देश की लगातार ख़राब होती आर्थिक स्थिति के बीच ही अब नौसेना का भी बजट कम कर दिया गया है। इस कारण नौसेना को जंगी जहाज़ के निर्माण या ख़रीद में कटौती करना पड़ सकता है। यह बात कोई और नहीं, बल्कि ख़ुद नौसेना प्रमुख एडमिरल करमबीर सिंह ने स्वीकार की है। इनके इस बयान से अब यह सवाल उठ रहा है कि क्या देश की ख़राब आर्थिक स्थिति का असर रक्षा मामलों पर भी पड़ने लगा है
नौसेना प्रमुख ने कहा है कि रक्षा बजट में नौसेना का हिस्सा 2012 में 18 फ़ीसदी से घटकर 2019-20 में 12 फ़ीसदी पर आ गया है। यानी नौसेना प्रमुख सिंह का साफ़ तौर पर कहना है कि बजट कम होने से नौसेना को दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। बता दें कि थल सेना के बारे में भी मई महीने में भी ऐसी ही दिक्कतों की ख़बरें आई थीं। तब सेना ने रक्षा मंत्रालय को इस बारे में एक चिट्ठी लिख कर रेड अलर्ट जारी किया था। इसने सरकार को आगाह किया था कि घटिया गोला-बारूद की वजह से युद्ध की तैयारियों पर दूरगामी और बुरा असर पड़ सकता है। इससे पहले सेना की हालत पर रक्षा मामलों से जुड़ी संसदीय कमेटी की रिपोर्ट में यह ख़ुलासा किया गया था कि सेना के पास हथियारों की भारी कमी है, काफ़ी हथियार पुराने पड़ गये हैं। इसके बाद विपक्षी दलों ने बीजेपी सरकार को निशाने पर लिया था। उनका यह हमला इसलिए भी तीखा था कि भारतीय जनता पार्टी ने राष्ट्रवाद को चुनाव प्रचार का मुख्य आधार बनाया, सेना का जमकर इस्तेमाल किया और विपक्षी दलों, ख़ास कर कांग्रेस को खूब आड़े हाथों लिया था, लेकिन बीजेपी सरकार के बारे में रिपोर्ट आई थी कि वह सेना को उचित गोला-बारूद तक मुहैया नहीं करा रही थी। हालाँकि सरकार ने इन रिपोर्टों को खारिज कर दिया था।
इस बीच अब एडमिरल करमबीर सिंह का नौसेना में बजट की कमी पर बयान आया है। उन्होंने कहा कि नौसेना के कम हो रहे बजट के कारण 2027 तक बेड़े में 200 जंगी जहाज़ करने की दीर्घकालीन योजना पर फिर से विचार करने पर मजबूर होना पड़ा है। नौसेना की समुद्र में ताक़त को मज़बूती देने के लिए 2027 तक के लिए 200 जंगी जहाज़ का लक्ष्य रखा गया था। फिर सवालों के जवाब में नौसेना के वाइस एडमिरल जी अशोक कुमार ने कहा कि 2027 तक क़रीब 175 जंगी जहाज़ ही बेड़े में शामिल हो सकते हैं। नेवी के पास फ़िलहाल 130 जंगी जहाज़ हैं और 50 अन्य तैयार किए जा रहे हैं।
एडमिरल सिंह नौसेना दिवस की पूर्व संध्या पर मंगलवार को मीडिया को संबोधित कर रहे थे। बता दें कि 2019-20 में नौसेना को 56,388 करोड़ रुपये दिए गए थे, जिनमें से 25,656 करोड़ रुपये पूंजीगत व्यय के लिए थे, या नए जहाज़ों के भुगतान के लिए। इसकी 90 प्रतिशत रक़म पिछले वर्षों में ख़रीदे गए जंगी जहाज़ों और उपकरणों के किश्तों का भुगतान करने के लिए पहले से ही अनुमानित थी। नौसेना प्रमुख ने कहा,
“
हमने अनुमान लगाया है और हमें उम्मीद है कि हमें कुछ और पैसे मिलेंगे। इसके आधार पर हम अपनी आवश्यकताओं को प्राथमिकता देंगे ताकि देश के समुद्री हितों से समझौता न किया जाए।
एडमिरल करमबीर सिंह, नौसेना प्रमुख
मीडिया कर्मियों के इस सवाल पर कि क्या बजट की कमी के कारण तीसरे विमान वाहक पोत आईएनएस विशाल के निर्माण पर भी आँच आ सकती है, एडमिरल सिंह ने इतना ही कहा, ‘नौसेना प्रमुख के रूप में, मुझे विश्वास है कि देश की आवश्यकता है तीन विमान वाहक पोत की।’ बता दें कि आईएनएस विशाल को कोचीन शिपयार्ड (सीएसएल) में बनाने की योजना है।
इससे पहले इसी साल मई में ऐसी रिपोर्टें आई थीं कि सेना ने इस पर चिंता जताई है कि टैंक, तोप, बंदूक़ें और हवाई सुरक्षा में इस्तेमाल होने वाले गोला-बारूद ख़राब और घटिया क्वालिटी के हैं। ऑर्डिनेंस फ़ैक्ट्री बोर्ड इन गोला-बारूदों की आपूर्ति करता है। सेना की चिट्ठी के हवाले से रिपोर्टों में कहा गया था कि सेना ने कहा कि पहले से ज़्यादा हादसे हो रहे हैं, जिससे अधिक संख्या में लोग मारे जा रहे हैं, घायल हो रहे हैं और उपकरण बर्बाद हो रहे हैं। इससे सेना का मनोबल गिर रहा है और इन चीजों के इस्तेमाल को लेकर अनिश्चितता का वातावरण बन रहा है।
हथियारों की कमी
सेना की हालत पर रक्षा मामलों से जुड़ी संसदीय कमेटी की रिपोर्ट में यह ख़ुलासा किया गया था कि सेना के पास हथियारों की भारी कमी है, काफ़ी हथियार पुराने पड़ गये हैं, लेकिन इसके बावजूद सेना को पैसे मुहैया कराये जाने के बजाय मोदी सरकार ने उसमें कटौती कर दी। यह रिपोर्ट देनेवाली संसद की इस स्थायी समिति के अध्यक्ष बीजेपी सांसद मेजर जनरल भुवन चंद्र खंडूरी थे, जो केन्द्रीय मंत्री भी रह चुके हैं और उत्तराखंड के मुख्यमंत्री भी। इस रिपोर्ट में बताया गया था कि हमारे क़रीब 68 फ़ीसदी गोला-बारूद और हथियार बाबा आदम के जमाने के हैं। केवल 24 फ़ीसदी ही ऐसे हथियार हैं, जिन्हें हम आज के ज़माने के हथियार कह सकते हैं और सिर्फ़ आठ फ़ीसदी हथियार ऐसे हैं, जो 'स्टेट ऑफ़ द आर्ट' यानी अत्याधुनिक कैटेगरी में रखे जा सकते हैं।
कम हुआ है रक्षा बजट
पीयूष गोयल ने अंतरिम बजट पेश करते हुए दावा किया था कि आज़ादी के बाद रक्षा मद में सबसे ज़्यादा 3 लाख करोड़ रुपये अलॉट इसी साल किए गए हैं। लेकिन सच यह है कि पिछले साल की तुलना में इस साल रक्षा बजट में सिर्फ़ 5,000 करोड़ रुपए की बढ़ोतरी की गई है। रक्षा बजट में यह अब तक की सबसे कम बढ़ोतरी में से एक है।
कुल रक्षा बजट सकल घरेलू अनुपात का सिर्फ़ 1.58 प्रतिशत है। साल 1962 में भारत का रक्षा बजट उस समय के सकल घरेलू उत्पाद का 1.5 प्रतिशत था।
कैसे होगा सेना का आधुनिकीकरण
यह जानना ज़रूरी इसलिए भी है कि कम पैसे की वजह से सैन्य बलों का आधुनिकीकरण नहीं हो पाएगा। थल सेना को आधुनिकीकरण और क्षमता विस्तार के लिए 36,000 करोड़ रुपये की ज़रूरत है, लेकिन उसे मिलेंगे सिर्फ़ 29,700 करोड़ रुपए। नौसेना को 35,714 करोड़ रुपये चाहिए, उसके लिए 22,227 करोड़ रुपये अलॉट हुए हैं। इसी तरह वायु सेना को 74,895 करोड़ रुपये चाहिए, लेकिन उसे मिलेंगे महज़ 39,347 करोड़ रुपये। यानी सेना को 1,46,609 करोड़ रुपए अपने आधुनिकीकरण के लिए चाहिए। पर उसके लिए अंतरिम बजट में महज 91,274 करोड़ रुपये मिलेंगे। यानी, उसे 55,335 करोड़ रुपये ज़रूरत से कम मिलेंगे। साफ़ है, सेना का आधुनिकीकरण नहीं हो पाएगा, न ही इसकी क्षमता का विस्तार मुमकिन है।