+
अजित गुट के नेता शरद पवार पर बीजेपी के हमले के विरोध में क्यों?

अजित गुट के नेता शरद पवार पर बीजेपी के हमले के विरोध में क्यों?

महाराष्ट्र में जिस महायुति गठबंधन में बीजेपी और अजित पवार की एनसीपी शामिल हैं उनमें आख़िर शरद पवार पर हमले करने को लेकर मतभेद क्यों है? जानिए, असली वजह।

महाराष्ट्र में अजीब राजनीति चल रही है! बीजेपी जहाँ शरद पवार पर हमला कर रही है वहीं इसकी सहयोगी अजित पवार की एनसीपी इस हमले का विरोध कर रही है। और यह सब इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले हो रहा है।

चुनाव के मद्देनज़र ही अमित शाह ने पुणे में आयोजित राज्य भाजपा कार्यकारिणी की बैठक में पवार को 'भ्रष्टाचार का सरगना' कहा। उन्होंने रविवार को आरोप लगाया था कि पवार ने देश में 'भ्रष्टाचार को संस्थागत रूप दिया है'। हालाँकि, पवार पर शाह के तीखे हमले की उपमुख्यमंत्री अजित पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी के एक वर्ग ने तीखी आलोचना की है। ख़ास बात यह है कि यह एनसीपी राज्य में बीजेपी के साथ सत्ता में सहयोगी है।

राजनीतिक पर्यवेक्षक मानते हैं कि अमित शाह का शरद पवार पर हमला अजित पवार की एनसीपी के कई नेताओं को इसलिए पसंद नहीं आया क्योंकि शरद पवार पर हमला करने का राजनीतिक नुक़सान अजित पवार के खेमे को हुआ है। माना जा रहा है कि लोकसभा चुनाव के नतीजों में भी ऐसा ही नुक़सान हुआ है। 

एनसीपी के एक नेता ने और पूर्व विधायक विलास लांडे ने कहा कि केंद्रीय गृह मंत्री द्वारा मराठा दिग्गज के खिलाफ ऐसा बयान देना ठीक नहीं है। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार उन्होंने कहा, 'प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा चुनाव के दौरान शहर में एक रैली में शरद पवार को 'भटकती आत्मा' कहा था। इसका असर चुनाव पर पड़ा। भाजपा को अपनी गलती से सबक लेना चाहिए। मैं किसी व्यक्ति के खिलाफ नहीं हूं और हम 84 वर्षीय शरद पवार का सम्मान करते हैं। प्रतिद्वंद्वी दलों को उनके खिलाफ नहीं बोलना चाहिए, अन्यथा इसका आगामी विधानसभा चुनाव पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। एनसीपी कार्यकर्ता दिग्गज नेता की इस तरह की आलोचना पसंद नहीं करेंगे।'

उन्होंने कहा कि वह नेतृत्व को पत्र लिखकर उनसे 'शरद पवार का अनादर नहीं करने' का आग्रह करेंगे। उन्होंने कहा कि पवार और अजित दोनों ही पार्टी कैडर के लिए महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि उन्होंने 'महाराष्ट्र के विकास में बहुत योगदान दिया है।'

रिपोर्ट के अनुसार जब पवार पर अमित शाह की टिप्पणी के बारे में पूछा गया तो अजित पवार ने कोई टिप्पणी करने से परहेज किया।

हालाँकि, पवार पर निशाना साधने के लिए एनसीपी के कई नेताओं ने अमित शाह की आलोचना की। अंग्रेजी अख़बार की रिपोर्ट के अनुसार चिंचवाड़ से एनसीपी विधायक अन्ना बंसोडे ने कहा, 'शरद पवार पर आरोप लगाना ग़लत है। इससे बचना चाहिए और यह महायुति गठबंधन के सभी सहयोगियों के हित में है।'

रिपोर्ट के अनुसार पुणे एनसीपी के कार्यकारी अध्यक्ष प्रदीप देशमुख ने कहा, 'शरद पवार राज्य के सबसे वरिष्ठ राजनीतिक नेता हैं। हो सकता है कि कुछ मुद्दों पर हमारी राहें अलग हो गई हों, लेकिन हम दिग्गज नेता का सम्मान करते हैं।' देशमुख ने कहा कि पवार के नीतिगत फैसलों की आलोचना की जा सकती है, लेकिन व्यक्तिगत स्तर पर उनकी आलोचना 'गलत' है। उन्होंने कहा, 'शरद पवार चार बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं। महाराष्ट्र में किसी भी दिग्गज नेता के प्रति अनादर दिखाना स्वीकार्य नहीं है, चाहे वह किसी भी पार्टी या संगठन का हो। यह हमारी संस्कृति नहीं है और लोग इसे पसंद नहीं करेंगे।' 

उन्होंने यह भी कहा कि एनसीपी कार्यकर्ता पवार के खिलाफ अमित शाह के आरोपों से आहत हैं, जिनके साथ उन्होंने दशकों तक काम किया है। एनसीपी के एक अन्य नेता ने कहा कि पवार ने कभी किसी नेता पर व्यक्तिगत हमला नहीं किया। 

पर्यवेक्षकों का कहना है कि लोकसभा चुनाव के नतीजों से यह भी संकेत मिलता है कि पवार को लोगों की अच्छी-खासी सहानुभूति हासिल है। उन्होंने कहा कि पवार पर हमलों के खिलाफ खड़े होकर एनसीपी नेता जमीनी स्तर पर उनके खिलाफ किसी भी नकारात्मक सार्वजनिक धारणा को बेअसर करना चाहते हैं।

भाजपा पर पलटवार करते हुए पुणे एनसीपी (सपा) प्रमुख प्रशांत जगताप ने कहा कि भाजपा लोकसभा चुनाव में हार के बाद हताशा में पवार के खिलाफ निराधार आरोप लगा रही है। उन्होंने कहा, 'भाजपा परेशान है, इसलिए वे इस तरह का व्यवहार कर रहे हैं। अब हम अपराधियों के साथ भाजपा के संबंधों के सबूत पेश करेंगे।' 

बता दें कि महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव में तीन महीने का समय रह गया है। इसी बीच भाजपा ने विपक्षी महा विकास अघाड़ी गठबंधन के प्रमुख चेहरे शरद पवार पर अपना हमला तेज कर दिया है। पिछले साल जुलाई में पवार के भतीजे अजित पवार ने अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं के गुट के साथ मिलकर उनके खिलाफ बगावत कर दी थी और उनकी पार्टी को तोड़ दिया था। हालाँकि, हाल ही में हुए लोकसभा चुनावों में महायुति को करारा झटका लगा था क्योंकि वह महाराष्ट्र की 48 सीटों में से केवल 17 सीटें ही जीत पाई थी जबकि एमवीए को 30 सीटें मिली थीं।

सत्य हिंदी ऐप डाउनलोड करें