अखिलेश यादव आज मुख्तार अंसारी के घर क्यों जा रहे हैं, वोट का सवाल या कुछ और?
समाजवादी पार्टी (सपा) प्रमुख अखिलेश यादव रविवार को गैंगस्टर से नेता बने मुख्तार अंसारी के निधन पर शोक जताने के लिए गाजीपुर जिले में मोहम्मदाबाद जा रहे हैं। लोकसभा चुनाव 2024 की गहमागहमी के बीच यह पहल महत्वपूर्ण है। मुख्तार के जनाजे में उमड़ी भीड़ और उसके बाद उनके घर शोक जताने के लिए जाने वालों की तादाद ने अखिलेश समेत सभी राजनीतिक दलों को सक्रिय कर दिया है। इसका सीधा संबंध पूर्वी उत्तर प्रदेश में मुस्लिम वोटों की लड़ाई से है। मुख्तार का असर आसपास के जिलों पर रहा है। जिसमें जौनपुर, अंबेडकर नगर, आजमगढ़, बलिया, गोरखपुर, बस्ती प्रमुख हैं।
दरअसल, सोमवार को ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने मुख्तार अंसारी के घर शोक जताने पहुंचे थे। मुस्लिम समुदाय के बीच आधार तलाश रही AIMIM प्रमुख की इस पहल को लेकर पूर्वी उत्तर प्रदेश के मुसलमानों में खासी चर्चा है। ओवैसी ने जिन्होंने कृष्णा पटेल के नेतृत्व वाले अपना दल (कमेरावादी) के साथ पिछड़ा, दलित, मुस्लिम (पीडीएम) न्याय मोर्चा लॉन्च किया है। अभी हाल तक यह दल यानी अपना दल (कमेरावादी) सपा के साथ था।
ओवैसी ने मुख्तार के घर जाने का समय सावधानीपूर्वक चुना था। वो उनके घर अफ्तार और तरावी की नमाज के बाद देर रात पहुंचे। रोजाना लोग तरावी की नमाज के बाद फाटक (मुख्तार के घर का लोकल नाम) पर मुख्तार के प्रति एकजुटता दिखाने के लिए भारी संख्या में जुटते हैं। ओवैसी उसी समय वहां पहुंचे थे। वहां मुख्तार की मौत के लिए यूपी सरकार को जिम्मेदार ठहराते हुए ओवैसी ने कहा कि “मुख्तार अंसारी साहब की न्यायिक हिरासत में मौत के लिए राज्य सरकार जिम्मेदार है। इस कठिन समय में, हम उनके परिवार और समर्थकों के साथ खड़े हैं। उत्तर प्रदेश में जो भी हमारा प्रतिद्वंद्वी होगा, हम उससे लड़ेंगे।'' पिछले निकाय चुनाव में एआईएमआईएम का प्रदर्शन अच्छा था और 100 से अधिक पार्षद जीते थे।
ओवैसी अपने टारगेट को बहुत सावधानीपूर्वक चुनते हैं। पिछले साल एक और गैंगस्टर से नेता बने पूर्व विधायक अतीक अहमद और उनके भाई की पुलिस सुरक्षा में हत्या कर दी गई। अतीक के बेटे का एनकाउंटर कर दिया गया। अतीक का पूरा परिवार विपरीत परिस्थितियों का सामना कर रहा है। लेकिन ओवैसी अतीक के घर शोक जताने नहीं पहुंचे। हालांकि उन्होंने पुलिस सुरक्षा में हुई हत्या की निन्दा की थी। ओवैसी के अतीक के घर शोक जताने नहीं जाने की वजह यह थी कि अतीक का राजनीतिक प्रभाव और छवि मुख्तार के मुकाबले कहीं नहीं ठहरती। अखिलेश भी अतीक के घर नहीं पहुंचे थे। मुख्तार के घर अखिलेश तभी जा रहे हैं, जब वहां ओवैसी जा चुके हैं।
सपा को ओवैसी के आने की सूचना जैसे ही मिली। उसके नेताओं पूर्व लोकसभा सांसद धर्मेंद्र यादव और राज्यसभा सांसद बलराम यादव ने मोहमदाबाद के कालीबाग कब्रिस्तान में मुख्तारी अंसारी की कब्र पर फूल चढ़ाए और उनके आवास पर जाकर परिवार के प्रति संवेदना व्यक्त की।
सपा नेता राम सुधाकर यादव ने पार्टी के प्रदेश कार्यालय के पास मुख्तार अंसारी का एक बड़ा होर्डिंग लगाया, जिसमें लोगों से ईद नहीं मनाने और मुख्तार अंसारी के लिए दो मिनट का मौन रखने का आग्रह किया गया। बाद में स्थानीय पुलिस ने होर्डिंग हटवा दिया। भाजपा को इस वजह से बयान का मौका मिल गया। क्षेत्रीय भाजपा नेताओं ने बयान दिया कि ''सपा नेता लोकसभा चुनाव में मुसलमानों के बीच मुख्तार अंसारी के प्रति सहानुभूति को भुनाना चाहते हैं।'' उन्होंने कहा, ''वे स्थानीय मुस्लिम नेताओं का समर्थन हासिल करने की भी कोशिश कर रहे हैं। बसपा के पूर्व विधायक शाह आलम उर्फ गुड्डु जमाली पहले ही सपा में शामिल हो चुके हैं।'
2017 के विधानसभा चुनाव से पहले, अखिलेश यादव ने अंसारी द्वारा गठित कौमी एकता दल (क्यूईडी) के समाजवादी पार्टी में विलय के अपने चाचा शिवपाल यादव के कदम का विरोध किया था। यह जानते हुए कि अंसारी की मौत लोकसभा चुनाव में मुस्लिम बहुल निर्वाचन क्षेत्रों में राजनीतिक दलों के नतीजों पर असर डालेगी। इसलिए अब अखिलेश को मुख्तार के घर जाना पड़ रहा है।
अखिलेश मुख्तार के भाइयों सिबगतुल्लाह अंसारी, जो पूर्व सपा विधायक हैं, गाजीपुर लोकसभा सीट से मौजूदा बसपा सांसद अफजाल अंसारी, जो सपा के टिकट पर 2024 का लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं, मुख्तार के भतीजे और सपा के मोहम्मदाबाद विधायक सुहैब अंसारी, मुख्तार के बेटे उमर अंसारी से मुलाकात करेंगे। मुख्तार का एक और बेटा अब्बास अंसारी इस समय जेल में है। वो ओमप्रकाश राजभर की पार्टी सुहेलदेव भारत समाज पार्टी से विधायक है। राजभर और उनकी पार्टी ने भाजपा का दामन थाम रखा है और सरकार में मंत्री हैं।
2019 के लोकसभा चुनाव में उस समय के सपा-बसपा गठबंधन ने मुस्लिम-ओबीसी-दलित गठबंधन पर काम करते हुए पूर्वी यूपी में श्रावस्ती, अंबेडकर नगर, आज़मगढ़, जौनपुर, ग़ाज़ीपुर, लालगंज और घोसी सीटें हासिल की थीं। 2022 के विधानसभा चुनाव में सपा ने आज़मगढ़, मऊ, गाज़ीपुर, जौनपुर और अंबेडकर नगर जिलों की अधिकांश सीटें जीतीं। हालांकि बाद में उनमें से कुछ विधायक भाजपा में खिसक गए।
मुख्तार अंसारी का ग़ाज़ीपुर, मऊ, आज़मगढ़ और वाराणसी जिलों में मुस्लिम वोटों पर कब्ज़ा रहा है। उनके परिवार और रिश्तेदार पूर्वी यूपी के तमाम जिलों में विभिन्न दलों से चुनाव भी लड़ते रहे हैं। इन जिलों की लोकसभा सीटों पर मुसलमानों की संख्या 20% है और उनके वोटिंग का पैटर्न 2024 के लोकसभा चुनाव के नतीजों को तय कर सकता है।हालांकि मुख्तार अब नहीं हैं, लेकिन क्षेत्र में मुस्लिम मतदाताओं पर उनके परिवार का असर और हमदर्दी कायम रहने की संभावना है। उनके भाई अफजाल अंसारी, जिन्होंने 2019 का लोकसभा चुनाव बसपा के टिकट पर जीता था, 2024 का लोकसभा चुनाव समाजवादी पार्टी (सपा) के टिकट पर लड़ रहे हैं। अंसारी के बेटे अब्बास अंसारी ने 2022 के विधानसभा चुनाव में मऊ विधानसभा सीट से सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के टिकट पर जीता, जबकि उनके भतीजे सुहैब अंसारी मोहम्मदाबाद सीट से सपा विधायक हैं।
बसपा प्रमुख मायावती भी इस दौड़ में पीछे नहीं हैं। अंसारी परिवार के प्रभाव से वाकिफ मायावती सबसे पहले ही उनकी मौत पर संदेह जता चुकी हैं। उच्चस्तरीय जांच की मांग करते हुए उन्होंने कहा था कि अंसारी परिवार ने जेल में उनकी मौत को लेकर लगातार आशंकाएं व्यक्त की थीं और गंभीर आरोप लगाए थे। यहां तक कि उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष अजय राय ने भी मुख्तार अंसारी की मौत की जांच की मांग उठाई है। दिलचस्प बात यह है कि अंसारी पर अजय राय के भाई अवधेश राय की हत्या का आरोप था। क्षेत्रीय दल राष्ट्रीय उलेमा काउंसिल (आरयूसी) और पीस पार्टी आदि के नेता भी संवेदना जताने के लिए अंसारी के घर जा चुके हैं और उनकी मौत की जांच की मांग की है।