+
लखीमपुर खीरी: मंत्री के बेटे आशीष मिश्रा को झटका, बेल से इनकार

लखीमपुर खीरी: मंत्री के बेटे आशीष मिश्रा को झटका, बेल से इनकार

लखीमपुर खीरी में किसानों को कार से रौंदने के मामले में अदालत ने कनिष्ठ केंद्रीय मंत्री के बेटे आशीष मिश्रा टेनी को राहत देने से कोर्ट ने क्यों इनकार किया? जानिए अदालत ने क्या कहा।

केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा के बेटे आशीष मिश्रा को आज फिर से इलाहाबाद उच्च न्यायालय से झटका लगा है। अदालत ने लखीमपुर खीरी हिंसा मामले में आशीष मिश्रा को जमानत देने से इनकार कर दिया है। आशीष मिश्रा को 9 अक्टूबर को यूपी के लखीमपुर खीरी में 3 अक्टूबर को हुई हिंसा के सिलसिले में गिरफ्तार किया गया था। पीठ ने इस साल 15 जुलाई को सुनवाई पूरी करने के बाद अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था।

पिछले साल उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य द्वारा लखीमपुर की यात्रा से पहले तीन अक्टूबर को हिंसा में आठ लोग मारे गए थे। इसमें से चार लोगों की कार से कुचलकर मौत हो गई थी और इसके बाद हुई हिंसा में कार में सवार चार अन्य लोग मारे गए थे। दावा किया जाता रहा है कि कार में सवार लोग यूपी के मंत्री का स्वागत करने आए भाजपा कार्यकर्ताओं के काफिले का हिस्सा थे। जबकि किसान विरोध प्रदर्शन का हिस्सा थे।

बीते साल 9 अक्टूबर को भारी दबाव के बाद ही गिरफ्तार किया जा सका था। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट भी बेहद सख़्त टिप्पणी कर चुका था। लेकिन फरवरी में इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने आशीष को जमानत दे दी थी। 

आशीष की जमानत के खिलाफ लखीमपुर हिंसा के पीड़ित परिवारों की ओर से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी। सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बेहद अहम टिप्पणी करते हुए कहा था कि पीड़ितों को सुनने से इनकार कर दिया गया और हाई कोर्ट ने जल्दबाजी दिखाई जिस वजह से जमानत दिए जाने के आदेश को रद्द किया जाता है। इसके बाद आशीष मिश्रा ने 24 अप्रैल को उत्तर प्रदेश में एक स्थानीय अदालत में आत्मसमर्पण कर दिया था। इसके बाद उसे वापस लखीमपुर जेल में भेज दिया गया। 

अदालत की बेंच ने कहा था कि पीड़ितों को जमानत के मामले की सुनवाई सहित बाकी प्रक्रियाओं में शामिल होने का पूरा अधिकार है।

शीर्ष अदालत ने हाई कोर्ट की इस बात के लिए आलोचना की कि उसने फैक्चुअल मैरिट पर ध्यान दिया जबकि यह जांच का विषय है।

सुप्रीम कोर्ट ने 30 मार्च को आशीष मिश्रा की जमानत को रद्द न करने पर उत्तर प्रदेश सरकार की जमकर खिंचाई की थी।

सीजेआई ने उत्तर प्रदेश सरकार के वकील से कहा था, “मामले की निगरानी कर रहे जज की रिपोर्ट से पता चलता है कि उन्होंने जमानत को रद्द करने की सिफारिश की थी और यह भी सिफारिश की थी कि इसके लिए आवेदन किया जाना चाहिए तो फिर ऐसा क्यों नहीं किया गया।”

पिछले साल नवंबर में सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के जज जस्टिस राकेश कुमार जैन को इस मामले की निगरानी करने के लिए नियुक्त किया था।

सत्य हिंदी ऐप डाउनलोड करें