पंजाब: केजरीवाल का ‘सिख सीएम’ वाला दांव कितना काम करेगा?
2017 में पंजाब में पहले विधानसभा चुनाव में ही मुख्य विपक्षी दल बनने वाली आम आदमी पार्टी ने 2022 के चुनाव के लिए बड़ा दांव भी चल दिया है और पिछली बार की ग़लती को दोहराने से भी वह बची है। मंगलवार को एक दिन के पंजाब दौरे पर पहुंचे पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने एलान किया है कि सूबे में उनकी पार्टी की सरकार आती है तो मुख्यमंत्री सिख समुदाय से होगा।
2017 के चुनाव में आम आदमी पार्टी को लेकर यही कहा जाता था कि यह तो दिल्ली की पार्टी है, यहां के सिख और पंजाबियों से वह कैसे रिश्ता बना पाएगी।
तब जितना भी जोर पूरी पार्टी ने लगाया, उसका फ़ायदा उसे मिला और उसने पहले ही चुनाव में 20 सीटों पर जीत हासिल की और सरकार चला रही शिरोमणि अकाली दल-बीजेपी को पिछाड़ दिया।
बड़े चेहरों ने छोड़ा साथ
2014 में भी उसे पहली ही बार में पंजाब के लोगों ने 4 लोकसभा सीटें दी थीं लेकिन 2019 में यह संख्या घटकर एक हो गयी थी। इस दौरान कई बड़े नाम जैसे- एचएस फूलका, सांसद हरिंदर सिंह खालसा, धर्मवीर गांधी, सुखपाल सिंह खैहरा, गायक जस्सी जसराज पार्टी से दूर होते गए। लेकिन भगवंत मान केजरीवाल का भरोसा जीतने में क़ामयाब रहे और 2019 में भी चुनाव जीते।
2019 के लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद पार्टी को पंजाब से बहुत ज़्यादा उम्मीद नहीं थी लेकिन 2020 में जैसे ही मोदी सरकार कृषि क़ानून लाई और अकाली दल ने बीजेपी से नाता तोड़ा तो पार्टी नेताओं ने कुलांचे मारने शुरू कर दिए।
पंजाब से चले सिख और किसान दिल्ली के बॉर्डर पर पहुंचते, उससे पहले ही आप के नेताओं ने बुराड़ी से लेकर सिंघु बॉर्डर जाने वाले इलाक़े और दिल्ली में कई जगहों पर ‘अन्नदाता का दिल्ली में स्वागत है’ के होर्डिंग टांग दिए।
सिंघु बॉर्डर पहुंचे केजरीवाल
केजरीवाल ने इस सुनहरे मौक़े को नहीं खोया और ख़ुद कई बार सिंघु बॉर्डर पर जाकर दिल्ली सरकार की ओर से किसानों के लिए किए इंतजामों की समीक्षा की और किसानों के समर्थन में एक दिन के अनशन पर भी रहे। इस दौरान किसानों को खालिस्तानी बताने पर भी केजरीवाल बीजेपी और मोदी सरकार पर हमला बोलते रहे और पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह से भी उलझे।
क्यों खेला दांव?
पंजाब में 59 फ़ीसदी सिख आबादी है जबकि 39 फ़ीसदी हिंदू आबादी। सिखों में भी अधिकतर किसान हैं इसलिए केजरीवाल ने दिल्ली के बॉर्डर पहुंचे किसानों का भी ख़्याल रखा और चुनाव के 7 महीने पहले स्थिति साफ़ कर दी कि मुख्यमंत्री सिख समुदाय का ही होगा।
हिंदू वोटों की सियासत के लिए भी पार्टी बड़े नामों को अपनी ओर खींच रही है। जैसे- पूर्व आईपीएस कुंवर विजय प्रताप सिंह को केजरीवाल ने पार्टी में शामिल किया है।
केजरीवाल अब पंजाब को समझ गए हैं। इसीलिए उन्होंने कहा कि 2015 में गुरू ग्रंथ साहिब के बेअदबी मामले में न्याय होगा और इसके दोषियों को सजा दिलवाएंगे। कांग्रेस में नवजोत सिंह सिद्धू ने इसे बड़ा मुद्दा बना लिया है और अमरिंदर सिंह को बैकफ़ुट पर धकेला हुआ है।
मेहनत कर रहे चड्ढा
केजरीवाल ने यह भी कहा कि पूरा पंजाब अब बदलाव चाहता है और आम आदमी पार्टी ही एक उम्मीद और विकल्प है। आप ने दिल्ली के नौजवान विधायक राघव चड्ढा को पंजाब का प्रभारी बनाया हुआ है। पंजाबी समुदाय से आने वाले चड्ढा इन दिनों दिन-रात पंजाब को नाप रहे हैं।
पार्टियों की हालत
पंजाब की राजनीति में ताज़ा सूरत-ए-हाल यही है कि कांग्रेस सिद्धू बनाम अमरिंदर सिंह की लड़ाई में पिस चुकी है, कल क्या होगा कोई नहीं जानता लेकिन हालात यही रहे तो कांग्रेस के लिए चुनाव नतीजे बेहद ख़राब होंगे।
बीजेपी की हालत गयी-गुजरी है और उसके नेताओं ने कहा है कि किसान आंदोलन के कारण उनका घर से निकलना मुश्किल हो गया है। फरवरी में हुए नगर निगम चुनाव में पार्टी खेत रही थी। वैसे भी वह पंजाब में कोई बड़ी राजनीतिक ताक़त नहीं थी लेकिन जो सहारा था वह भी चला गया।
अकाली-बीएसपी गठबंधन
लेकिन अकाली दल ने मौक़े की नज़ाकत को देखते हुए बीएसपी के साथ गठबंधन कर लिया है। यह गठबंधन कांग्रेस, आम आदमी पार्टी की मुश्किलें बढ़ाएगा क्योंकि 32 फ़ीसदी दलित वोटों का बड़ा हिस्सा इस गठबंधन को चुन सकता है। इसका बड़ा कारण दलितों के बड़े नेता कांशीराम का पंजाब से होना भी है।
पंजाब में 1996 के लोकसभा चुनाव में इसी गठबंधन को बड़ी सफलता मिली थी तब इस गठबंधन को 13 में से 11 सीटों पर जीत मिली थी।
आम आदमी पार्टी के हौसले इसलिए भी बुलंद हैं क्योंकि कुछ चुनावी सर्वे में उसे पंजाब में सबसे ज़्यादा सीटें मिलने का अनुमान जताया गया है। साथ ही, पार्टी ने इस बार पहले ही सिख समुदाय से मुख्यमंत्री होगा वाला दांव चलकर सही राजनीतिक चाल चल दी है। देखना होगा कि सिख और हिंदू समुदाय उस पर कितना भरोसा कर पाता है और किसान उसे कितनी वरीयता देते हैं।