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आज दिल्ली पहुंचने के लिए कूच करेंगे आंदोलनकारी किसान 

आज दिल्ली पहुंचने के लिए कूच करेंगे आंदोलनकारी किसान 

केंद्र सरकार से चौथे दौर की वार्ता भी विफल रहने के बाद आंदोलन कर रहे किसान बुधवार 21 फरवरी को दिल्ली के लिए कूच करने का ऐलान कर चुके हैं। किसानों का काफिला पंजाब-हरियाणा के विभिन्न बॉर्डरों से दिल्ली के लिए रवाना होगा। 

अपनी विभिन्न मांगों को लेकर आंदोलन कर रहे पंजाब के किसान केंद्र सरकार के साथ चार दौर की वार्ता विफल होने के बाद बुधवार यानी 21 फरवरी को सुबह 11 बजे दिल्ली कूच करेंगे। पंजाब से इन किसानों का मुख्य काफिला पंजाब-हरियाणा के शंभू बॉर्डर से निकलेगा। इसके साथ ही अन्य बॉर्डरों पर एकत्र किसानों का जत्था भी दिल्ली कूच करेगा। किसानों के आंदोलन का बुधवार को 9वां दिन है। 

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक किसानों के दिल्ली कूच को देखते हुए पंजाब, हरियाणा और दिल्ली पुलिस अलर्ट है। हरियाणा पुलिस ने किसानों को रोकने के लिए शंभू बॉर्डर पर घग्गर नदी के उपर बने पुल पर बैरिकेडिंग कर दी है। जगह-जगह सीमेंट के गॉर्डर और कंटीली तारों से बैरिकेडिंग की गई है। हालंकि इसे तोड़ने किसानों ने भी इंतजाम कर रखा है। 

दिल्ली कूच करने वाले किसानों के विशाल समूह के पास जेसीबी, हाईड्रोलिक क्रेन और पोकलेन मशीने भी हैं। किसानों के साथ करीब 2 हजार से अधिक ट्रैक्टर भी है।  ऐसे में पुलिस के लिए इन्हें रास्ते में रोकना बड़ी चुनौती साबित हो सकता है। 

किसानों के दिल्ली कूच को देखते हुए दिल्ली की हरियाणा से लगी सीमाओं को बंद कर दिया गया है। सिंधु, टिकारी, ढासा बॉर्डर को पुलिस ने पूरी तरह से बंद कर दिया है। दिल्ली -हरियाणा की सीमा पर 7 लेयर में सुरक्षा व्यवस्था की गई है।

 रास्ते में बैरिकेड लगाकर कंटेनर खड़े कर दिए गए हैं। बैरिकेडिंग पर लोहे की तार लगाई गई है। किसानों के मार्च को देखते हिए भारी संख्य में पुलिस और अर्धसैनिक बलों की तैनाती की गई है। 

चौथे दौर की वार्ता भी रही विफल

इससे पहले केंद्र सरकार और आंदोलनरत किसानों के नेताओं के साथ बीते रविवार 18 फरवरी की देर रात चौथे दौर की वार्ता हुई थी। इस बैठक में केंद्र सरकार ने किसानों को करीब 4 फसलों मक्का, कपास, अरहर और उड़द पर एमएसपी देने का प्रस्ताव दिया था। वार्ता के तुरंत बाद किसान नेताओं ने कहा था कि वह अपने संगठन के स्तर पर विचार विमर्श के बाद बताएंगे कि अब आगे क्या करना है। 

चौथी वार्ता के बाद किसान नेताओं के सुर थोड़े समय के लिए सरकार के प्रति नम्र हुए थे। दोनों पक्षों के बीच सहमति होती दिख रही थी,  लेकिन इसके अगले ही दिन किसान नेताओं ने सरकार के प्रस्ताव को ठुकरा दिया था और अपने आंदोलन को जारी रखने की घोषणा कर दी थी।  

चंडीगढ़ में किसान नेताओं के साथ हुई इस वार्ता में केंद्र सरकार की तरफ से केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल, कृषि मंत्री अर्जुन मुंडा और गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने हिस्सा लिया था। वहीं इस बैठक में पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान भी मौजूद थे। इससे पहले दोनों पक्षों के बीच 8, 12, और 15 फरवरी को भी वार्ता हुई थी लेकिन तब सहमति नहीं बन पाई थी और पूर्व की ये बातचीत बेनतीजा रही थी। 

इस वार्ता के बाद केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने कहा था कि भारतीय किसान मजदूर संघ और अन्य किसान नेताओं के साथ बहुत ही अच्छे वातावरण में एक सकारात्मक चर्चा हुई। नए विचारों के साथ, नई सोच के साथ भारत के किसानों के हित में जो प्रधानमंत्री मोदी ने पिछले 10 वर्षों में काम किए उसे कैसे और आगे बढ़ाया जाए इसके लिए लंबी चर्चा हुई है। 

पीयूष गोयल ने 19 फरवरी को कहा था कि एमएसपी पर दालें खरीदने के लिए किसानों के साथ नाफेड का पांच साल का समझौता करने का प्रस्ताव उन्हें दिया है। साथ ही हमने प्रस्ताव दिया है कि भारतीय कपास निगम भी एमएसपी पर किसानों से कपास की फसल खरीदने के लिए उनसे पांच साल का समझौता करेगा। 

सरकार से हुई वार्ता के बाद 19 फरवरी को पंजाब किसान मजदूर संघर्ष कमेटी के महासचिव सरवन सिंह पंधेर ने कहा था कि एमएसपी पर केंद्र के मंत्रियों ने हमें जो प्रस्ताव दिया है उस पर हम अपने संगठनों के स्तर पर चर्चा करेंगे और उस पर विशेषज्ञों की भी राय लेंगे। 

क्या हैं आंदोलनरत किसानों की प्रमुख मांगे है? 

वर्तमान में अपनी मांगों को लेकर आंदोलनरत किसानों का कहना है कि पिछले बार हुए आंदोलन में केंद्र सरकार ने किसानों से जो वादे किए थे वे पूरे नहीं हुए हैं। उन अधूरे वादों को पूरा करवाने के लिए ही वह एक बार फिर सड़कों पर उतरे हैं।किसानों का कहना है कि 2020-21 में हुए आंदोलन को समय सरकार ने वादा किया था कि वह एमएसपी कानून बनाएगी। आज तक एमएसपी कानून नहीं बन पाया। 

किसानों का कहना है कि उन्हें स्वामीनाथन कमीशन की रिपोर्ट के आधार पर एमएसपी सभी फसलों पर दिया जाए। किसानों की मांग है कि उनके और मजदूरों के कर्ज को पूरी तरह से माफ कर दिया जाए। इसके साथ ही देश में एक व्यापक स्तर पर ऋण राहत कार्यक्रम चलाया जाए।किसान मांग कर रहे हैं कि राष्ट्रीय स्तर पर भूमि अधिग्रहण कानून 2013 दुबारा से लागू किया जाए। 

इस कानून में जमीन लेने से पहले किसानों की लिखित सहमति आवश्यक होती है और सरकार दर से 4 गुना ज्यादा मुआवजा दिया जाना शामिल है।उनकी मांग है कि केंद्र सरकार किसानों और मजदूरों के लिए पेंशन योजना शुरू करे। पिछले आंदोलन में मरने वाले किसानों के परिवार को मुआवजा और नौकरी, मनरेगा के तहत 100 दिन के काम की गारंटी की जगह 200 दिन के काम की गारंटी और 700 रुपए दैनिक मजदूरी देने की मांग भी वह कर रहे हैं। इसके साथ ही किसानों की कई अन्य मांगे भी हैं। 

क्यों एमएसपी कानून है इनकी सबसे बड़ी मांग

इन आंदोलनरत किसानों की सबसे बड़ी मांग उनकी फसलों पर एमएसपी है। ये मांग कर रहे हैं कि सरकार एमएसपी पर कानून लाए। ऐसे में सवाल उठता है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य या एमएसपी की गारंटी देने वाले कानून हैं क्या जो आंदोलन कर रहे किसानों की सबसे बड़ी मांग है। 

आर्थिक मामलों के जानकार बताते हैं कि न्यूनतम समर्थन मूल्य या एमएसपी वह मूल्य है जिसकी गारंटी सरकार किसानों को देती है कि कम से कम इतना मूल्य उन्हें उनकी फसल पर मिलेगा। एमएसपी का सबसे बड़ा फायदा यह है कि बाजार में उस फसल की कीमत भले ही कितनी ही कम हो जाए किसान को निर्धारित न्यूनतम मूल्य अवश्य ही सरकार से मिल जाता है। 

इससे किसानों को अपनी फसलों से आर्थिक नुकसान नहीं होने की गारंटी मिल जाती है।सरकार हर सीजन से पहले संबंधित फसल की न्यूनतम समर्थन मूल्य या एमएसपी की घोषणा करती है। अब मान लिया जाए कि किसी फसल की खूब पैदावार होती है और इसके कारण उसकी कीमत बाजार में घट जाती है तब भी उस फसल पर एमएसपी लागू रहने की स्थिति में किसानों को नुक्सान नहीं होता। किसान एमएसपी पर अपनी फसल को बेच कर इस स्थिति में भी मुनाफा कमा सकते हैं।

एमएसपी एक तरह से किसानों के लिए फसलों की कीमतें गिरने से होने वाले नुकसान को रोकने वाला बीमा है। देश में अभी किसानों को 23 फसलों पर एमएसपी मिलता है। एमएसपी कानून लागू होने की स्थिति में सरकार सभी फसलों के लिए एमएसपी देने के लिए बाध्य हो जाएगी। इसके साथ ही सभी राज्यों में एमएसपी पर किसानों से उनकी फसलों की खरीदारी होने लगेगी।

क्या है स्वामीनाथन कमेटी की सिफारिश

केंद्र सरकार ने किसानों की समस्याओं को समझने और उसका समाधान तलाशने के लिए कृषि वैज्ञानिक प्रोफेसर एमएस स्वामीनाथन की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया था। 2006 में इस कमेटी ने अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी। आंदोलनरत किसानों की मांग है कि सरकार स्वामीनाथन कमेटी की सिफारिशों को लागू करे। इस कमेटी ने जो सिफारिशें की थी उसमें सबसे अहम थी कि सरकार किसानों से उनकी फसलों को लागत मूल्य से डेढ़ गुना या यूं कहें कि कुल लागत का 50 प्रतिशत अधिक रुपए देकर खरीद लें। 

उदाहरण के तौर पर किसी फसल की लागत मूल्य 100 रुपए प्रति क्विंटल है तो इस कमेटी का सुझाव था कि सरकार उसे 150 रुपए की एमएसपी पर खरीदें।कमेटी ने इसके साथ ही भूमि सुधार, सिंचाई, किसानों के लिए क्रेडिट और बीमा की बेहतर सुविधा उपलब्ध करवाने, खाद्य सुरक्षा से संबंधित कई अहम सिफारिशें की थी। किसानों का कहना है कि स्वामीनाथन कमेटी की सिफारिश को सरकार लागू करे। ऐसा होने से देश के करोड़ों किसानों को फायदा होगा। 

सरकार के लिए क्या है मुश्किल

आर्थिक मामलों के जानकार बताते हैं कि स्वामीनाथन कमेटी की सिफारिशों को लागू करना या सभी फसलों पर एमएसपी लागू करना इतना आसान नहीं है। सरकार के लिए इसे लागू करना काफी मुश्किल। इसे लागू करने से सरकारी खजाने पर बड़ा बोझ पड़ सकता है जिसके कारण दूसरे विकास कार्य प्रभावित हो सकते हैं।

इसका विरोध करने वालों का तर्क है कि इससे किसानों को बहुत ज्यादा फायदा नहीं होगा लेकिन सरकारी खजाना खाली जरूर हो सकता है। इससे बाजार में प्रतिस्पर्धा भी कम होगी। हो सकता है कि एमएसपी देने के डर से भविष्य में सरकार फसलों को कम मात्रा में खरीदे। देश भर में इसे लागू करने से कई तरह की व्यवहारिक खामियां भी हैं। यही कारण है कि आज तक किसी सरकार ने स्वामीनाथन कमेटी की सिफारिशों को लागू नहीं किया है।

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