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बिहार में शराबबंदी की जंग हार रहे नीतीश कुमार?

बिहार में शराबबंदी की जंग हार रहे नीतीश कुमार?

नीतीश सारी आलोचनाओं के जवाब में यही कहते आये हैं कि शराबबंदी को बहुमत का समर्थन हासिल है और इसे वापस लेने का सवाल ही नहीं है। 

बिहार में अप्रैल 2016 से शराबबंदी लागू होने के पांच साल बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का अपनी इस जंग में सख्त इम्तिहान से सामना हो रहा है। नीतीश कुमार को एक ओर इसलिए आलोचना का सामना करना पड़ रहा है कि पिछले कई वर्षों से शराब की होम डिलीवरी हो रही है तो दूसरी ओर पिछले महीने चार जिलों- मुजफ्फरपुर, गोपालगंज, कैमूर और रोहतास में जहरीली शराब पीने से लगभग बीस लोगों की मौत हो गयी।

मांझी ने की शिकायत

नीतीश को एक तरफ विपक्ष से इस बात की आलोचना सहनी पड़ती है कि उनकी सरकार में शराब की तस्करी चरम पर है। दूसरी ओर अपने सहयोगी दलों खासकर जीतन राम मांझी के हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा यानी ‘हम’ से इस बात की शिकायत मिलती है कि शराबबंदी में पकड़े गये लोगों का संबंध अक्सर कमजोर तबके से होता है जिन्हें कानूनी मदद नहीं मिल पाती, इस वजह से उन घरों को आर्थिक संकट का भी सामना करना पड़ता है।

नकली शराब पीने से हुई मौत के बाद पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने मांग की है कि संबंधित एसपी और अन्य पुलिस वालों पर हत्या का केस दर्ज किया जाए। उनकी पार्टी का साफ तौर पर कहना है कि राज्य में शराब की तस्करी जारी है।

मुकेश सहनी का भी एतराज

इसी तरह वीआईपी के अध्यक्ष मुकेश सहनी भी कह चुके हैं कि राज्य में शराबबंदी सही से लागू नहीं है। यही नहीं पिछले माह सीतामढ़ी जिले में शराब माफिया के साथ भिड़ंत में एक पुलिसवाले की जान भी चली गयी थी जिसके बाद विपक्ष ने नीतीश पर शराबबंदी में फेल होने का आरोप लगाया था।

नीतीश की सफाई 

नीतीश सारी आलोचनाओं के जवाब में यही कहते आये हैं कि शराबबंदी को बहुमत का समर्थन हासिल है और इसे वापस लेने का सवाल ही नहीं है। दूसरी बात वह यह कहते हैं कि शराबबंदी में शिथिलता बरतने या शराब तस्करी में शामिल सरकारी कर्मियों-अफसरों पर भी कार्रवाई हो रही है। 

नीतीश कुमार दो तरह की चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। पहली तो यह कि वह शराबबंदी की नीति के लिए कब तक अड़े रहते हैं और दूसरी यह कि उनकी शराबबंदी की नीति कितनी असरदार है।

सरकारी आंकड़ों के अनुसार अप्रैल 2016 से इस साल फरवरी तक बिहार में शराब के अवैध धंधे के मामले में 2,55,111 केस दर्ज हुए। इन मामलों में 3,39, 401 लोग गिरफ्तार हुए जबकि 470 लोगों को सजा हुई है। एक तरह से देखा जाए तो जुर्म साबित होने की दर काफी कम है। इस दौरान 51.7 लाख देसी और 94.9 लाख भारत निर्मित विदेशी शराब जब्त हुई है। जब्त शराब को अक्सर भारी गाड़ियों से कुचलकर बर्बाद किया जाता है लेकिन कई बार उसमें भी हेराफेरी की शिकायत मिलती है। 

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चूहे पी गए शराब 

कई बार यह खबर भी मिलती है कि शराब के पाउच को चूहे कुतर गये। सरकारी आंकड़ों के हिसाब से शराबबंदी में शिथिलता बरतने या शराब तस्करी में मिलीभगत के मामले में 619 सरकारी कर्मचारी-अधिकारियों पर कार्रवाई की गयी है। इस मामले में 348 पर एफआईआर दर्ज की गयी और 186 लोग बर्खास्त किये गये हैं।

पड़ोसी राज्यों से तस्करी 

आखिर शराबबंदी में नीतीश को इतनी मुश्किलों का सामना क्यों करना पड़ रहा है जबकि उन्हें इस मामले में महिलाओं का जबरदस्त समर्थन प्राप्त है? मैंने यही सवाल बिहार के पूर्व डीजीपी अभयानंद से किया तो उन्होंने इसके दो प्रमुख कारण बताये। अभयानंद का कहना है कि बिहार ऐसे सूबों से घिरा है जहां शराबबंदी नहीं है तो तस्करी के लिए स्रोत सुलभ है। चाहे झारखंड हो या उत्तर प्रदेश, वहां से शराब की तस्करी न सिर्फ आसान है बल्कि यह काफी कमाने वाला भी धंधा है। 

इसी तरह उत्तर प्रदेश से भी आसानी से शराब लायी जाती है। नेपाल एक अलग किस्म का स्रोत है। पूर्व डीजीपी के अनुसार शराबबंदी की नाकामी का दूसरा बड़ा कारण कानून लागू करने वाली एजेंसियों की शिथिलता है। उनका कहना है कि बिहार में पहले एक कमजोर किस्म की उत्पाद नीति थी लेकिन अब तो शराबबंदी कानून में संबंधित व्यक्ति की संपत्ति जब्ती का प्रावधान है, लेकिन ऐसा हो नहीं पा रहा। अगर कहीं कोई छोटी-मोटी संपत्ति जब्त भी हो रही तो उसे कोर्ट से रिलीज करा लिया जा रहा है। 

करीब दो माह पहले एक आईपीएस अफसर ने पत्र लिखकर बताया था कि बिहार में शराबबंदी नाकाम होने में शराब माफिया, पुलिस, उत्पाद विभाग के अधिकारी और नेताओं का गठजोड़ काम कर रहा है।

इस पत्र में पुलिस और उत्पाद अधिकारियों के बेतहाशा धन-अर्जन की जांच की बात कही गयी थी लेकिन हुआ यह कि उस अफसर का तबादला कर दिया गया। साथ ही उस पत्र को वापस लेकर उसे तैयार करने वाले डीएसपी को कारण बताओ नोटिस दे दिया गया।

शराब की तस्करी का धंधा 

वरिष्ठ पत्रकार और लंबे समय से बिहार में अपराध की खबरों पर नजर रखने वाल रमाशंकर कहते हैं कि बिहार पुलिस शराब लाने वाले ट्रक वालों और पीने वालों को पकड़ने में लगी है जबकि कोई बड़ा धंधेबाज नहीं पकड़ा जाता। उनका कहना है कि बिहार में शराब की तस्करी संगठित धंधा बन चुका है जिसमें राजनीतिज्ञों और अफसरों का भी पैसा लगा है। 

बिहार में शराबबंदी वास्तव में बहुत से बेरोजगार लोगों के लिए फटाफट अमीर बनने का साधन भी बन चुका है। जनवरी में एमबीए के एक छात्र को शराब तस्करी का नेटवर्क चलाते हुए पकड़ा गया था।

शराब की होम डिलीवरी! 

वे कहते हैं कि नीतीश सरकार को शराबबंदी लागू किये पांच साल होने को हैं। ढाई सौ से अधिक अधिकारियों-कर्मियों पर आधारित शराबबंदी सेल है जो आईजी रैंक के अधिकारी के मातहत काम कर रही है लेकिन इसके बावजूद बिहार में शराब की होम डिलीवरी बेहद सहज है, बस आपके पास पैसे हों। उन्होंने कहा कि बिहार में सिर्फ झारखंड-यूपी से नहीं बल्कि पंजाब तक से शराब आ रही है। इसका पता हाल ही में तब चला जब मोहाली के तीन शराब तस्कर पकड़े गये।

पूर्व डीजीपी अभयानंद ने बताया कि उनके डीजीपी रहते 2012 में जहरीली शराब पीने से मौत के एक के बाद एक तीन कांड हो गये तो उन्होंने इसकी तफ्तीश करायी कि इसकी जड़ में कौन है। उनके अनुसार जो लोग पकड़े गये उनसे मिली जानकारी से दो तरह के केस तैयार किये गये। 

एक तो उत्पाद विभाग से नकली शराब की बिक्री से होने वाले राजस्व घाटा का हिसाब तैयार कराया जो करोड़ों में आया। ऐसे लोगों पर धोखाधड़ी का केस दर्ज कराकर उनसे राजस्व वसूला गया। साथ ही ईडी यानी प्रवर्तन निदेशालय से उनकी संपत्तियों के लिए आय के स्रोत की जांच कराने को कहा गया। इससे कई शराब माफियाओं की संपत्ति जब्त करने में कामयाबी मिली थी। 

पर क्या आज ये संभव है? अगर नहीं तो शराबबंदी कैसे कामयाब होगी? 

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