अफ़ग़ानिस्तान में लगभग दो दशक से चल रही जंग लगता है कि ख़त्म नहीं होगी क्योंकि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने तालिबान के साथ शांति वार्ता ख़त्म करने का एलान कर दिया है। यह एलान ऐसे समय में किया गया है जब यह माना जा रहा था कि जंग का हल ज़रूर निकलेगा और अमेरिका अफ़ग़ानिस्तान से अपनी सेनाओं को वापस बुला लेगा। काबुल में पिछले हफ़्ते हुए एक हमले में अमेरिकी सैनिक और 11 अन्य लोगों के मारे जाने के बाद डोनाल्ड ट्रंप ने शांति वार्ता को रद्द किया है।
इससे पहले डोनाल्ड ट्रंप ने ट्वीट कर रहा था, ‘बड़े तालिबान नेता और अफ़ग़ानिस्तान के राष्ट्रपति रविवार को गुप्त तरीक़े से कैंप डेविड में उनसे मिलने आ रहे थे और आज रात उन्हें अमेरिका आना था। लेकिन वे ग़लत तरीक़े से फ़ायदा उठाने आ रहे थे।’ ट्रंप ने कहा, ‘तालिबान ने काबुल में हमारे सैनिक और 11 अन्य लोगों को मार दिया। इसलिए मैं तुरंत शांति वार्ता को रद्द करने की घोषणा करता हूँ। ये कैसे लोग हैं जो सौदेबाज़ी करने के लिए कई लोगों की जान ले लेंगे।’
तालिबान ने ट्रंप के एलान के कुछ घंटे बाद एक बयान जारी किया और अमेरिका को धमकी दी है कि यह फ़ैसला उसे बहुत महंगा पड़ेगा और अब ज़्यादा अमेरिकियों की जान जाएगी।
अंग्रेजी अख़बार ‘द हिंदू’ में समाचार एजेंसी रॉयटर्स के हवाले से ख़बर है कि तालिबान के प्रवक्ता ज़बीहुल्ला मुजाहिद ने कहा, ‘दोनों पक्ष शांति समझौते पर हस्ताक्षर की घोषणा करने ही वाले थे लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति ने शांति वार्ता को रद्द कर दिया, इससे अब ज़्यादा अमेरिकी मारे जाएंगे।’ तालिबान के प्रवक्ता ने कहा, ‘इससे अमेरिका की विश्वसनीयता प्रभावित होगी, अमेरिका का शांति विरोधी रुख दुनिया के सामने आएगा और जान-माल का नुक़सान और ज़्यादा होगा।’
ज़बीहुल्ला ने आगे कहा, ‘अगर लड़ाई के बजाय बातचीत के रास्ते को अपनाया जाएगा तो हम अपने वादे पर टिके रहेंगे लेकिन हम तब तक शांत नहीं बैठेंगे जब तक हमारे देश से विदेशी हस्तक्षेप न ख़त्म हो जाए।’
यह माना जा रहा था कि अगले डेढ़ साल में अमेरिकी सैनिक पूरी तरह से अफ़ग़ानिस्तान से चले जाएंगे और बदले में तालिबान ने आश्वासन दिया था कि वह आतंकवादियों पर रोक लगा देगा और आईएस और अल-कायदा जैसे संगठनों से कोई संबंध नहीं रखेगा।
अमेरिका में अगले साल राष्ट्रपति चुनाव होने हैं और ट्रंप चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं। ट्रंप प्रशासन अफ़ग़ानिस्तान से अपनी फ़ौज़ें वापस बुलाने के लिए तालिबान से वार्ता में इसलिए भी जुटा था क्योंकि वह इसका चुनाव में लाभ ले सके। इस काम में उसके पाकिस्तान की मदद लेने की बातें भी सामने आती रही हैं। पाकिस्तान पर यह आरोप लगता है कि वह अफ़ग़ानिस्तान में भारत के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए तालिबान को समर्थन देता है।
अफ़ग़ानिस्तान में 28 सितंबर को चुनाव होने हैं और राष्ट्रपति अशरफ़ ग़नी एक बार फिर सत्ता में वापसी की तैयारी कर रहे हैं। रॉयटर्स के मुताबिक़, ट्रंप के फ़ैसले के बाद ग़नी ने तालिबान से अपील की है कि वह हिंसा का रास्ता छोड़कर सीधे सरकार से बात करे। ख़बर के मुताबिक़, यह भी कहा गया है कि अफ़ग़ानिस्तान में तभी सही मायने में शांति आ सकती है जब तालिबान युद्ध विराम के लिए सहमत हो जाए। हालाँकि तालिबान कई बार सरकार से बातचीत करने से इनकार कर चुका है।
संयुक्त राष्ट्र ने जुलाई में कहा था कि उग्रवादी संगठनों के ख़िलाफ़ चल रही लड़ाई में 2019 के पहले छह महीनों में 4 हज़ार से ज़्यादा अफ़गानी नागरिक या तो मारे जा चुके हैं या घायल हुए हैं।
बता दें कि अफ़ग़ानिस्तान में जारी युद्ध दुनिया का सबसे लंबा संघर्ष है, जिसमें अमेरिका भी लगभग 20 सालों से टिका हुआ है। अफ़ग़ानिस्तान में 2001 में युद्ध शुरू होने के बाद से अब तक हज़ारों अमेरिकी सैनिकों की मौत हो चुकी है। कहा जा सकता है कि अफ़गान नागरिकों, आतंकवादियों और सरकारी बलों के मृतकों के आंकड़ों का अंदाजा लगाना बेहद मुश्किल है और शांति वार्ता रद्द होने के बाद अफ़ग़ानिस्तान में संघर्ष और तेज़ होने की आशंका है।