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ग़ैर यादव पिछड़े नेताओं को सपा से जोड़ रहे अखिलेश, अकेली पड़ रहीं मायावती! 

ग़ैर यादव पिछड़े नेताओं को सपा से जोड़ रहे अखिलेश, अकेली पड़ रहीं मायावती! 

विधानसभा चुनाव नज़दीक हैं लेकिन कई बड़े नेता मायावती का साथ छोड़कर सपा के साथ जा चुके हैं। ऐसे में बीएसपी का संकट बढ़ता जा रहा है। 

उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव बिलकुल क़रीब आ गए हैं और मुक़ाबला जबरदस्त होने की उम्मीद है। राज्य के प्रमुख दलों की बात करें तो अखिलेश यादव समाजवादी विजय यात्रा निकाल रहे हैं, बीजेपी ने संगठन को चुस्त करने के साथ ही अपने सबसे बड़े नेता नरेंद्र मोदी को मैदान में उतार दिया है। कांग्रेस प्रियंका गांधी के दम पर सक्रियता बढ़ा रही है लेकिन बीएसपी मुश्किल हालात में है। इसकी वजह उसके तमाम पिछड़े नेताओं का पार्टी छोड़कर अखिलेश के साथ जाना है। 

मायावती ने बीते दिनों उत्तर प्रदेश में एक बार फिर सोशल इंजीनियरिंग के जरिये चुनाव मैदान में जाने के संकेत दिए हैं। पार्टी के महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा ने प्रदेश के कई जिलों में ब्राह्मण सम्मेलन किए हैं। लेकिन मायावती की चिंता पिछड़े नेताओं के लगातार पार्टी को छोड़ने और समाजवादी पार्टी के साथ जाने को लेकर है। 

बीएसपी की हालत ख़राब 

अखिलेश यादव बीएसपी छोड़ने वाले नेताओं को तुरंत अपनी पार्टी में शामिल कर रहे हैं। बीएसपी की हालत वैसे भी ख़राब है क्योंकि 2017 के विधानसभा चुनाव में उसे सिर्फ़ 19 सीटों पर जीत मिली थी, इसमें भी महज 7 विधायक अब उसके साथ हैं।

हालांकि 2019 के लोकसभा चुनाव में बीएसपी को 10 सीटों पर जीत मिली थी लेकिन इसमें बड़ा योगदान सपा और रालोद के साथ मिलकर चुनाव लड़ने को गया था। 

अखिलेश को उम्मीद है कि यादव और मुसलिम मतदाता उनके साथ बने रहेंगे। इसलिए वह ग़ैर यादव पिछड़े नेताओं को सपा में लाने की रणनीति पर काम कर रहे हैं। हालांकि ओवैसी कुछ हद तक मुसलिम मतों में सेंध लगा सकते हैं। 

 - Satya Hindi

जिन ग़ैर यादव पिछड़े नेताओं ने हाल ही में बीएसपी छोड़ी है और सपा का हाथ पकड़ा है, उनमें विधायक आरपी कुशवाहा, पूर्व कैबिनेट मंत्री केके गौतम, सहारनपुर के पूर्व सांसद कादिर राणा और उत्तर प्रदेश में बीएसपी के अध्यक्ष रहे आरएस कुशवाहा शामिल हैं। 

इसके अलावा दो और बड़े नाम लालजी वर्मा और राम अचल राजभर भी हैं। ये दोनों ही मायावती के क़रीबी नेताओं में शुमार थे। वर्मा कुर्मियों के बड़े नेता हैं और उनके आने से सपा को इस वर्ग के जबकि रामअचल राजभर के आने से पार्टी को राजभर समुदाय के वोट मिलेंगे। 

ऐसी भी चर्चा है कि विधानसभा चुनाव से पहले बीएसपी में और भी भगदड़ मच सकती है और शायद ही कोई बड़ा नेता पार्टी में बचा रहे।

निश्चित रूप से इससे मायावती को बड़ा झटका लगा है। उत्तर प्रदेश में ग़ैर यादव पिछड़ों की आबादी लगभग 40 फ़ीसदी है। ग़ैर यादवों के बड़े नेताओं के अलावा कई विधायक भी बीएसपी छोड़ चुके हैं। 

सपा में शामिल हो रहे इन नेताओं को लेकर मायावती अपनी खीझ भी निकाल चुकी हैं। उन्होंने हाल ही में कहा था कि दूसरे दलों से निकाले गए और स्वार्थी नेताओं को शामिल करने से सपा का जनाधार नहीं बढ़ेगा। 

दूसरी ओर, अखिलेश अपनी रणनीति पर चुपचाप काम करते हुए आगे बढ़ रहे हैं। सुभासपा के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर को वे अपने साथ ले आए हैं। राजभर के भागीदारी संकल्प मोर्चा में जो छोटे दल शामिल थे, वे भी अखिलेश के साथ जाने की तैयारी में हैं।

ग़ैर यादव पिछड़ी जातियां कई सीटों पर बेहद प्रभावी हैं और अखिलेश जानते हैं कि इनके साथ आए बिना सरकार बनाना मुश्किल है। इसलिए बीएसपी से निकाले गए या नाराज़ ऐसे नेताओं को उन्होंने तुरंत अपने साथ मिला लिया है। अपने चाचा शिवपाल सिंह यादव को भी साथ लाने की वह पूरी कोशिश कर रहे हैं। 

यहां याद रखना ज़रूरी होगा कि बीजेपी को 2017 के चुनाव में जीत ग़ैर यादव जातियों को साथ लाने के फ़ॉर्मूले से ही मिली थी। इसलिए अखिलेश इस बार बीजेपी के इस फ़ॉर्मूले में सेंध लगाना चाहते हैं। 

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