आप का 205 सीटों पर कहीं भी खाता नहीं खुला, केजरीवाल के हसीन सपने चकनाचूर
आम आदमी पार्टी (आप) का विधानसभा चुनाव 2023 में खराब प्रदर्शन का सिलसिला जारी है। उसने राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में 205 सीटों पर चुनाव लड़ा लेकिन किसी भी सीट पर जीत हासिल करने में नाकाम रही। उसने नोटा से भी वोट हासिल किए। पंजाब को छोड़कर, जहां वह 2022 में सत्ता में आई, गुजरात और गोवा में भी उसने इतना बुरा प्रदर्शन नहीं किया।
इंडिया गठबंधन की 6 दिसंबर को बैठक बुलाई गई है। आप भी इंडिया गठबंधन में है। लेकिन उस बैठक से पहले ही अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली AAP ने उत्तर भारत में "सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी" होने का दावा कर दिया। आप के वरिष्ठ नेता जैस्मीन शाह ने ट्वीट किया- "नतीजों के बाद, आम आदमी पार्टी 2 राज्य सरकारों पंजाब और दिल्ली के साथ उत्तर भारत में सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी बनकर उभरी है।" आप पार्टी ने अपने ट्विटर हैंडल से भी महत्वपूर्ण बयान जारी किया। उसने लिखा- "अगर गठबंधन कायम रहता है और आगे बढ़ता है, तो कांग्रेस को 2024 में चुनाव लड़ने वाली सीटों की संख्या में समझौता करना होगा।" तेलंगाना में जीत के लिए कांग्रेस को बधाई देते हुए आप ने कहा, "हालांकि यह लोकसभा के लिए देश के मूड को प्रतिबिंबित नहीं करता है क्योंकि कांग्रेस ने 2018 में एमपी, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में जीत हासिल की थी लेकिन बीजेपी ने 2019 के लोकसभा में जीत हासिल की थी।" तीन राज्यों में अपनी हार पर प्रतिक्रिया देते हुए पार्टी ने कहा, “आप इन राज्यों में गठन के चरण में है और हम यह सुनिश्चित करने के लिए चुनाव लड़ रहे थे कि हमारा संदेश सभी तक पहुंचे।
इंडिया गठबंधन के कई नेता चार राज्यों के चुनाव में अवसर खोज रहे थे, लेकिन उनकी रणनीति नाकाम हो गई। समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव की कहानी सत्य हिन्दी पर एक अलग रिपोर्ट में बताई जा चुकी है लेकिन यहां हम आपको एक दिलचस्प आंकड़े के साथ आम आदमी पार्टी और केजरीवाल के ध्वस्त होते सपनों की कहानी बता रहे हैं।
आप ने मध्य प्रदेश में 66 सीटों पर चुनाव लड़ा, उसे मात्र 0.53% वोट मिले, जो नोटा को मिले वोट प्रतिशत से भी कम है। केजरीवाल हरियाणा के रहने वाले हैं। उन्होंने हरियाणा से सटे राजस्थान में 85 प्रत्याशी उतारे, यहां उनकी पार्टी की हालत और भी पतली रही। आप के 85 प्रत्याशियों को मात्र 0.38% वोट मिले। यहां भी नोटा उससे आगे निकल गया। इसी तरह छत्तीसगढ़ में 54 सीटों पर आप मैदान में उतरी लेकिन उसे सिर्फ 0.93% वोट मिले।
आप इतने खराब प्रदर्शन का यह कहकर बचाव कर रही है कि भाजपा भी तो कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में बुरी तरह हार चुकी है। आप ने कहा कि वह अपने "प्रारंभिक चरण" में है और सभी तक संदेश पहुंचाने के लिए इन राज्यों में चुनाव लड़ रही है। उसने उदाहरण दिया कि “कर्नाटक चुनाव में बीजेपी को 31 सीटों पर अपनी जमानत गंवानी पड़ी। खुद पीएम नरेंद्र मोदी ने आंध्र प्रदेश में प्रचार किया, लेकिन बीजेपी सभी 173 सीटें हार गई और उसे नोटा से भी कम अंक मिले। क्या इससे गुजरात में बीजेपी के वोट शेयर पर असर पड़ा?” आप का तर्क इसीलिए सामने आ रहा है, क्योंकि वो चार राज्यों में केजरीवाल के हसीन सपने के धराशाई होने का बचाव करना चाहती है।
द हिन्दू की एक रिपोर्ट में आप के अज्ञात नेता का बयान छपा है। जिसमें वो कह रहे हैं- “देखिए, हम अभी भी एक युवा पार्टी हैं और इसे अन्य राज्यों में फैलने में समय लगेगा। हम कांग्रेस की तरह नहीं हैं, जो 75 साल से चुनाव लड़ रही है और फिर भी हार रही है। हम अन्य राज्यों में बढ़ रहे हैं, लेकिन यह रातोरात नहीं हो सकता।''
आप की पूरी नजर 6 दिसंबर की इंडिया गठबंधन की बैठक पर है। द हिन्दू की रिपोर्ट में आप के एक इनसाइडर का हवाला दिया गया है। आप इनसाइडर कहता है- “राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के खराब प्रदर्शन का मतलब है कि वह इंडिया गठबंधन के सीट-बंटवारे के फॉर्मूले पर फैसला नहीं कर पाएगी। अगर कांग्रेस ने तीन राज्यों में जीत हासिल की होती, तो वही सीट बंटवारे पर शर्तें तय करती नजर आती। अब उसे अपने सहयोगियों की बात सुननी होगी और आम सहमति पर पहुंचना होगा। इसका असर न सिर्फ दिल्ली और पंजाब में, बल्कि अन्य राज्यों में भी सीटों के बंटवारे पर पड़ेगा।''