भारती एयरटेल ने अरबपति एलन मस्क की एयरोस्पेस कंपनी स्पेसएक्स के साथ एक ऐतिहासिक साझेदारी की घोषणा की है। इसके तहत भारत में स्टारलिंक सैटेलाइट इंटरनेट सेवाएं शुरू की जाएंगी। मंगलवार को जारी एक संयुक्त बयान में दोनों कंपनियों ने इसे भारत में स्टारलिंक की पहली औपचारिक साझेदारी करार दिया। हालांकि, इस योजना का क्रियान्वयन स्पेसएक्स के लिए भारत में स्टारलिंक सेवाओं को संचालित करने की जरूरी मंजूरी हासिल करने पर निर्भर है। यह कदम भारत के दूरदराज और कम सेवा वाले क्षेत्रों में हाई-स्पीड इंटरनेट पहुंचाने की दिशा में एक बड़ा बदलाव ला सकता है।
एयरटेल पहले से ही यूरोप की सैटेलाइट कंपनी यूरोटेल वनवेब के साथ साझेदारी कर रही है और अब स्टारलिंक के साथ यह नया गठजोड़ उसकी सेवाओं को और मज़बूत करेगा। मनी कंट्रोल की रिपोर्ट के अनुसार एयरटेल के प्रबंध निदेशक और उपाध्यक्ष गोपाल विट्टल ने कहा, ‘स्पेसएक्स के साथ मिलकर स्टारलिंक को भारत में लाना अगली पीढ़ी की सैटेलाइट कनेक्टिविटी के प्रति हमारी प्रतिबद्धता को दिखाता है। यह सहयोग हमें देश के सबसे दूरस्थ हिस्सों तक हाई-स्पीड ब्रॉडबैंड पहुंचाने में सक्षम बनाएगा।’ इस साझेदारी के तहत एयरटेल अपने रिटेल स्टोर्स के ज़रिए स्टारलिंक उपकरण बेचने और व्यावसायिक ग्राहकों को सेवाएं देने की योजना बना रही है।
दूसरी ओर, स्पेसएक्स की अध्यक्ष और मुख्य परिचालन अधिकारी ग्विन शॉटवेल ने कहा, ‘एयरटेल के साथ काम करना हमारे लिए रोमांचक है। भारत के टेलीकॉम इतिहास में एयरटेल की अहम भूमिका रही है, और यह साझेदारी हमारी डायरेक्ट-टू-कंज्यूमर पेशकश को पूरा करेगी।’ यह सहयोग न केवल ग्रामीण इलाकों में कनेक्टिविटी बढ़ाएगा, बल्कि स्कूलों, स्वास्थ्य केंद्रों और समुदायों तक विश्वसनीय इंटरनेट पहुंचाने में भी मदद करेगा।
तकनीकी और बुनियादी ढांचे का लाभ
स्टारलिंक के पास पहले से ही 6000 से ज्यादा लो-अर्थ ऑर्बिट सैटेलाइट्स हैं, जो तेज और कम विलंबता वाली इंटरनेट सेवा देते हैं। एयरटेल अपने मौजूदा नेटवर्क को स्टारलिंक की तकनीक के साथ जोड़कर देशव्यापी कवरेज को बेहतर कर सकती है। साथ ही, स्पेसएक्स एयरटेल के जमीनी बुनियादी ढांचे का उपयोग कर भारत में अपनी सेवाओं को विस्तार दे सकेगी। यह साझेदारी दोनों कंपनियों के लिए फायदेमंद हो सकती है, खासकर तब जब भारत का अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था बाजार 2033 तक 44 अरब डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है।
हालाँकि, इस साझेदारी का भविष्य नियामक मंजूरी पर टिका है। भारतीय अंतरिक्ष नियामक IN-SPACe और दूरसंचार विभाग से स्टारलिंक को संचालन की अनुमति अभी मिलनी बाकी है। अंग्रेज़ी अख़बार की रिपोर्ट के अनुसार, स्पेसएक्स ने सरकार की डेटा लोकलाइजेशन और सुरक्षा ज़रूरतों को मानने पर सहमति जताई है, जो पहले एक बड़ा विवाद था। फिर भी, GMPCS लाइसेंस और स्पेक्ट्रम आवंटन जैसे मुद्दे बाकी हैं।
इन सबके बीच भारत सरकार ने संकेत दिया है कि सैटेलाइट स्पेक्ट्रम प्रशासनिक रूप से आवंटित होगा, लेकिन इसमें शुल्क लिया जाएगा। हालांकि, रिलायंस जियो और एयरटेल जैसे टेलीकॉम ऑपरेटर नीलामी की वकालत कर रहे हैं। TRAI जल्द ही स्पेक्ट्रम की क़ीमत तय करने वाली है, जो इस क्षेत्र में अगला बड़ा क़दम होगा।
क्या होगा असर?
यह साझेदारी भारत में डिजिटल डिवाइड को कम करने की दिशा में एक अहम क़दम हो सकती है। अगर स्टारलिंक की सेवाएँ शुरू होती हैं, तो ग्रामीण और दुर्गम इलाक़ों में इंटरनेट की पहुंच बढ़ेगी, जिससे शिक्षा, स्वास्थ्य और व्यापार को नया आयाम मिलेगा। लेकिन इसके साथ ही, जियो और वोडाफोन आइडिया जैसे प्रतिस्पर्धियों पर दबाव बढ़ेगा, जो पहले से ही टेलीकॉम बाजार में कड़ी टक्कर दे रहे हैं।
कुल मिलाकर, एयरटेल और स्टारलिंक का यह गठजोड़ भारत के सैटेलाइट इंटरनेट क्षेत्र में एक नई क्रांति की शुरुआत कर सकता है, बशर्ते नियामक बाधाएं पार हो जाएं। यह देखना दिलचस्प होगा कि यह साझेदारी भारत की टेलीकॉम दुनिया को कैसे बदलती है और क्या यह वादों को हकीकत में बदल पाती है।
(इस रिपोर्ट का संपादन अमित कुमार सिंह ने किया है)