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नगालैंड-मणिपुर में विवादित अफस्पा की अवधि फिर बढ़ाई गई

नगालैंड-मणिपुर में विवादित अफस्पा की अवधि फिर बढ़ाई गई

विवादास्पद सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम (अफस्पा), जो सुरक्षा बलों को कहीं भी ऑपरेशन करने और पूर्व वारंट के बिना किसी को भी गिरफ्तार करने की अनुमति देता है, की अवधि को नगालैंड और मणिपुर में बढ़ा दिया गया है।

विवादास्पद सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम (अफस्पा), जो सुरक्षा बलों को कहीं भी ऑपरेशन करने और पूर्व वारंट के बिना किसी को भी गिरफ्तार करने की अनुमति देता है, की अवधि को नगालैंड और मणिपुर में बढ़ा दिया गया है।

नगालैंड गृह विभाग के एक अधिकारी ने कोहिमा में कहा कि केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा बुधवार को पूरे नगालैंड को छह महीने के लिए ‘अशांत क्षेत्र’ घोषित किया गया है।

अफस्पा नगालैंड में कई दशकों से लागू है और 3 अगस्त, 2015 को नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ़ नगालैंड (एनएससीएन-आईएम) के नगा विद्रोही इसाक-मुइवा गुट द्वारा एक फ्रेमवर्क समझौते पर हस्ताक्षर किए जाने के बावजूद वापस नहीं लिया गया है।

नगा विद्रोही संगठनों के प्रमुख समूह एनएससीएन-आईएम ने अगस्त 1997 में केंद्र सरकार के साथ युद्धविराम समझौता किया था और तब से शांति वार्ता में भाग ले रहा है। इस संगठन ने 23 साल पहले संघर्ष विराम संधि पर हस्ताक्षर करने के बाद दिल्ली और यहाँ तक ​​कि भारत के बाहर भी केंद्र सरकार के साथ लगभग 80 दौर की वार्ता की है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली केंद्र सरकार ने 2015 में एनएससीएन-आईएम के साथ एक ‘फ्रेमवर्क समझौते’ पर हस्ताक्षर किए थे। एनएससीएन-आईएम और खुफिया सूत्रों ने कहा है कि वार्ता के दौरान नगाओं की 31 मांगों में से कई का समाधान लगभग हो चुका है। केंद्र के साथ मतभेद एक अलग ध्वज और एक अलग संविधान की मांग पर बना हुआ है।

एक अलग नगा राज्य नागालिम के लिए एनएससीएन-आईएम लंबे समय से म्यांमार के नगा बहुल क्षेत्रों के साथ-साथ पूर्वोत्तर राज्यों के कुछ हिस्सों को एकत्रित करने की मांग करता रहा है। नगालैंड के राज्यपाल और केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त नगा शांति वार्ता के वार्ताकार आर.एन. रवि ने हाल ही में एनएससीएन (आईएम) ने एक अलग ध्वज और संविधान की मांग को खारिज कर दिया है।

मणिपुर में विभिन्न आतंकवादी संगठनों की हालिया हिंसक गतिविधियों के मद्देनज़र, मणिपुर सरकार ने इंफाल नगरपालिका क्षेत्रों को छोड़कर, राज्य भर में अफस्पा के तहत 'अशांत क्षेत्र का दर्जा' बढ़ाया है।

मणिपुर गृह विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि ‘अशांत क्षेत्र’ की स्थिति में वृद्धि सेना, अर्ध-सैन्य बलों और राज्य में तैनात विभिन्न अन्य सुरक्षा बलों को व्यापक अधिकार प्रदान करती है।

मणिपुर में 1980 से और कई अन्य पूर्वोत्तर राज्यों में आतंकवाद को रोकने के लिए इस अधिनियम को लागू किया जाता रहा है और समय-समय पर इसे बढ़ाया गया है।

मणिपुर के विशेष सचिव, गृह, एच. ज्ञान प्रकाश ने एक अधिसूचना में कहा है कि राज्यपाल नजमा हेपतुल्ला की राय है कि विभिन्न चरमपंथियों और विद्रोही समूहों की हिंसक गतिविधियों के कारण पूरा राज्य इतनी विकट स्थिति में है कि इसकी अवधि को बढ़ाना सशस्त्र बल की सहायता के लिए आवश्यक है।

मणिपुर के अलावा अफस्पा असम और नगालैंड में भी लागू है और अरुणाचल प्रदेश के तिरप और चांगलांग ज़िलों में भी लागू है।

अधिनियम को एक ‘कठोर क़ानून’ क़रार देते हुए मणिपुर की प्रसिद्ध मानवाधिकार कार्यकर्ता इरोम चानू शर्मिला ने 2016 के मध्य तक 16 वर्षों तक अफस्पा को रद्द करने की मांग करते हुए संघर्ष किया था।

त्रिपुरा एकमात्र ऐसा राज्य है जहाँ अफस्पा को तत्कालीन वाम मोर्चा सरकार ने उग्रवादी गतिविधियों के नियंत्रित होने के बाद कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया-मार्क्सवादी के दिग्गज मुख्यमंत्री माणिक सरकार के नेतृत्व में 1998 में वापस ले लिया था।

1958 में संसद के एक अधिनियम के रूप में पारित अफस्पा अशांत क्षेत्रों में भारतीय सशस्त्र बलों को विशेष अधिकार प्रदान करता है। वर्तमान में अफस्पा जम्मू और कश्मीर, असम, नगालैंड, और अरुणाचल प्रदेश और मणिपुर के कुछ हिस्सों में लागू है।

इसके प्रावधानों के तहत सशस्त्र बलों को बिना वारंट के गोली मारने, घर में घुसने और तलाशी लेने और किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार करने का अधिकार दिया गया है।

अधिनियम के आलोचकों के अनुसार यह सुरक्षा बलों को असीमित शक्तियाँ प्रदान करता है जिसके परिणामस्वरूप बड़े पैमाने पर हत्याएँ हुई हैं। इस अधिनियम के कारण 1980 के दशक के बाद से मणिपुर में हुई कथित 1528 हत्याओं के ख़िलाफ़ 2012 में एक्स्ट्रा ज्यूडिशियल एक्सेक्यूशन विक्टिम फेमिलीज़ एसोसिएशन ऑफ़ मणिपुर ने उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था।

इरोम ने 9 अगस्त, 2016 को अपनी भूख हड़ताल समाप्त कर दी थी। उन्होंने अपने फ़ैसले के पीछे दो कारणों का हवाला दिया। पहला यह कि उनकी भूख हड़ताल का सरकार पर बहुत कम प्रभाव पड़ा था, और सरकार ने उनकी भूख हड़ताल के दौरान अफस्पा को हटाने का कोई प्रयास नहीं किया। इरोम ने कहा कि उन्हें एक अलग दृष्टिकोण अपनाने की ज़रूरत महसूस हुई। उन्होंने तब 2017 के विधानसभा चुनावों में मणिपुर से अफस्पा को हटाने की मुहिम के तहत लड़ने का फ़ैसला किया।

इरोम ने हार्वर्ड स्नातक इरेंड्रो लीचोम्बम के साथ एक नई पार्टी - पीपुल्स रिसर्जेंस एंड जस्टिस अलायंस की सह-स्थापना की। पार्टी ने इरोम सहित पाँच उम्मीदवार मैदान में उतारे थे। इरोम बुरी तरह से हार गईं। क्षेत्र के मतदाताओं ने कहा था कि वे शर्मिला से प्यार करते हैं, लेकिन वे चुनावी राजनीति में शामिल होने के उनके फ़ैसले से सहमत नहीं थे। चुनाव परिणामों के बाद अपमानित और परेशान इरोम ने मणिपुर छोड़ दिया।

कार्यकर्ताओं का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर में 1528 कथित फर्जी मुठभेड़ों पर विचार कर यह सुनिश्चित किया है कि राज्य में सुरक्षा बल बिना संयम के पूर्ण शक्ति का प्रयोग नहीं कर सकते। इसके कारण सुरक्षा बलों द्वारा हत्याओं में कमी के साथ-साथ नागरिकों का उत्पीड़न भी कम हो गया है।

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