ये यमुना नदी है... इसी जहरीले पानी में छठ पूजा होगी, इसी को पिएँगे भी!
यह बर्फ़ की नदी या तालाब नहीं है। यह है दिल्ली की यमुना नदी। बर्फ़ सी दिखने वाली यह चीज जहरीला झाग है। दिवाली के वक़्त से पिछले कई दिनों से हवा में जहर घुला दिख रहा था, अब पानी में जहर घुला दिख रहा है। इसी नदी के जहरीले पानी में हज़ारों व्रतधारी छठ पूजा करेंगे। यमुना का पानी फिल्टर कर पीने के लिए भी इस्तेमाल होता है। दिल्ली को वर्ल्ड क्लास सिटी बनाने के दावे करने वाले न तो हवा में और न ही पानी में जहर को कम कर पाए। ताज़ा तसवीरों के सामने आने के बाद से दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल निशाने पर हैं। सवाल उठ रहे हैं कि यमुना की सफ़ाई के उनके दावे कहां गए?
वर्षों से यमुना में ऐसा ही नज़ारा दिखता रहा है। न तो हर चुनाव में इसे मुद्दा बनाने वाले नेता ठीक कर पाए और न ही पर्यावरण संरक्षण का अंतरराष्ट्रीय दबाव इस हालात को सुधरवा सका। हर वर्ष दुनिया भर के देशों के बीच पर्यावरण संरक्षण के लिए वार्ता व समझौते होते हैं जिसमें से एक में शामिल होकर प्रधानमंत्री अभी पिछले हफ़्ते ही लौटे हैं। नदियों को साफ़-सुथरा करने का दम कितना भी भरा जाए, लेकिन यमुना नदी की यह तसवीर उन दावों की पोल खोलती है।
यमुना नदी के इस जहरीले पानी में ही इस बार भी कई व्रतधारी छठ पर्व मना रहे हैं। सूर्य और नदी-तालाब केंद्रित छठ पर्व पूरी तरह प्रकृति की पूजा है। लेकिन इसी प्रकृति का क्या हाल हो गया है, यह सामने है।
पिछले साल ही यमुना नदी को प्रदूषण मुक्त बनाने के लिए अरविंद केजरीवाल सरकार ने एक योजना पेश की थी जिसमें कहा गया है कि 2023 तक यमुना नदी के प्रदूषण को 90 प्रतिशत तक कम करना है। कार्य योजना के तहत हरियाणा और उत्तर प्रदेश के साथ दिल्ली के घरों से निकलने वाले जहरीले पानी को आधुनिक तकनीक से शोधित कर यानी स्वच्छ बनाकर क़रीब 400 एमजीडी पानी का सिंचाई व पार्क आदि में फिर से उपयोग किया जाएगा। लेकिन यमुना नदी की ताज़ा तसवीरें पिछले साल की स्थिति से रत्तीभर भी अलग नज़र नहीं आती हैं।
वैसे, दिल्ली की केजरीवाल सरकार से इतर केंद्र की बात की जाए तो नरेंद्र मोदी सरकार नदियों को स्वच्छ बनाए रखने के लिए संकल्प दोहराती रही है। गंगा और यमुना नदी के साथ ही देश की अन्य नदियों को प्रदूषण और गंदगी से मुक्त करने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने संकल्प लिया था। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने तो नदियों की सफ़ाई के लिए 2019-20 में 20 हज़ार करोड़ रुपये ख़र्च करने की योजना प्रस्तावित की थी। यह वह समय था जब प्रधानमंत्री 'नमामि गंगे' योजना पर जोर दे रहे थे। प्रधानमंत्री ने कहा था कि यदि गंगा को साफ़ करने में सक्षम हो गए तो 40 फ़ीसदी आबादी के लिए यह मददगार होगी। लेकिन गंगा सहित दूसरी नदियों की हालत कितनी सुधरी, यह बात किसी से छिपी नहीं है।
बहरहाल, यमुना में जो अब ताज़ा हालात हैं उसको लेकर प्रधानमंत्री मोदी की पार्टी के ही लोग अरविंद केजरीवाल सरकार की खिंचाई कर रहे हैं। बीजेपी आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने ट्वीट किया है, 'दिल्ली में छठ पूजा कर रहे श्रद्धालु जहरीली यमुना में डुबकी लगाने को मजबूर हैं। दिल्ली में बड़ी संख्या में लोग छठ मनाते हैं और यह अनुष्ठानों का पालन करने वालों को सुविधाएं प्रदान करने के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है। अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली को कहाँ पहुँचा दिया है। शर्म की बात है।'
Devotees performing Chhat Puja in Delhi are forced to take a dip in toxic Yamuna. Large number of people celebrate Chhat in Delhi and this shows his commitment towards providing facilities to those who observe the rituals. This is what Arvind Kejriwal has reduced Delhi to. Shame. pic.twitter.com/pLX669isGp
— Amit Malviya (@amitmalviya) November 8, 2021
सांसद मनोज तिवारी ने भी केजरीवाल सरकार को घेरते हुए कहा कि इसी वजह से यमुना किनारे छठ पूजा मनाने पर रोक लगाई थी।
बीजेपी नेता के साथ ही आम आदमी पार्टी में बागी तेवर रखने वाले कुमार विश्वास ने भी अरविंद केजरीवाल पर निशाना साधा है। उन्होंने तंज कसा है कि 'दिल्ली को एक और फ़्री सुविधा के लिए बधाई, अब तो यमुना में बादल भी उतार दिए...।'
दिल्ली को एक और “फ़्री” सुविधा के लिए बधाई।अब तो यमुना में बादल भी उतार दिए, गली-गली मुफ़्त का नरक कोविड के दौरान दिखा ही दिया था।टैक्सपेयर्स के पैसे पर TV में कालनेमि-लाइव देखा ही होगा।अब पंजाब में यही कौशल दिखाने का अवसर दें “स्वराज-शिरोमणि लघुकाय आत्ममुग्ध धूर्तेश्वर” को🙏😂👞 https://t.co/A6n3gfCZaa
— Dr Kumar Vishvas (@DrKumarVishwas) November 7, 2021
आख़िर झाग होने की वजह क्या है?
पानी में झाग बनने के कई कारण होते हैं। आम तौर पर प्राकृतिक तरीक़े से भी नदियों में ऐसा झाग बनता है और वह उस तरह का जहरीला नहीं होता है। पेड़-पौधों के सूखे या सड़े हिस्सों में वसा होती है जो पानी के साथ नहीं मिलती है। वह पानी की सतह पर एक अदृश्य तैरती परत बनाती है। जब पानी लहरों, झरनों, या नदी के बैराजों से गिरता है, तो यह वसायुक्त परत झाग में बदल जाती है। ठीक उसी तरह जैसे साबुन के पानी को हिलाने से हवा छोटे बुलबुले में फँस जाती है जिससे फोम की एक परत बन जाती है।
लेकिन यमुना में दिखाई देने वाला झाग प्राकृतिक तरीक़े से नहीं बना है। वैज्ञानिकों के अनुसार यमुना में फॉस्फेट का उच्च स्तर इस तरह के झाग बनने के लिए ज़िम्मेदार है। फॉस्फेट कई डिटर्जेंट में उपयोग किया जाता है। दिल्ली से ऐसी ख़बरें अक्सर आती रही हैं कि उद्योगों और आम घरों से निकलने वाले गंदी पानी को बिना शुद्ध किए ही यमुना नदी में गिरा दिया गया है। वैज्ञानिक इस पर ज़ोर देते रहे हैं कि डिटर्जेंट में फॉस्फेट की मात्रा को नियंत्रित किया जाए और उद्योगों से निकलने वाले अपशिष्ट पदार्थ पर सख़्त निगरानी हो।
साफ़ है कि यमुना की यह हालत इसलिए हुई कि हर स्तर पर प्रशासनिक विफलता नज़र आती है। वोट लेने के लिए सफ़ाई और स्वच्छता के नारे लगते रहे और यमुना में झाग का स्तर हर साल ऊँचा होता गया। न तो यमुना में गिरने वाले नाले के पानी को शुद्ध किया गया और न ही पानी में फॉस्फेट को कम करने पर काम हुआ। जबकि इसी यमुना का पानी पीने के भी काम आता है और छठ पर्व पर प्रकृति की पूजा करने का भी। क्या इससे किसी को सरोकार है?