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2008 जयपुर सीरियल ब्लास्ट केसः सुप्रीम कोर्ट क्यों जा रही है गहलोत सरकार

2008 जयपुर सीरियल ब्लास्ट केसः सुप्रीम कोर्ट क्यों जा रही है गहलोत सरकार

जयपुर सीरियल ब्लास्ट मामले में हाईकोर्ट का फैसला आ चुका है, जिसमें तीन आरोपियों को अदालत ने बरी कर दिया है। लेकिन राजस्थान की गहलोत सरकार फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जा रही है। हाईकोर्ट ने पुलिस थ्यौरी की जो धज्जियां उड़ाई हैं, उस पर ध्यान देने की बजाय राज्य सरकार भाजपा के दबाव में आ गई लगती है। 

जयपुर हाईकोर्ट ने हाल ही में जयपुर सीरियल बम ब्लास्ट मामले में आजमगढ़ के चार में से तीन नौजवानों को बाइज़्ज़त बरी किया है। एक का मामला किशोर बोर्ड को भेजा है। हाई कोर्ट से बरी हुए इन नौजवानों को निचली अदालत ने फांसी की सजा सुनाई थी। जयपुर हाई कोर्ट ने इन्हें बरी करते हुए एटीएस की जांच पर गंभीर सवाल उठाए हैं। कोर्ट ने बेहद कड़ा रुख अख्तियार करते हुए कहा कि जांच अधिकारियों को लीगल जानकारी नहीं है। हाईकोर्ट ने जांच अधिकारियों के खिलाफ भी कार्रवाई के आदेश दिए हैं।

सुप्रीम कोर्ट जाएगी गहलोत सरकार

जयपुर हाई कोर्ट में पुलिस की फजीहत होने से राजस्थान की अशोक गहलोत सरकार सकपका गई है। सरकार ने हाई कोर्ट में मुकदमा हारने का ठीकरा अपने अतिरिक्त महाधिवक्ता राजेंद्र यादव के सिर फोड़ते हुए तत्काल प्रभाव से उन्हें पद से हटा दिया है। राजस्थान सरकार ने जयपुर हाई कोर्ट के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने का ऐलान किया है। इस फैसले पर जनता के आक्रोश को देखते हुए सरकार ने सुप्रीम कोर्ट जाने का फैसला कियाहै।  

गहलोत सरकार के इस फैसले पर पार्टी के अंदर और बाहर सवाल उठ रहे हैं। पार्टी में कांग्रेस के कई नेता इसके खिलाफ हैं। वहीं मानव अधिकारों के लिए संघर्ष करने वाले उत्तर प्रदेश के संगठन रिहाई मंच ने इसे गहलोत सरकार की सांप्रदायिक मानसिकता करार देते हुए कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी से कुछ कड़े सवाल पूछे हैं।

राहुल से क्या पूछा रिहाई मंच ने?

रिहाई मंच ने बाकायदा बयान जारी करके जयपुर हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने के गहलोत सरकार के फैसले की कड़ी निंदा का है। मंच ने पूछा है, ‘युवाओं की बात करने वाले पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी स्पष्ट करें कि क्या सालों से जेल में कैद ये युवा युवा नहीं हैं? क्या मुसलमान होना या आजमगढ़ का होना उनका जुर्म है? क्या केंद्र में उनकी सरकार के दौरान हुए बटला हाउस एनकाउंटर की वजह से कांग्रेस ऐसा कर रही है? बयान में आगे कहा गया है, ‘होना तो यह चाहिए था कि पंद्रह-सोलह वर्षो से निर्दोषों को जेल की सलाखों के पीछे रखने की साजिश करने वाले पुलिस और जांच एजेंसियों के खिलाफ कार्रवाई होती। कांग्रेस सरकार दोषी पुलिस अधिकारियों के साथ खड़ी है। ऐसे में सिर्फ जांच एजेंसियों की ही नहीं, कांग्रेस की भूमिका की भी जांच की जरूरत है।‘

क्या है जयपुर सीरियल बम ब्लास्ट मामलाः 13 मई 2008 को जयपुर के चांदपोल बाजार स्थित हनुमान मंदिर में एक के बाद एक लगातार 8 बम धमाके हुए थे। इनमें 71 लोगों की जान गई थी और 185 लोग घायल हुए थे। इन धमाकों में टिफिन बम का इस्तेमाल किया गया था। इन्हें साइकिल पर लगाया गया था। उस दिन मंगलवार था। हनुमान मंदिर में श्रद्धालुओं की भीड़ ज्यादा थी। मंदिर में बज रही घंटियों की आवाज के बीच जोरदार ब्लास्ट हुआ। सभी धमाके 7 बजकर 20 मिनट से लेकर 7 बजकर 36 मिनट के बीच हुए। अचानक और एक के बाद एक हुए इन धमाकों से मंदिर में अफरा तफरी मच गई थी। भगदड़ में लोग इधर उधर भागने लगे। इसी लिए मरने वालों और घायलों की संख्या काफी ज्यादा रही।

क्या कार्रवाई की पुलिस और एटीएस ने?

इस मामले में कुल 13 लोगों को पुलिस ने आरोपी बनाया था। इनमे से एक शाहबाज को विशेष अदालत ने सबूतों के अभाव में बरी कर दिया था। 3 आरोपी अब तक फरार है। तीन आरोपी आरिफ उर्फ जुनैद, यासीन भटकल और असदुल्लाह अख्तर दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद है। आरिफ पर दिल्ली में सीरियल बम धमाकों का भी आरोप है। दो आरोपी आतिफ और साजिद दिल्ली में बाटला हाउस एनकाउंटर में मारे जा चुके हैं। उन पर बम प्लांट करने और धमाकों का वीडियो बनाने का आरोप था। चार आरोपी जयपुर जेल में बंद थे। इन्हें जयपुर हाई कोर्ट ने बुधवार को बरी कर दिया।  निचली अदालत ने इन चारों को फांसी की सजा सुनाई थी।

निचली अदालत ने दी दी फांसी की सजा

हाई कोर्ट से बरी हुए इन चारों को जिला कोर्ट ने 2019 में फांसी की सजा सुनाई थी। इसी के खिलाफ 4 आरोपी हाईकोर्ट गए थे। 4 आरोपी में से एक मोहम्मद सलमान घटना के दिन नाबालिग था, कोर्ट ने माना है कि वह 13 मई 2008 को 16 साल 10 महीने का था। निचली अदालत में सजा सुनाते वक्त कोर्ट बेहद सख्त टिप्पणी की थी। तब कोर्ट ने कहा था कि विस्फोट के पीछे जेहादी मानसिकता थी। यह मानसिकता यहीं नहीं थमी। इसके बाद अहमदाबाद और दिल्ली में भी विस्फोट किए गए। कोर्ट ने मोहम्मद सैफ, सैफुर्रहमान, सरवर आजमी और मोहम्मद सलमान को हत्या, राजद्रोह और विस्फोटक अधिनियम के तहत दोषी पाया था।

जयपुर हाई कोर्ट ने क्यों पलटा फैसलाः पिछले बुधवार को जयपुर हाई कोर्ट ने दोषियों की तरफ से दाखिल की गई 28 याचिकाओं पर लगातार 48 दिन की सुनवाई के बाद फैसला सुनाया। इस दौरान दोनों पक्षों के बीच तीखी बहस हुई। अभियोजन पक्ष अपने आरोप साबित करने में नाकाम रहा। आरोपियों के वकील के मुताबिक कोर्ट ने कहा है कि आरोपियों पर जो चार्ज लगाए गए हैं, वे कहीं से भी साबित नहीं होते हैं। एटीएस और सरकारी वकील एक भी आरोप साबित नहीं कर पाए। न वे उनकी दिल्ली से जयपुर यात्रा को साबित कर सके हैं, न ही बम इम्प्लांट करने को साबित कर पाए हैं।

जयपुर हाई कोर्ट ने क्यों पलटा फैसला?

पिछले बुधवार को जयपुर हाई कोर्ट ने दोषियों की तरफ से दाखिल की गई 28 याचिकाओं पर लगातार 48 दिन की सुनवाई के बाद फैसला सुनाया। इस दौरान दोनों पक्षों के बीच तीखी बहस हुई। अभियोजन पक्ष अपने आरोप साबित करने में नाकाम रहा। आरोपियों के वकील के मुताबिक कोर्ट ने कहा है कि आरोपियों पर जो चार्ज लगाए गए हैं, वे कहीं से भी साबित नहीं होते हैं। एटीएस और सरकारी वकील एक भी आरोप साबित नहीं कर पाए। न वे उनकी दिल्ली से जयपुर यात्रा को साबित कर सके हैं, न ही बम इम्प्लांट करने को साबित कर पाए हैं।

हाई कोर्ट में क्यों धराशाई हुई एटीएस की थ्योरीः

जयपुर बम धमाकों को लेकर एटीएस की थ्योरी के आधार पर जिला अदालत ने भले ही चार दोषियों को फांसी की सजा सुनाई हो लेकिन हाई कोर्ट में ये थ्योरी पूरी तरह धराशाई हो गई। एटीएस एक भी आरोप साबित नहीं कर पाई। एटीएस ने दावा किया था चारों आरोपी हिंदू पहचान के साथ बस से दिल्ली से जयपुर आए। साइकिल खरीदी। उनमें बम प्लांट किए और शाम को शताब्दी एक्सप्रेस से वापिस चले गए। अदालत में पेश किए गए साइकिल के बिल, बस के टिकट फर्जी साबित हुए। बिल पर पड़े नंबर जब्त की गई साइकिलों के नंबर से मैच नहीं हुए। आरोपियों के पास से बरामद दिखाए गए छर्रे फोरेंसिक जांच में बमों में इस्तेमाल छर्रों से मैच नहीं हुए। हाई कोर्ट में पुलिस और एटीएस की थ्योरी की बखिया उखड़ गईं।

हाईकोर्ट ने जांच अधिकारियों के बारे में क्या कहा?

हाई कोर्ट ने केस की जांच में ढिलाई के लिए पूरी गलती एटीएस अफसरों की बताई है। इसके साथ ही पुलिस महानिदेशक को ऐसे अफसरों पर कार्रवाई करने के निर्देश दिए हैं। इसके साथ ही मुख्य सचिव को इस केस के ऊपर पैनी निगाह रखने के निर्देश दिए हैं।  आरोपियों के वकील के मुताबिक एटीएस अधिकारियों ने डिस्क्लोजर स्टेटमेंट पर भरोसा किया, लेकिन उससे तीन महीने पहले ही साइकिल शॉपकीपर को बुलाकर इन्वेस्टिगेशन कर लेते हैं। उन्हें बम धमाके के चार महीने बाद पहली बार साइकिल खरीदने की इन्फॉर्मेशन मिली थी तो तीन दिन बाद उन्हें किसने बता दिया था कि किशनपोल बाजार से साइकिल खरीदी गई थी। कोर्ट में पकड़ी गई एटीएस की इस बड़ी गलती की वजह से उसकी खूब फजीहत हुई।

ऐसे में ये सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर हाई कोर्ट में इतनी बुरी तरह एटीएस की थ्योरी पिटने के बाद गहलोत सरकार इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा क्यों खटखटाने जा रही है। जयपुर हाई कोर्ट ने दूध का दूध और पानी का पानी कर दिया है। आरोपी 15 साल जेल में बिता चुके हैं। अब अगर हाई कोर्ट ने उन्हें बाइज़्ज़त बरी किया है तो गहलोत सरकार को भी इस फैसले का सम्मान करते हुए उन्हें रिहा करना चाहिए। इसके साथ ही उन्हें फंसाने वाले पुलिस अफसरों के खिलाफ हाई कोर्ट के आदेश के मुताबिक जांच करनी चाहिए।

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