एक बार फिर अफ़ग़ानिस्तान की सत्ता पर काबिज होने वाले तालिबान ने कहा है कि पाकिस्तान उसके लिए दूसरे घर जैसा है। पाकिस्तानी टीवी चैनल एआरवाई न्यूज़ के साथ बातचीत में तालिबान के प्रवक्ता ज़बीहुल्लाह मुजाहिद ने कहा, “अफगानिस्तान की सीमाएं पाकिस्तान से लगती हैं। मज़हब को लेकर भी हम लोग जुड़े हुए हैं, दोनों देशों के लोग आपस में मिलते-जुलते हैं। इसलिए हम पाकिस्तान के साथ संबंधों को और मजबूत करने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं।”
मुजाहिद ने कहा कि अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे में पाकिस्तान की कोई भूमिका नहीं रही और उसने कभी भी हमारे मामलों में दख़ल नहीं दिया। प्रवक्ता ने कहा कि वह भारत सहित बाक़ी देशों से भी बेहतर रिश्ते चाहता है।
मुजाहिद ने कहा कि तालिबान अफगानिस्तान में ऐसी सरकार चाहता है जो मज़बूत हो और जिसकी बुनियाद इसलाम पर हो।
वित्तीय मदद की अपील
तालिबान के एक और प्रवक्ता सुहैल शाहीन ने सीएनएन-न्यूज़ 18 को दिए एक इंटरव्यू में अंतरराष्ट्रीय समुदाय से मदद करने की अपील की है। शाहीन ने कहा, “हम युद्ध वाला वक़्त पीछे छोड़ चुके हैं। अब नई शुरुआत है और अफगानिस्तान के लोगों को मदद की ज़रूरत है। सभी देशों को हमारी वित्तीय मदद करनी चाहिए। हमारे मुल्क़ ने पिछले 20 सालों में तबाही और ख़ून-ख़राबा देखा है।”
अफ़ग़ानिस्तान में 20 साल तक अमेरिकी सेनाओं ने मोर्चा संभाला था लेकिन बीते कुछ महीनों में उन्होंने वहां से वापसी करना शुरू कर दिया था। इसके बाद तालिबान तेज़ी से आगे बढ़ा और उसने मुल्क़ की सत्ता को अपने हाथ में ले लिया।
रक्षा विशेषज्ञों के मुताबिक़, तालिबान पाकिस्तान की ख़ुफ़िया एजेंसी आईएसआई का प्यादा है और तालिबान की हुक़ूमत में पाकिस्तान में आतंकी संगठन चला रहे कट्टरपंथियों का दख़ल होने से कोई इनकार नहीं कर सकता।
पाकिस्तान को है डर
लेकिन अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान के हाथ में हुकूमत आने के बाद पाकिस्तान अपनी सुरक्षा के लिए परेशान है। पाकिस्तान ने वहां की संभावित सरकार से कहा है कि वह आतंकी संगठन तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) को अपनी ज़मीन का इस्तेमाल न करने दे और उसके ख़िलाफ़ कार्रवाई करे।
टीटीपी ने साल 2007 से 2014 तक पाकिस्तान में कहर बरपा दिया था। 2012 में टीटीपी पाकिस्तान में बहुत मजबूत था और इसके पास 25 हज़ार सदस्य थे। तब इसने पूरे पाकिस्तान में जमकर हमले किए थे और काफी ख़ून-ख़राबा हुआ था। टीटीपी का पाकिस्तान को लेकर रूख़ हमेशा से आक्रामक रहा है।
तालिबान पर भरोसा करना मुश्किल
तालिबान ने इस बार थोड़ा नरम रूख़ दिखाया है और कहा है कि वह महिलाओं के अधिकारों को नहीं छीनेगा, उन्हें घर से बाहर काम करने और पढ़ने के लिए जाने की इजाजत होगी। उसने यह भी कहा है कि महिलाओं को यह काम इसलामिक नियमों के दायरे में रहकर ही करने होंगे।
जबकि पिछली बार यानी 1996-2001 के बीच जब तालिबान सत्ता में आया था तो उसने महिलाओं के हक़-हुकूक को बुरी तरह कुचल दिया था। लड़कियां स्कूल नहीं जा सकती थीं, महिलाओं को बाहर निकलने पर पूरे शरीर को ढककर निकलना पड़ता था और बिना पुरूष के साथ के वे घर से बाहर ही नहीं जा सकती थीं। जरा सी चूक होने पर यातनाएं मिलती थीं।
बीते दिनों में अफ़ग़ानिस्तान के जो हालात सामने आए हैं, जिसमें दुनिया ने अफ़ग़ानिस्तान के लोगों को अपना मुल्क़ छोड़कर भागते हुए देखा है, वे लोग और दुनिया के अधिकतर देश तालिबान की बातों पर एतबार करने के लिए तैयार नहीं हैं। इसके अलावा अफ़ग़ानिस्तान का झंडा लगाने को लेकर भी तालिबानियों ने अपना क्रूर चेहरा दिखाया है। बीते कई दिनों में कई लोगों को उसने मौत के घाट उतार दिया है।