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कोरोना: नाकामियों को विज्ञापनों के जरिये छुपाने की कोशिश में योगी सरकार?

कोरोना: नाकामियों को विज्ञापनों के जरिये छुपाने की कोशिश में योगी सरकार?

कोरोना काल में देश ने इस महामारी का जबरदस्त कहर देखा और सवाल सीधे केंद्र और राज्य सरकारों पर उठे। लेकिन अब इन सवालों से बचने का या अपनी नाकामियों को छुपाने का तरीक़ा सरकारों ने निकाल लिया है। 

कोरोना काल में देश ने इस महामारी का जबरदस्त कहर देखा और सवाल सीधे केंद्र और राज्य सरकारों पर उठे। लेकिन अब इन सवालों से बचने का या अपनी नाकामियों को छुपाने का तरीक़ा सरकारों ने निकाल लिया है। 

कोरोना महामारी की दूसरी लहर आने तक केंद्र की ही तरह योगी सरकार भी लापरवाह बनी रही और जब संक्रमण फैल गया तब जाकर कहीं योगी सरकार को हालात की सुध आयी लेकिन तब तक बिना ऑक्सीजन, बिना अस्पतालों के हजारों मरीजों की मौत हो चुकी थी और इस वजह से योगी सरकार को जबरदस्त आलोचना का सामना करना पड़ा। लेकिन इस आलोचना और फजीहत से बचने के लिए योगी सरकार ने एक जबरदस्त काम किया है जो वह पहले भी करती रही है। 

योगी सरकार ने अंग्रेजी-हिंदी के बड़े अख़बारों में विज्ञापन या इंटरव्यू के जरिये यह बताना शुरू किया है कि उसने किस तरह कोरोना को कंट्रोल में कर लिया है। एक नामी अंग्रेजी अख़बार में ‘यूपी मॉडल ऑफ़ कोविड कंट्रोल’ के शीर्षक से छपे पेज को देखकर आपको क़तई नहीं लगेगा कि यह कोई विज्ञापन जैसी चीज है। 

कंज्यूमर कनेक्ट इनिशिएटिव

इसमें योगी सरकार कोरोना काल में क्या और कैसा काम कर रही है, उसकी जानकारी दी गई है और अख़बार के एक कोने में लिखा गया है- कंज्यूमर कनेक्ट इनिशिएटिव। इस कोने तक बहुत सारे पाठकों का ध्यान नहीं जाता। कुल मिलाकर यह ज़मीनी हालात से इतर छवि को चमकाने की कोशिश है और करोड़ों लोगों की आंखों में धूल झोंकने की भी। 

क्योंकि एक आम पाठक बहुत जल्दी यह नहीं पता लगा पाएगा कि यह कोई विज्ञापन है या अख़बार का ही एक सामान्य पन्ना। और निश्चित रूप से इसे पढ़ने के बाद उसे लगेगा कि योगी सरकार कोरोना संकट के दौरान बहुत शानदार काम कर रही है। इसी तरह हिंदी के बड़े अख़बारों को भी इंटरव्यू दिए जा रहे हैं जिनमें सरकार को ख़ुश करने वाले सवाल पूछे जाते हैं।  

गुमराह कर रही सरकार

कोरोना में केंद्र सरकार के कुप्रबंधन को लेकर अमेरिका के प्रतिष्ठित अख़बार न्यूयॉर्क टाइम्स ने कहा कि भारत में कोरोना से होने वाली मौतों का असली आंकड़ा सरकारी आंकड़े से कहीं ज़्यादा है और 'मॉर्निंग कंसल्ट' नाम की अमेरिकी संस्था ने कहा कि नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता में सितंबर 2019 से अब तक 22 प्रतिशत की गिरावट आई है। इसी तरह टाइम मैगजीन ने भी मोदी सरकार की जमकर आलोचना की। 

यानी अंतरराष्ट्रीय मीडिया संस्थाओं ने भी माना कि भारत में हालात बेहद ख़राब रहे तो फिर हम इसे क्यों देश के लोगों से छुपाना चाहते हैं। क्यों लोगों को इस तरह के विज्ञापन की आड़ में गुमराह किया जा रहा है। 

हाल ही में ‘द गार्डियन’ जैसे अंतरराष्ट्रीय अख़बार से मिलते-जुलते नाम वाली एक वेबसाइट 'द डेली गार्डियन' में कोरोना प्रबंधन में प्रधानमंत्री मोदी की तारीफ़ की गई लेकिन बाद में पता चला कि यह पूरा मामला ही फर्जी है और लोगों को उलझाने के लिए यह प्रपंच किया गया। 

विज्ञापन देने का यही हाल बाक़ी कुछ और राज्य सरकारों का भी है। जिन्होंने काम भले ही धेले भर न किया हो लेकिन इन विज्ञापनों को देखकर लगेगा कि ये जनता की चिंता में रात को सो तक नहीं पा रहे हैं। ऐसा करके लोगों को मूर्ख बनाया जा रहा है। 

जनता के पैसे की लूट

सरकारों को यह पता है कि विज्ञापन का यह पैसा कहीं खैरात से नहीं आता, यह जनता की गाढ़ी कमाई का ही पैसा है जिसके दम पर वे धड़ाधड़ विज्ञापन दे रही हैं और मीडिया संस्थानों का मुंह बंद करने की कोशिश कर रही हैं जिससे उनकी नाकामी का सच लोगों के सामने न आ सके। 

यह पूरी तरह प्रोपेगेंडा है और तमाम सरकारों का काम ही यही रह गया है कि वह देश भर या राज्य भर के तमाम छोटे-बढ़े मीडिया संस्थानों को विज्ञापन देकर उनका मुंह बंद रखे रहें ताकि वे सरकार के ख़िलाफ़ ख़बर न छापें और उलटा सरकार के पक्ष में ही खुलकर खड़े हो जाएं। 

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