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आईआईटी जैसे अकादमिक संस्थानों में भी कैसे फैल रही है कट्टरता?

आईआईटी जैसे अकादमिक संस्थानों में भी कैसे फैल रही है कट्टरता?

आईआईटी जैसी शीर्ष अकादमिक व बौद्धिक संस्थानों में कट्टरपंथी सोच घुस चुकी है? आख़िर समुदाय विशेष के प्रति नफ़रत फैलाने वाला व्यक्ति कैसे वहाँ पहुँच गया और वह भी प्रोफ़ेसर के पद पर?

इंडियन इंस्टीच्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी जैसी शीर्ष संस्था में पढ़ाने वाला व्यक्ति यदि कट्टरपंथी और समुदाय विशेष से नफ़रत करने वाली बातें कहे तो क्या कहा जाए क्या इससे यह साफ़ नहीं होता है कि अध्ययन-अध्यापन जैसे बौद्धिक पेशे में भी कट्टरता बढ़ रही है क्या इससे यह नहीं पता चलता है कि आईआईटी जैसी गौरवशाली संस्था में भी कट्टरता घुस चुकी है 

ये सवाल इसलिए उठ रहे हैं कि आईआईटी, कानपुर के प्रोफ़ेसर वशि मंत शर्मा ने कन्हैया कुमार से लेकर कठुआ बलात्कार कांड और ताजमहल से फ़ैज अहमद फ़ैज जैसे मुद्दों पर ऐसी बातें कही हैं, जो बेहद भड़काऊ हैं और जिन्हें किसी भी सूरत में उचित नहीं कहा जा सकता है।

अंग्रेज़ी अख़बार इंडियन एक्सप्रेस ने एक ख़बर में प्रोफ़ेसर शर्मा की दो किताबों के हवाले से कहा है कि किस तरह उन्होंने उनमें बेहद आपत्तिजनक बातें कही हैं।

कठुआ बलात्कार कांड

जम्मू-कश्मीर के कठुआ बलात्कार कांड पर प्रोफ़ेसर शर्मा ने कहा कि यदि हिन्दू बलात्कार करने वाले होते तो कोई भी मुसलमान औरत नहीं बच सकती थी। उन्होंने अपनी किताब में लिखा : 

क्या कभी आपने सुना है कि हिन्दुओं ने मंदिर में बलात्कार किया है यह हमारे ख़ून में नहीं है। यदि हमने ऐसा किया होता तो मुसलमान हमलावरों को उन्हीं की भाषा में जवाब दिया होता। उन्होंने दसियों लाख महिलाओं का बलात्कार किया। यदि हिन्दू ऐसा करने वाले होते और वह भी धर्म के नाम पर तो कोई भी मुसलमान औरत नहीं बच सकती थी।’


वशि मंत शर्मा, प्रोफ़ेसर, आईआईटी, कानपुर

भारतीय मुसलमान

प्रोफ़ेसर शर्मा की किताब ‘इन्डियन मुसलिम्स, चिल्ड्रेन ऑफ़ इंडिया ऑर स्लेव्स ऑफ़ अरब्स’, में कहते हैं कि ‘भारतीय उप महाद्वीप के मुसलमान यह सोचते हैं कि वे अरब से आए थे, पर सच यह है कि उनके पूर्वज हिन्दू और बौद्ध थे।’ किताब में कहा गया है, ‘ख़ुद को, और निश्चित रूप से अल्लाह और मुहम्मद को यह समझाने के लिए वे अरब मुसलिम से कमतर नहीं है, मुल्ला अपने अनुयायियों से हर मामले में अरब मुसलमानों की नकल करने को कहते हैं।’

फ़ैज : शर्मा ने हाल के दिनों में एक ब्लॉग लिखा है। इसमें वे इस बात से बिल्कुल इनकार करते हैं कि फ़ैज़ अहमद फ़ैज पाकिस्तानी सत्ता प्रतिष्ठान के ख़िलाफ़ थे या उनकी शायरी सत्ता को चुनौती देती थी।

वे लिखते हैं, ‘क्रांतिकारी फ़ैज़ साहेब ने धर्मनिरपेक्ष भारत के ऊपर जिन्ना के इसलामी पाकिस्तान को तरजीह दी। वह पाकिस्तान जिसने हिन्दू, सिख और दूसरे ग़ैर-मुसलमानों को दोयम दर्जे का समझा। नहीं, वे हिन्दू भारत में मौत से डर कर पाकिस्तान नहीं चले गए, उन्होंने पाकिस्तान को मुसलमानों की मुक्ति के रूप में देखा था।’

कन्हैया कुमार

इतना ही नहीं, प्रोफ़ेसर शर्मा ने अपनी किताब ‘अ लिबरल फ़्लॉज’ में जेएनयू के छात्र नेता कन्हैया कुमार पर पटियाला हाउस कोर्ट में हुए हमले को उचित ठहराया। वे हैदराबाद में रोहित वेमुला की आत्महत्या पर भी बेहद असंवेदनशील रुख अपनाते हुए दिखते हैं। उनका मानना है कि ये लोग राष्ट्रविरोधी हैं, अफ़ज़ल गुरु के समर्थक हैं, इसलिए इनके साथ ऐसा ही होना चाहिए था।

इसी तरह ताजमहल पर उनके विचार उनकी कट्टर सोच ही दिखाते हैं। उनका कहना है कि भारतीय करदाताओं के पैसे से ताजमहल जैसी जगहों का रख रखाव नहीं होना चाहिए क्योंकि इसे मुसलमानों ने बनवाया है।

वे कहते हैं, ‘यदि भारत सरकार के पास ताज महल, लाल किला और हुमायूँ का मक़बरा जैसे इसलामी स्थलों के रख रखाव के लिए पैसे हैं तो शिवाजी की प्रतिमा पर क्यों आँसू बहा रहे हो’ 

फ़ैज़

ये वही प्रोफ़सर शर्मा हैं, जिन्होंने आईआईटी, कानपुर परिसर में फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की शायरी हम भी देखेंगे का विरोध यह कह कर किया था कि यह हिन्दू विरोधी है और इससे उनकी भावनाएँ आहत हुई हैं। इसके बाद आईआईटी ने इस पर अध्ययन के लिए एक कमिटी बना दी है। कमिटी की रिपोर्ट अब तक नहीं आई है। 

शर्मा इन्सपायर फ़ैकल्टी स्कीम के तहत आईआईटी, कानपुर, के प्रोफ़ेसर बने। वे विज्ञान व प्रौद्योगिकी विभाग में मैकेनिकल इंजीनयरिंग के प्रोफ़ेसर हैं। उन्होंने आईआईटी, बंबई से मास्टर्स और पीएच डी हैं। उन्होंने 10 किताबें लिखी हैं, सारी किताबें 'अग्निवीर' प्रकाशन ने छापी हैं। इस समूह का कहना है कि उसका मक़सद 'वेदों का गौरव' फिर से स्थापित करना है और 'हर तरह के अन्याय और भेदभाव के ख़िलाफ़ संघर्ष' करना है।

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