चुनाव से पहले आप को झटका; 7 विधायकों ने इस्तीफ़ा क्यों दिया?
दिल्ली विधानसभा चुनाव में मतदान से सिर्फ़ पाँच दिन पहले केजरीवाल की आम आदमी पार्टी को झटका लगा है। आप के सात विधायकों ने शुक्रवार को इस्तीफा दे दिया। इस्तीफ़ा देने के पीछे जो वजहें उन्होंने बताई हैं वे केजरीवाल की छवि को धक्का पहुँचाने वाले हैं।
जिन सात मौजूदा विधायकों ने इस्तीफ़ा दिया है उनमें से छह को पार्टी ने बाहर कर दिया है और उन्हें इस चुनाव में लड़ने का मौक़ा नहीं दिया गया है, क्योंकि पार्टी ने उन सीटों से नए उम्मीदवार उतारे हैं। इस्तीफा देने वाले विधायकों में महरौली से नरेश यादव, त्रिलोकपुरी से रोहित कुमार, जनकपुरी से राजेश ऋषि, कस्तूरबा नगर से मदन लाल, आदर्श नगर से पवन शर्मा और पालम से भावना गौड़ शामिल हैं। बिजवासन से बीएस जून पहले आप विधायक थे जिन्होंने इस्तीफा दिया। पालम की भावना गौड़ ने अपने त्यागपत्र में पार्टी प्रमुख अरविंद केजरीवाल पर अपनी निराशा जताई और कहा, 'मेरा आप पर विश्वास नहीं रहा।'
नरेश यादव पहले महरौली से उम्मीदवार थे। दिसंबर में कुरान की बेअदबी के एक मामले में पंजाब की एक अदालत ने उन्हें दोषी ठहराया था और दो साल की जेल की सजा सुनाई थी। जब आप ने 5 फरवरी को होने वाले दिल्ली चुनाव के लिए अपने उम्मीदवारों की पांचवीं सूची जारी की, तो पार्टी ने नरेश यादव की जगह महेंद्र चौधरी को महरौली से उम्मीदवार घोषित किया।
पालम विधायक भावना गौर ने आप के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल को लिखे पत्र में कहा कि वह इसलिए इस्तीफा दे रही हैं, क्योंकि उनका केजरीवाल और पार्टी पर से भरोसा उठ गया है। कस्तूरबा नगर विधायक मदन लाल ने भी यही कहा।
भावना गौर और मदन लाल ने दो अलग-अलग पत्रों में लिखा, 'मैं आम आदमी पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे रही हूँ, क्योंकि मेरा आप और पार्टी पर से भरोसा उठ गया है। कृपया इसे स्वीकार करें।' त्रिलोकपुरी विधायक रोहित महरौलिया, जनकपुरी विधायक राजेश ऋषि, कस्तूरबा नगर विधायक मदन लाल और महरौली विधायक नरेश यादव ने भी आम आदमी पार्टी की प्राथमिक सदस्यता छोड़ दी। आदर्श नगर से पवन शर्मा और बिजवासन से बीएस जून पार्टी छोड़ने वाले अन्य दो आप विधायक हैं।
इस्तीफा देने वालों में से छह विधायक ऐसे हैं जिन्हें आप ने 2025 के विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए पार्टी का टिकट नहीं दिया।
एक रिपोर्ट के अनुसार नरेश यादव ने कहा है, 'आप का उदय भ्रष्टाचार के खिलाफ हुए अन्ना आंदोलन से भारतीय राजनीति से भ्रष्टाचार को मुक्त करने के लिए हुआ था। लेकिन अब मैं बहुत दुखी हूं कि भ्रष्टाचार आम आदमी पार्टी बिल्कुल भी कम नहीं कर पाई, बल्कि आप ही भ्रष्टाचार के दलदल में लिप्त हो चुकी है।' इधर, विधायकों के पार्टी से इस्तीफे पर आप विधायक ऋतुराज झा ने बीजेपी पर विधायकों को लालच देने का आरोप लगाया है। दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के अनुसार उन्होंने कहा, 'मुझे भी पार्टी छोड़ने का लालच दिया गया था। लेकिन मैं आखिरी दम तक आप में रहूंगा।'
पवन शर्मा ने कहा है कि आम आदमी पार्टी जिस विचारधारा पर बनी थी, उस विचारधारा से भटक चुकी है और इस वजह से आप की दुर्दशा देख कर मन बहुत दुखी है।
भूपेंदर सिंह जून ने कहा कि आप की स्थापना जिन मूल्यों पर की गई थी, अब उन नैतिक मानदंडों की घोर उपेक्षा चिंताजनक है और पार्टी ने आपराधिक पृष्ठभूमि वालों को टिकट दिया। मदनलाल ने कहा कि मेरा आप से भरोसा पूरी तरह से खत्म हो चुका है, इसलिए मैं पार्टी से इस्तीफा दे रहा हूं। रोहित मेहरौलिया ने कहा कि 'जिन्हें बाबासाहब आंबेडकर की केवल फोटो चाहिए, उनके विचार नहीं, ऐसे मौका-परस्त और बनावटी लोगों से आज से मेरा नाता खत्म। मैं आप की प्राथमिक सदस्यता सहित सभी पदों से इस्तीफा देता हूं।' राजेश ऋषि ने कहा, 'आप भ्रष्टाचार मुक्त शासन, पारदर्शिता और जवाबदेही के सिद्धांतों पर आधारित थी। पार्टी से मैंने इन मूल्यों से एक महत्वपूर्ण दूरी देखी है। पार्टी करप्शन और भाई-भतीजावाद का कटोरा बन गई है।'
दिल्ली चुनाव के लिए आप उम्मीदवारों की सूची के अनुसार, पार्टी ने आदर्श नगर से मुकेश गोयल, जनकपुरी से प्रवीण कुमार, बिजवासन से सुरेंद्र भारद्वाज, पालम से जोगिंदर सोलंकी, कस्तूरबा नगर से रमेश पहलवान और त्रिलोकपुरी से अंजना पारचा को मैदान में उतारा है।
माना जा रहा है कि दिल्ली चुनाव में इस बार काँटे की टक्कर है। दिल्ली चुनाव में इस बार भी त्रिकोणीय मुक़ाबला होगा। पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की अगुआई वाली आप लगातार तीसरी बार सत्ता में बने रहने की कोशिश कर रही है, जबकि भाजपा राष्ट्रीय राजधानी में सत्ता हथियाने की कोशिश में है। कांग्रेस भी कड़ी टक्कर देने की तैयारी कर रही है और उसे उम्मीद है कि वह चौंकाने वाली जीत हासिल करेगी।
दिल्ली विधानसभा के मौजूदा चुनाव में 9 सीटें ऐसी हैं जहाँ 2020 के चुनाव नतीजों ने आप और बीजेपी दोनों की साँसें अटका दी हैं। ये नौ सीटें वे हैं जहाँ जीत का अंतर काफ़ी कम रहा था। ख़ास बात यह है कि इन सीटों पर लगातार जीत का अंतर कम हो रहा है। इन सीटों पर 2015 में यह अंतर 2020 से कहीं ज़्यादा था। इन सीटों पर 2020 में 4000 से कम अंतर से जीत के नतीजे आए थे। तो सवाल है कि कुछ समर्थक भी इधर-उधर हुए तो चुनाव नतीजे क्या प्रभावित नहीं होंगे?