भारत जोड़ो यात्रा से समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने आज 29 दिसंबर को खुद से अलग कर लिया। अब यह और भी साफ हो गया कि अखिलेश राहुल गांधी के साथ यात्रा में शामिल नहीं होंगे। लेकिन यात्रा में शामिल नहीं होने के मौके पर उन्होंने टिप्पणी बहुत सख्त की है, जिसके दूरगामी राजनीतिक नतीजे हैं। अखिलेश के ताजा बयान की समीक्षा बहुत जरूरी है। राहुल गांधी यात्रा के साथ 3 दिसंबर को यूपी में प्रवेश करने वाले हैं।
यूपी के पूर्व सीएम अखिलेश यादव ने 'भारत जोड़ो यात्रा' से खुद को अलग करते हुए आज गुरुवार 29 दिसंबर को पत्रकारों से बातचीत में कहा कि हमारी पार्टी की एक अलग विचारधारा है। बीजेपी और कांग्रेस एक ही हैं।
पत्रकारों ने उनसे पूछा था कि क्या उन्हें यात्रा के लिए आमंत्रित किया गया है, जो 3 जनवरी को यूपी में आने वाली है। अखिलेश ने पत्रकारों से कहा, अगर आपके फोन पर निमंत्रण आया हो, तो कृपया इसे मुझे भेजें। हमारी संवेदनाएं उनकी यात्रा के साथ हैं। मुझे कोई निमंत्रण नहीं मिला है।
हाल ही में कांग्रेस की ओर से कहा गया था कि सपा प्रमुख अखिलेश यादव, बीएसपी प्रमुख मायावती और आरएलडी प्रमुख जयंत चौधरी को भारत जोड़ो यात्रा में शामिल होने का न्यौता भेजा गया था।
मीडिया के जरिए कांग्रेस के निमंत्रण की खबर जब फैली तो सपा और आरएलडी के प्रवक्ता ने बयानों में कहा था कि अखिलेश और जयंत चौधरी के उस दौरान व्यस्त कार्यक्रम हैं, इसलिए वो यात्रा में शामिल नहीं हो पाएंगे। बीएसपी के सूत्रों ने कहा था कि मायावती भी यात्रा में शामिल नहीं होंगी। वैसे भी मायावती का रुख हमेशा कांग्रेस विरोधी रहा है तो उनके आने की संभावना क्षीण है।
अखिलेश के बयान का मतलब क्या हैः सपा प्रमुख अखिलेश यादव के बयान से यह साफ हो गया कि उन्हें राहुल गांधी का व्यक्तिगत निमंत्रण नहीं मिला है या कांग्रेस के किसी जिम्मेदार नेता ने व्यक्तिगत रूप से आकर उन्हें निमंत्रित नहीं किया है। अखिलेश के नहीं आने की वजह से जयंत चौधरी ने भी खुद को पीछे कर लिया, क्योंकि जयंत की पार्टी रालोद या आरएलडी का सपा के साथ गठबंधन है।
लेकिन अखिलेश के बयान के कुछ और भी मतलब हैं। 2024 का आम चुनाव नजदीक आता जा रहा है। बीजेपी की अब सारी तैयारी 2024 के लिए हो रही है। यहां तक कि 2024 से पहले जिन 9-10 राज्यों में विधानसभा चुनाव हैं, उन्हें भी 2024 की रिहर्सल माना जा रहा है।
यूपी में कांग्रेस फिलहाल हाशिए पर है। विधानसभा और लोकसभा चुनाव में उसका प्रदर्शन लगातार खराब रहा है। 2019 के लोकसभा चुनाव में यूपी में कांग्रेस को सिर्फ एक सीट मिली थी और सपा-बसपा-रालोद गठबंधन को 15 सीटें मिली थीं। जिसमें बसपा की 10 और सपा की 5 सीटें थीं। अभी 2022 के विधानसभा चुनाव में भी सपा का प्रदर्शन 2017 से बेहतर था, बेशक वो सरकार नहीं बना सकी। लेकिन विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस कोई करिश्मा नहीं कर सकी, जबकि प्रियंका गांधी को यूपी विधानसभा चुनाव की कमान सौंपी गई थीं।
भारत जोड़ो यात्रा को मिल रहे जनसमर्थन को देखकर सपा, बसपा और रालोद को कहीं न कहीं यह बात लग रही है कि अगर वे यूपी में कांग्रेस के मंच पर जाते हैं तो उनके मतदाताओं में कहीं कांग्रेस अपनी पैठ न बना ले। इसीलिए अखिलेश ने कांग्रेस को बीजेपी जैसा बताकर किनारा कर लिया है। अखिलेश यात्रा में शामिल होने से बचने के लिए कोई और भी बयान दे सकते थे लेकिन उनका कांग्रेस-बीजेपी को एक जैसा बताने का अर्थ यही है कि वो कांग्रेस से दूरी बनाए रखना चाहते हैं।
2024 आम चुनाव से पहले विपक्षी एकता की कोशिशों के लिए यह एक धक्का भी है। क्योंकि पिछले दिनों बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने अखिलेश से भी मुलाकात की थी और अखिलेश ने विपक्षी एकता मजबूत करने का भरोसा दिया था। लेकिन अब तस्वीर कुछ और बन रही है।