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शी जिनपिंग ने लिखा चीन का नया इतिहास

शी जिनपिंग ने लिखा चीन का नया इतिहास

चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग क्या चीन के इतिहास में माओ से आगे निकलना चाहते हैं? जानिए, शीन जिनपिंग के ऐतिहासिक प्रस्ताव के क्या हैं मायने और वह माओ और देंग शियाओपिंग से कैसे अलग हैं।

चार साल पहले 2017 की विश्व आर्थिक मंच की बैठक को याद करें। संरक्षणवाद के हिमायती डोनल्ड ट्रंप वॉशिंगटन में अपने पदारोहण की प्रतीक्षा कर रहे थे। मौक़ा देखकर चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग अपने देश के सबसे बड़े दल-बल के साथ स्विट्ज़रलैंड की सैरगाह दावोस पहुँचे थे और दुनिया भर से जमा हुए मुक्त बाज़ार और वैश्वीकरण के हिमायतियों को आर्थिक उदारीकरण और वैश्वीकरण की नसीहतें दे डालीं थीं।

पिछले सप्ताह ग्लासगो में जमा हुए 192 से अधिक देशों के नेता शी जिनपिंग से एक बार फिर किसी वैसी ही करामात की उम्मीद कर रहे थे। लेकिन इस बार उन्होंने सबको निराश किया और अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडन ने फ़ब्ती कसते हुए कहा, जलवायु सम्मेलन में न आकर उन्होंने ‘बड़ी भूल की है।’ पर चीन के विशेषज्ञों का कहना है कि शी जिनपिंग अपनी राजनीतिक ताक़त और विरासत पक्की करने में लगे हुए थे जो सबसे बड़ा प्रदूषणकर्ता देश होते हुए जलवायु सम्मेलन में जाकर दुनिया भर की आलोचना झेलने से कहीं बेहतर विकल्प था।

राजधानी बीजिंग में सोमवार से शुरू हुआ चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की केन्द्रीय समिति के लगभग चार सौ शीर्ष नेताओं का छठा महाधिवेशन पूरा हुआ है। इनमें प्रान्तों के गवर्नर, पार्टी सचिव और प्रमुख सैनिक और आर्थिक अधिकारी शामिल हुए। चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना सदी के वर्ष में हुए इस पार्टी अधिवेशन की सबसे ख़ास बात यह थी कि इसमें एक ऐतिहासिक प्रस्ताव पारित किया गया जिसमें कम्युनिस्ट पार्टी के सौ वर्षों के इतिहास की उपलब्धियों और अनुभवों का आकलन किया गया और भावी दिशा तय हुई।

चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के सौ वर्ष के इतिहास में अभी तक केवल दो ऐतिहासिक प्रस्ताव पारित किए गए हैं। पहला माओत्से दोंग ने 1945 में पारित कराया था जिसका उद्देश्य था कम्युनिस्ट पार्टी में अपने आलोचकों का सफ़ाया करना। इस प्रस्ताव के बाद माओ की विचारधारा को ही पार्टी के लिए सही रास्ता मानते हुए उन्हें पार्टी का निर्विवाद नेता स्वीकार कर लिया गया था। उनसे असहमति रखने वाले हज़ारों विरोधियों को सारी मुसीबतों के लिए ज़िम्मेदार ठहरा कर ख़त्म कर दिया गया था।

दूसरा प्रस्ताव देंग शियाओपिंग ने 1981 में पारित कराया था जिसका उद्देश्य चीन में आर्थिक उदारीकरण और सुधारों की नीति को पक्का करना था। 1976 में माओ की मृत्यु के बाद चली दो साल लंबी बहस के बाद देंग शियाओपिंग ने निजी उद्यम और विदेशी निवेश को बढ़ावा देने वाली नीतियों पर चलने का फ़ैसला किया। पर उसके लिए माओ की दिवालिया करने वाली नीतियों से पिंड छुड़ाना ज़रूरी था। 

इसलिए माओ के ग्रेट लीप और सांस्कृतिक क्रांति को भूलों के रूप में स्वीकार किया गया और उस दौर की ग़लत नीतियों से पड़े अकाल में हुई करोड़ों की मौत, लाखों बुद्धिजीवियों की हत्या, अराजकता और बदहाली की आलोचना हुई। लेकिन इस भूल के लिए माओ को व्यक्तिगत रूप से ज़िम्मेदार न मानते हुए चीन की क्रांति में उनके योगदान के लिए पार्टी इतिहास में उनके निर्विवाद नेता के स्थान को बरकरार रखा गया। देंग शियाओपिंग का स्थान चीन को आगे ले जाने के लिए सही दृष्टि रखने वाले नेता के रूप में पक्का हुआ।

अब समाप्त हुए ऐतिहासिक महाधिवेशन में शी जिनपिंग एक नया ऐतिहासिक प्रस्ताव लेकर आए हैं जिसका उद्देश्य चीन को बलशाली बनाना और देश में साझा ख़ुशहाली लाना है।

चीनी विशेषज्ञों का मानना है कि माओ ने दमनकारी ताक़तों को हरा कर चीन को अपने पाँवों पर खड़ा किया। देंग ने उदारवादी आर्थिक नीतियों के सहारे चीन को ख़ुशहाल बनाया और शी का लक्ष्य इस ख़ुशहाली को हर चीनी तक पहुँचाना और चीन को आने वाली चुनौतियों के लिए सक्षम बनाना है। पिछले दोनों प्रस्तावों में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने अतीत की भूलों को स्वीकार कर नए युग का प्रवर्तन करने की कोशिश की। शी जिनपिंग अपने प्रस्ताव में इतिहास की भूलों की बात न करते हुए उसका आदर करने और देश को नए युग के लिए तैयार करने की बात कर रहे हैं।

पर क्यों? इसके कई कारण हैं। शी जिनपिंग कम्युनिस्ट पार्टी के ख़ानदानी नेता हैं। उनके पिता शी जोन्गशुन माओ के उन साथियों में थे जिन्हें माओ की विचारधारा में पूरी निष्ठा न रखने के शक में यातनाएँ झेलनी पड़ी थीं। पार्टी का नेतृत्व बदलने के साथ-साथ उनके दिन भी फिरे और शी जिनपिंग पार्टी के शिखर पर आ पहुँचे। वे अपने-आप को माओ का उत्तराधिकारी मानते हैं। वे केवल 68 वर्ष के हैं और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के बड़े नेताओं की औसत उम्र को देखते हुए युवा माने जाते हैं। 

सबसे बड़ा कारण शायद यह है कि चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के ऐतिहासिक प्रस्ताव को पार्टी और प्रशासन में एक अलिखित संविधान की तरह देखा जाता है। सैंकड़ों पन्नों के इस प्रस्ताव में कम्युनिस्ट पार्टी के इतिहास की नए सिरे से व्याख्या की जाती है। इसलिए इस पर सभी शीर्ष नेताओं की सर्वसम्मति की ज़रूरत होती है। माओ और देंग के ऐतिहासिक प्रस्तावों के बाद उनकी विचारधारा पार्टी और प्रशासन के लिए बाइबल जैसी बन गई थी और उन्हें जीवन पर्यन्त निर्विवाद नेता माना गया।

शी जिनपिंग भी अपने ऐतिहासिक प्रस्ताव के ज़रिए चीन में माओ और देंग वाला मुकाम हासिल करना चाहते हैं। लेकिन यह मुकाम वे अपने पूर्ववर्ती नेताओं की नीतियों पर सवाल उठाते हुए नहीं बल्कि उन्हें चीन के उदय की सीढ़ियों के रूप में स्वीकार करते हुए देश में राष्ट्रवाद की भावना को जगाते हुए करना चाहते हैं। माओ ने पार्टी में व्यक्तिपरक या स्वामीभक्ति की संस्कृति जगा कर राज किया। देंग ने पार्टी में सहमति और सहयोग संस्कृति को बढ़ावा दिया। शी का ज़ोर राष्ट्र-गौरव और कन्फ़्यूशियस के ‘जिन’ या अच्छाई के सिद्धांत पर है। ‘जिन’ पर चलने का मतलब है बड़ों की बात को स्वीकार करते हुए अच्छे नागरिक की तरह आचरण करना।

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माओ

शी जिनपिंग यही चाहते हैं कि चीनी कम्युनिस्ट पार्टी और जनता ‘जिन’ के सिद्धांत पर चलती रहे ताकि चीन को बलशाली राष्ट्र बनाने का उनका सपना पूरा हो सके और उनका स्थान चीनी इतिहास के महान नेताओं की त्रिमूर्ति में पक्का हो सके। इसके लिए उन्होंने राष्ट्रपति पद संभालते ही तैयारी शुरू कर दी थी। प्रशासन और पार्टी के भीतर किसी भी तरह की असहमति की संभावना को ख़त्म करने के लिए उन्होंने 2012 में भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ एक देशव्यापी मुहिम शुरू की थी। इसमें 120 से ज़्यादा चोटी के अफ़सरों और राष्ट्रीय स्तर के पाँच नेताओं को मिला कर लगभग एक लाख लोगों को पकड़ा गया। चीनी विशेषज्ञों का मानना है कि इस अभियान का असली उद्देश्य पार्टी में अनुशासन लाना और पकड़ मज़बूत करना था।

दूसरे कार्यकाल में उन्होंने पार्टी को अपनी विचारधारा में रंगने का काम शुरू किया। 2018 के पार्टी अधिवेशन में शी एक ऐसा प्रस्ताव लेकर आए जिसमें उन्हें माओ और देंग की तरह पार्टी का ‘कोर’ या मूल नेता घोषित कर दिया गया। उसके बाद शी के विचार और संदेश स्कूलों के पाठ्यक्रमों में और पार्टी के सिद्धांतों में शामिल कर लिए गये। उसी साल के एक प्रस्ताव में राष्ट्रपति को दो कार्यकालों से लंबे समय तक सत्ता में न रखने की उस परंपरा को समाप्त कर दिया गया जिसकी शुरुआत डंग ने माओ की व्यक्तिपरक संस्कृति को ख़त्म करने के लिए की थी।

2018 में पारित हुए इन दो प्रस्तावों ने शी जिनपिंग के लिए माओ की तरह जीवन पर्यन्त सत्ता में बने रहने और व्यक्तिपरक संस्कृति को पुनर्जीवित करने का रास्ता खोल दिया है।

हालाँकि शी अपने बयानों में व्यक्तिपरक संस्कृति का समर्थन नहीं करते और देंग की तरह सहमति और सहयोग की बात करते हैं। लेकिन वे यह क़तई नहीं चाहते कि पार्टी अमेरिका के साथ छिड़े व्यापार-युद्ध, अमेरिका और पश्चिमी देशों के साथ बिगड़ते जा रहे रिश्तों, कोरोना महामारी की शुरुआत में उसकी रोकथाम के लिए हुई ढील और हांग-कांग में जारी असंतोष जैसे मुद्दों में उलझे। इसलिए उन्होंने सोशल मीडिया और अल्पसंख्यकों की बात करने वाले संगठनों पर पूरी तरह नकेल कस दी है।

शी जिनपिंग जानते हैं कि चीन के तटीय प्रान्तों में हुए तेज़ आर्थिक विकास की बदौलत जहाँ करोड़ों लोग सम्पन्न बने हैं वहीं करोड़ों पीछे भी छूट गए हैं। आर्थिक विषमता की खाई तेज़ी से बढ़ी है और बढ़ रही है। ग़रीबी दूर होने और संपन्नता बढ़ने से मज़दूरी और सेवाओं की दरें बढ़ने लगी हैं। सस्ती मज़दूरी पर सस्ता माल बना कर निर्यात करने वाली कंपनियों के लिए कारोबार करना कठिन होता जा रहा है। आर्थिक विकास की दरें गिरती जा रही हैं। रोज़गार कम हो रहे हैं। दशकों की एक बच्चा नीति के कारण आबादी में काम की उम्र वालों का अनुपात घट रहा है और पेंशनभोगी बुज़ुर्गों का अनुपात घट रहा है।

तेज़ विकास के लिए सस्ते और आसान कर्ज़ देने के कारण सरकारी बैंकों और वित्त कंपनियों पर दिवालिया होने का ख़तरा मँडराने लगा है। चीनी अर्थव्यवस्था के एक चौथाई से भी बड़ा समझा जाने वाला भवन-निर्माण का क्षेत्र मंदी से जूझ रहा है। पश्चिमी देशों पर निर्भरता कम करने के लिए पड़ोसी देशों और क्षेत्रों में बिछाए ‘बेल्ट एंड रोड’ निर्माण परियोजनाओं के जाल से वैसा लाभ नहीं मिल रहा है जिसकी उम्मीद थी। इधर चीन में प्रदूषण इतना बढ़ चुका है कि बड़े शहरों में चाय-कॉफ़ी की दुकानों की तरह दशकों से ऑक्सीजन बार चल रही हैं जहाँ लोग ऑक्सीजन लेने जाते हैं।

इन समस्याओं से निपटने के लिए शी जिनपिंग ने घरेलू बाज़ार के लिए निर्माण को बढ़ावा देना शुरू किया है। चीनियों से अपने इतिहास, अपनी पार्टी, अपने देश और चीनी माल में गौरव की भावना रखने को कहा जा रहा है। अमेरिका और उसके साथी पश्चिमी देशों के साथ बढ़ता टकराव भी इस काम में शी की मदद कर रहा है। ‘अमेरिका पहले’ और ‘मेड इन इंडिया’ की तर्ज़ पर शी चाहते हैं कि लोगों में ‘मेड इन चाइना’ की भावना जगे। कम्युनिस्ट पार्टी के इतिहास की उपलब्धियों और अनुभवों पर गौरव करने की बात भी इसी अभियान की कड़ी है जो शी के ऐतिहासिक प्रस्ताव का एक मुख्य विषय है।

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लेकिन शी के प्रस्ताव की ख़ासियत यह है कि वह माओ और देंग के प्रस्तावों की तरह नेतृत्व के सवाल को लेकर चले संघर्षों, ग्रेट लीप और सांस्कृतिक क्रांति जैसी भूलों और तियानन्मैन चौक जैसी घटनाओं पर प्रश्न उठाने के बजाय उनपर लीपापोती करता है और चीन के आर्थिक विकास, सैन्य शक्ति, ग़रीबी उन्मूलन, हांग-कांग और मकाओ की वापसी और अंतरराष्ट्रीय बिरादरी में चीन की बढ़ती धाक जैसी बातों पर गौरव करने की बात करता है। इसमें ताईवान के विलय और दक्षिण-चीन सागर में चीनी हितों की रक्षा के प्रण भी शामिल हैं।

गौर से देखें तो चीनी इतिहास का यह शी-करण बदलती दुनिया के परिप्रेक्ष्य में चीनी इतिहास के माओकरण जैसा ही है। इसीलिए भारत और दूसरे पड़ोसी लोकतांत्रिक देशों के लिए यह चिंता का विषय है।

इतिहास के प्रति, कम्युनिस्ट पार्टी के प्रति और चीनी राष्ट्र के प्रति गौरव की भावना जगा कर शी जिनपिंग केवल अपनी सत्ता और विरासत को ही पक्का नहीं कर रहे। बल्कि चीन की जनता को ताईवान, दक्षिण-चीनी सागर, हांग-कांग, तिब्बत, शिन्जियांग, अरुणाचल प्रदेश, अक्सई चिन और नदी-जल जैसे मुद्दों पर दुनिया के साथ होने वाले टकराव में अपनी हिमायत के लिए भी तैयार कर रहे हैं। 

शी का सपना चीन को एक बलशाली और स्वाभिमानी राष्ट्र के रूप में तैयार करना है जो दुनिया की आँखों में आँखें डाल कर बात कर सके। पर दुनिया के लिए चुनौती का विषय यह है कि अपने विकास के लिए निर्यात और विदेश-व्यापार निर्भर न रहकर अंतर्मुखी और आत्मनिर्भर बने चीन को सही रास्ते पर लाने के लिए कौन सा रास्ता बचेगा। शी का ऐतिहासिक प्रस्ताव पारित होने के बाद शी और पुतिन दोनों ने अपनी-अपनी सत्ता पक्की कर ली है। ऐसे में जब तक जनसमर्थन उनके साथ है तब तक उन्हें वैश्विक हित के किसी भी ऐसे मुद्दे पर राज़ी करना कठिन होगा जिसमें उनका कोई निजी हित न हो – चाहे वह ताईवान हो, दक्षिण-चीन सागर या फिर जलवायु परिवर्तन।

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