चंद्रगुप्त मौर्य- सिकंदर का ग़लत इतिहास पेश कर सियासी फ़ायदे की जुगत में बीजेपी?
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जब यह कहा कि चंद्रगुप्त मौर्य ने सिकंदर को युद्ध में परास्त कर दिया तो क्या वह प्राथमिक स्तर पर इतिहास की जानकारी नहीं होने के कारण कह रहे थे या जानबूझ कर इतिहास को तोड़ मरोड़ कर पेश कर रहे थे? यह ग़लत इतिहास पेश कर राजनीतिक फ़ायदा उठाने की चाल है या वाकई यूपी के मुख्यमंत्री को इसकी जानकारी नहीं थी।
योगी आदित्यनाथ ने रविवार को यह कह कर सबको चौंका दिया कि चंद्रगुप्त मौर्य ने सिकंदर को हरा दिया, फिर भी लोग उन्हें महान नहीं कह कर सिकंदर को महान कहते हैं।
उन्होंने कहा,
“
इतिहास को किस तरह तोड़ा मरोड़ा गया है? इतिहासकार चंद्रगुप्त को महान नहीं कहते, वे किसे महान कहते है? उसे जो चंद्रगुप्त से हार गया। वे सिकंदर को महान कहते हैं।
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उन्होंने इसके आगे कहा, "देश को ठगा गया है। इतिहासकार इस पर चुप हैं क्योंकि यह सच पता चल गया तो समाज उनके ख़िलाफ़ खड़ा हो जाएगा। जब समाज खड़ा हो जाता है तो देश भी खड़ा हो जाता है।"
सच क्या है?
सच क्या है, यह सबको पता है और भारत के स्कूलों में प्राथमिक स्तर पर बच्चों को पढ़ाया जाता है।
इतिहास के मुताबिक़, सिकंदर और पोरस के बीच तीन बार युद्ध हुआ। ये युद्ध ईसा पूर्व 327 और ईसा पूर्व 325 के बीच हुए। पहली दो लड़ाइयों में सिकंदर की हार हुई।
सिकंदर और पोरस के बीच तीसरा युद्ध ईसा पूर्व 325 में झेलम के तट पर हुआ। इसमें बड़ी सेना होने के बावजूद पोरस की हार हुई। जब पोरस को बंदी बना कर सिकंदर के सामने पेश किया गया और मेसीडोनिया के इस राजा ने पूछा कि 'तुम्हारे साथ कैसा बर्ताव किया जाए' तो पोरस ने निडर हो कर कहा, 'जैसा एक राजा दूसरे राजा के साथ करता है।'
इससे खुश होकर सिकंदर ने पोरस को राज लौटा दिया और खुद सेना लेकर लौट गया।
सिकंदर की मृत्यु ईसा पूर्व 323 में बेबीलोन में हुई। इसके एक साल बाद यानी ईसा पूर्व 322 में चंद्रगुप्त ने मौर्य साम्राज्य की स्थापना की। यानी जब चंद्रगुप्त मौर्य राजा बना, सिकंदर मर चुका था।
चंद्रगुप्त-सेल्यूकस
चंद्रगुप्त मौर्य के साथ मेसीडोनिया के राजा सेल्यूकस निकाटर का युद्ध ईसा पूर्व 305 में हुआ था। चंद्रगुप्त ने अपने साम्राज्य का विस्तार करते हुए पंजाब के उन इलाक़ों पर कब्जा कर लिया, जिसे सिकंदर ने जीत लिया था।
सेल्यूकस निकाटर सिकंदर के कमान्डरों में एक था, सिकंदर की मौत के बाद छिड़े सत्ता संघर्ष में उसने मेसीडोनिया पर कब्जा कर लिया।
वह एक बड़ी सेना लेकर भारत के उन इलाक़ों पर फिर से कब्जा करने आया, जिन्हें सिकंदर ने जीता था। लेकिन उन इलाक़ों पर मौर्य साम्राज्य का नियंत्रण था।
लिहाजा सेल्यूकस निकाटर और चंद्रगुप्त मौर्य के बीच ईसा पूर्व 305 में युद्ध हुआ। इसमें सेल्यूकस की हार हुई।
उस दौरान लिखी गई पुस्तक 'भविष्य पुराण' के 'प्रतिसर्ग पर्व' के अनुसार, यवण सुवर्ण (सेल्यूकस) ने अपनी बेटी का विवाह चंद्रगुप्त मौर्य से कर दिया ताकि राजनीतिक व कूटनीतिक संबध मजबूत हो सके।
इतना ही नहीं, सेल्यूकस ने अपने राजदूत मेगास्थनीज़ को मौर्य साम्राज्य की राजधानी पाटलिपुत्र (मौजूदा पटना) भेजा।
मेगास्थनीज़
समझा जाता है कि मेगास्थनीज़ ईसा पूर्व 303 में पाटलिपुत्र पहुँचे, उन्होंने भारत पर मशहूर किताब लिखी-इंडिका।
इससे यह साफ़ है कि सिंकदर और चंद्रगुप्त के बीच नहीं, बल्कि सेल्यूकस और चंद्रगुप्त के बीच युद्ध हुआ था। चंद्रगुप्त जिस समय राजा बने, उसके एक साल पहले ही सिकंदर की मौत हो चुकी थी।
लेकिन, सिकंदर को लेकर इस तरह का ज्ञान रखने वाले पहले बीजेपी नेता आदित्यनाथ नहीं है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भी ज्ञान लगभग ऐसा ही है।
नरेंद्र मोदी ने बिहार के पटना में एक विशाल जनसभा में बिहारियों की तारीफ करते हुए कहा था कि सिकंदर को कोई नहीं हरा पाया, उसे बिहार में गंगा के तट पर हारना पड़ा था।
इतिहास से छेड़छाड़ क्यों?
लेकिन बीजेपी के नेता अलग-अलग समय में इस तरह की बातें कहते रहे हैं जो इतिहास सम्मत नहीं होती हैं। एक दिलचल्प उदाहरण मेवाड़ के राणा प्रताप का है।
इतिहास के अनुसार, महाराणा प्रताप ने अकबर की अधीनता स्वीकार करने से इनकार कर दिया और दोनों की सेनाओं के बीच युद्ध हुआ। हल्दीघाटी के निर्णायक युद्ध में राणा प्रताप की हार हुई। उन्होंने अपना इलाक़ा हासिल करने की कसम खाई, लेकिन वह इसमें नाकाम रहे।
अकबर की सेना का प्रतिनिधित्व मान सिंह ने किया था और राणा प्रताप की सेना के प्रमुख हक़ीम ख़ान सूर थे, जो अफ़ग़ानिस्तान के पश्तून क़बीले के थे और शेर शाह सूरी के वंशज थे।
बीजेपी और संघ परिवार राणा प्रताप-अकबर युद्ध को हिन्दू-मुसलमान युद्ध के रूप में देखते हैं।
भारतीय पुरातत्व सर्वे ने कहा है कि वह राजसमंद के रक्ततलाई में लगे उस शिलापट्ट को हटा देगा, जिस पर लिखा हुआ है कि 21 जून 1576 को हुए युद्ध में राणा प्रताप को पीछे हटना पड़ा।
केंद्रीय संस्कृति राज्य मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने कहा, "उस शिलापट्ट को वहां से हटाने का फ़ैसला लिया जा चुका है, यह ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित निर्णय है।"
बीजेपी की रणनीति
चंद्रगुप्त और सिकंदर के बारे में मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री स्तर के लोग ग़लत इतिहास पेश करते हैं तो उनकी नीयत पर सवाल उठता है। यह सवाल स्वाभाविक है कि वे इतिहास नहीं जानते या जानबूझ कर उसकी ग़लत व्याख्या करते हैं।
चूंकि सिकंदर और चंद्रगुप्त का इतिहास स्कूल के स्तर पर ही पढ़ाया जाता है, लिहाजा यह मानना मुश्किल है कि इन लोगों को इसकी जानकारी नहीं है।
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 के ठीक पहले इतिहास की ग़लत व्याख्या कर हिन्दुओं को महान दिखाया जाए, यह बीजेपी की रणनीति का हिस्सा हो सकता है।