संबित पात्रा की ‘टूलकिट’ वाली पोस्ट को भ्रामक, मैनिप्युलेटेड तथा दूसरों को नुकसान पहुँचाने वाले ‘पोस्ट के रूप में चिन्हित कर दिया। संबित पात्रा ने छत्तीसगढ़ पुलिस द्वारा उनके ख़िलाफ़ दर्ज की गई प्राथमिकी के आधार पर जारी किये गए सम्मन को नज़रअंदाज़ कर दिया।
इन सबके बीच इस मामले में दिल्ली पुलिस बड़े ही अजीबोग़रीब अंदाज में हरकत में आई। सामान्य प्रक्रिया के तहत पुलिस को इस जालसाजी के मामले में आरोपियों की जांच करनी चाहिए थी, लेकिन यहां दिल्ली पुलिस ने आरोपियों से पूछताछ करने के बजाय ट्विटर इंडिया के ऑफिसों पर ही धावा बोल दिया। साथ ही इस मामले की पुलिस में शिकायत करने वाले शिकायतकर्ताओं को नोटिस भी जारी कर दिया। ऐसा प्रतीत होता है कि केंद्र सरकार ने अब अपने सबसे भरोसेमंद सुरक्षा बल दिल्ली पुलिस को अपना हथियार बना लिया है।
अपराध की गंभीरता को देखते हुए और इस तथ्य पर विचार करते हुए कि एक केंद्रीय मंत्री और बीजेपी अध्यक्ष की इस कथित भ्रामक टूलकिट को वायरल करने में प्रमुख भूमिका रही है, केंद्र सरकार की घबराहट चौंकाने वाली नहीं है।
लेकिन, यह तथ्य स्वयं में बेहद चिंताजनक है कि केंद्र सरकार अपने ख़िलाफ़ आरोप लगाने वालों के ख़िलाफ़ ज़्यादा हमलावर है। साथ ही सरकारी तंत्र का इस तरह बेजा इस्तेमाल भी बेहद चिंताजनक है। यह बात तब और अधिक चिंताजनक हो जाती है जब बीजेपी सरकार इस कठिन समय में भी मूल समस्याओं को नज़रअंदाज़ करते हुए अपना सारा ध्यान छवि प्रबंधन पर ही टिकाए हुए है।
कुछ ही दिनों पहले हमने देखा कि प्रधानमंत्री और गृह मंत्री ने कोविड-19 महामारी पर अपनी ऊर्जा केंद्रित करने के बजाय पश्चिम बंगाल में चल रहे विधानसभा चुनाव में व्यस्त थे। अब हम एक बार फिर सरकारी समय का एक और अक्षम्य दुरुपयोग देख रहे हैं। इस कठिन समय में गृह मंत्री को बिल्कुल नहीं देखा गया है, ऐसे में यह देखना दिलचस्प है कि इस कठिन दौर में भी दिल्ली पुलिस जो गृहमंत्री के सीधे नियंत्रण में कार्य करती है, अपने सम्राट की छवि को बचाने के लिये किस क़दर सक्रिय है। दिल्ली पुलिस द्वारा ट्विटर के मुख्यालय के इस हास्यास्पद दौरे के अलावा, हमने दिल्ली पुलिस द्वारा उन ग़रीब लोगों की गिरफ्तारी का दुर्भाग्यपूर्ण नज़ारा भी देखा है जो मोदी सरकार के ख़िलाफ़ पोस्टर लगा रहे थे, जिसमें यह सवाल उठाया गया था कि मोदी ने उनके बच्चों के टीके विदेश में क्यों भेज दिए।
फ़ाइल फ़ोटो
आज की हक़ीक़त यह है कि देश के अधिकांश नागरिक मोदीजी की ‘अबूझ और विचारहीन वैक्सीन नीति’ से पूरी तरह से भ्रमित और परेशान हैं तथा प्रधानमंत्री ने टीकाकरण की सारी ज़िम्मेदारी राज्य सरकारों के सिर पर डाल रखी है, प्रधान मंत्री अभी भी वैक्सीन प्रमाणपत्रों पर अपना चेहरा छपा हुआ देखने के लोभ से मुक्त नहीं हो रहे हैं। वाक़ई, छवि प्रबंधन के लिए मोदीजी किसी भी स्तर तक जाने का बूता रखते हैं।
यह भी ख़बर है कि इस बारे में कैसे सरकार ने टेलीविजन मीडिया पर विज्ञापनों को वापस लेने की धमकियाँ देकर सरकार के लिए अनुकूल रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए दबाव डाला है। अब हम ट्विटर जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को सरकार द्वारा नियंत्रित करने के स्पष्ट प्रमाण से रूबरू हो रहे हैं। इस तथ्य के बावजूद कि इन सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों ने कोविड की दूसरी लहर के दौरान, जब सरकार और उसका समस्त तंत्र लापता था, नागरिकों को एक दूसरे से संपर्क करने और एक-दूसरे की सहायता करने में बेहद अहम भूमिका निभाई है।
लोकतंत्र में तानाशाही व्यवस्था को उभरने से रोकने के लिए एक स्वतंत्र प्रेस, वाणी की स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की आज़ादी का अधिकार अनिवार्य है। लोकशाही पर तानाशाही हावी न हो इसके लिए नागरिकों को भी सतर्क रहने की ज़रूरत है। अगर जन प्रतिनिधि लोकतान्त्रिक मूल्यों में गिरावट को समर्थन देते हैं तो यक़ीनन यह एक आपराधिक प्रवृत्ति है। उदाहरण के लिए, संयुक्त राज्य अमेरिका में जॉन मैक्केन ने अपनी ही पार्टी के सदस्य तथा उस समय के अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प को यह कहते हुए फटकार लगाई थी कि तानाशाह अपने तानाशाही शासन का आरम्भ स्वतंत्र प्रेस की स्वतंत्रता को ख़त्म करके ही शुरू करते हैं।
इसलिए मैं बीजेपी के अपने मित्रों को जिनके बारे में मुझे यक़ीन है कि वे स्वयं को सम्राट से पहले इस देश के नागरिकों तथा संविधान के प्रति ज़िम्मेदार मानते हैं, वे सम्राट या सम्राट के निजी कैबिनेट के सदस्यों के हितों के प्रति जवाबदेह न होकर देश के नागरिकों और संविधान की रक्षा के लिए अपनी ज़िम्मेदारी सुनिश्चित करेंगे।