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येदियुरप्पा को हटाना बीजेपी नेतृत्व के लिए आख़िर क्यों है मुश्किल?

येदियुरप्पा को हटाना बीजेपी नेतृत्व के लिए आख़िर क्यों है मुश्किल?

येदियुरप्पा को कर्नाटक के मुख्यमंत्री का पद छोड़कर किसी बड़े राज्य का राज्यपाल बनने के लिए राज़ी करने की लगातार कोशिशें हो रही हैं। लेकिन येदियुरप्पा कर्नाटक छोड़ने को तैयार ही नहीं हैं।

भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) नेतृत्व मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ने के लिए बी. एस. येदियुरप्पा को मनाने में कामयाब नहीं हो पा रहा है।  पिछले कुछ महीनों से येदियुरप्पा को कर्नाटक के मुख्यमंत्री का पद छोड़कर किसी बड़े राज्य का राज्यपाल बनने के लिए राज़ी करने की लगातार कोशिशें हो रही हैं। लेकिन येदियुरप्पा कर्नाटक छोड़ने को तैयार ही नहीं हैं। 77 साल के येदियुरप्पा का कहना है कि 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव में भी वह बीजेपी का नेतृत्व करेंगे और पार्टी को जीत दिलाएँगे। येदियुरप्पा के सख़्त रवैये से बीजेपी नेतृत्व परेशान है।

सूत्र बताते हैं कि बीजेपी के लिए येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री पद से हटाना आसान नहीं, नामुमकिन है। येदियुरप्पा न सिर्फ बीजेपी के सबसे कद्दावर नेता हैं बल्कि पूरे राज्य में वे काफी लोकप्रिय हैं। लोकप्रियता और सम्मान को पैमाना माना जाये तो वह देवेगौड़ा और सिद्देरामय्या के समकक्ष खड़े होते हैं। येदियुरप्पा के पक्ष में जो सबसे बड़ी बात जाती है वह उनका किसान नेता होना है। वह किसानों के बीच सबसे चर्चित और लोकप्रिय नेता हैं। 

लिंगायतों का मामला

इतना ही नहीं, वह लिंगायत समुदाय के सबसे प्रभावशाली नेता हैं। उन्हें लिंगायत समुदाय के महानायक के रूप में देखा जाता है। कर्नाटक की जनसंख्या में सबसे ज़्यादा लिंगायत समुदाय के लोग हैं। एक आकलन के मुताबिक़, कर्नाटक में लिंगायतों की संख्या कुल आबादी की क़रीब 17 फ़ीसदी है। येदियुरप्पा का नेतृत्व होने की वजह से ही लिंगायत समुदाय के ज़्यादातर लोग बीजेपी का समर्थन करते हैं। लिंगायत समुदाय के सभी प्रमुख मठाधीश और धार्मिक-आध्यात्मिक गुरु भी येदियुरप्पा का खुलकर समर्थन करते हैं।

बीजेपी नेतृत्व को इस बात का डर है कि यदि येदियुरप्पा पर दबाव डालकर हटाया गया और वह नाराज़ हुए तो न सिर्फ लिंगायत समुदाय के लोग बल्कि किसान भी बीजेपी से दूर हो सकते हैं। यही वजह है कि बीजेपी नेतृत्व येदियुरप्पा से अनुरोध ही कर सकता है, ज़ोर-ज़बरदस्ती नहीं।

पार्टी पर पकड़

बीजेपी नेतृत्व के लिए येदियुरप्पा इस वजह से भी काफी सम्माननीय हैं कि इन्होंने ही अकेले दम पर कर्नाटक में  बीजेपी को खड़ा किया। स्कूल की पढ़ाई के समय ही येदियुरप्पा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़ गए थे। संघ की शाखाओं के विस्तार में येदियुरप्पा ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वह 70 के दशक में येदियुरप्पा जन संघ से जुड़े। पहले दिन से भारतीय जनता पार्टी से जुड़े हैं। 1983 में पहली बार विधायक बने। 

80 के दशक में ही जब वह बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष बनाए गए तब से पार्टी के विस्तार में जुट गए। पूरे प्रदेश का दौरा किया और किसानों के मुद्दों को लेकर सड़क से विधानसभा तक लड़ाई लड़ी। येदियुरप्पा ने संगठनात्मक तौर पर बीजेपी को हर ज़िले में मजबूत किया।

फरवरी 2006 में जब बीजेपी और कुमारस्वामी के नेतृत्व वाली जनता दल सेक्युलर (जेडीएस)  के बीच समझौता हुआ और गठबंधन सरकार बनी, येदियुरप्पा उपमुख्यमंत्री बने। पहली बार कर्नाटक में बीजेपी सत्ता में साझेदार बनी। 

शानदार जीत

उस समय बीजेपी और जेडीएस के बीच जो समझौता हुआ था, उसके मुताबिक़, 20 महीने कुमारस्वामी को मुख्यमंत्री रहना था और फिर येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री बनाना था। लेकिन 20 महीने मुख्यमंत्री रहने के बाद कुमारस्वामी ने कुर्सी छोड़ने से मना कर दिया। बीजेपी से जेडीएस से समर्थन वापस ले लिया। पहली बार येदियुरप्पा नवंबर 2007 में मुख्यमंत्री बने। लेकिन सत्ता में बने रहने के लिए समर्थन न जुटा पाने की वजह से येदियुरप्पा ने सात दिन बाद इस्तीफा दे दिया। विधानसभा भंग हुई। राष्ट्रपति शासन लगा।

2008 में जब विधानसभा चुनाव हुए तब येदियुरप्पा के नेतृत्व में बीजेपी ने शानदार जीत हासिल की। दक्षिण भारत में पहली बार स्पष्ट बहुमत के साथ बीजेपी की सरकार बनी। पार्टी, प्रदेश और देश में येदियुरप्पा का राजनीतिक प्रभाव काफी बढ़ गया।

येदियुरप्पा बग़ैर बीजेपी

लेकिन भ्रष्टाचार के आरोपों की वजह से उन्हें अगस्त 2011 में मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा। पार्टी नेतृत्व से समर्थन न मिले से येदियुरप्पा नाराज़ हो गए और बीजेपी छोड़ दी। येदियुरप्पा ने कर्नाटक प्रजा पार्टी के नाम से अपनी पार्टी बनी ली। 2013 में हुए चुनाव में येदियुरप्पा की वजह से बीजेपी को काफी नुक़सान हुआ और सत्ता उसके हाथ से चली गई। कांग्रेस को बहुमत मिला। सिद्देरामय्या मुख्यमंत्री बने। बीजेपी को अपनी ग़लती का एहसास हुआ और येदियुरप्पा को ससम्मान पार्टी में वापस आने का अनुरोध किया। येदियुरप्पा ने अपनी पार्टी का विलय बीजेपी में कर दिया। एक बार फिर बीजेपी की कमान येदियुरप्पा के हाथ में आ गई।

2014 के लोकसभा चुनाव में वह शिमोगा से पहली बार सांसद चुने गए। 2018 के कर्नाटक विधानसभा चुनाव में बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनी। येदियुरप्पा मुख्यमंत्री बने, लेकिन बहुमत न जुटा पाने की वजह से उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। कांग्रेस-जेडीएस की गठबंधन सरकार बनी। कुमारस्वामी मुख्यमंत्री बने। लेकिन कांग्रेस और जेडीएस के कुछ विधायकों के इस्तीफे की वजह से सरकार अल्पमत में आई और गिर गई। इस बार बहुमत के साथ येदियुरप्पा मुख्यमंत्री बने। 

राजनीतिक मोल-भाव

बीजेपी के कई नेता मानते हैं कि कर्नाटक में येदियुरप्पा के बिना बीजेपी की सत्ता में बने रहने की फ़िलहाल कल्पना करना नामुमकिन है। उन्हें उनकी मर्ज़ी के बिना हटाने से पार्टी को भारी नुक़सान उठाना पड़ सकता है। सूत्र बताते हैं कि बीजेपी नेतृत्व येदियुरप्पा को मनाने की कोशिश में लगा हुआ है। येदियुरप्पा से मध्य प्रदेश के राज्यपाल का पद लेने का अनुरोध किया गया है। कर्नाटक मुख्यमंत्री का पद छोड़कर राज्यपाल बनने पर उनके बड़े बेटे विजयेन्द्र को नए मंत्रिमंडल में जगह देने की भी पेशकश की गई है। 

इतना ही नहीं, छोटे बेटे और सांसद विजयेन्द्र को भी केंद्र में ज़िम्मेदारी देने का भरोसा दिया गया है। लेकिन येदियुरप्पा है कि मानने को तैयार नहीं हैं। बीजेपी नेतृत्व को लगता है कि कर्नाटक में युवा नेतृत्व की ज़रूरत है। सूत्रों ने यह भी बताया कि अगर दशहरे तक यदियुरप्पा नहीं माने तो बीजेपी अपने प्रयास रोक देगी और सब कुछ येदियुरप्पा पर छोड़ देगी।

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