बर्बादी की ओर बढ़ रहा पाकिस्तान, इमरान कर रहे कश्मीर पर चर्चा
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान भले ही दुनिया भर के मुल्कों में घूम-घूमकर ख़ुद को कश्मीरियों का सबसे बड़ा हिमायती बताने पर तुले हों लेकिन उनके अपने देश के आर्थिक हालात बेहद ख़राब हैं। पाकिस्तान में रोजमर्रा की ज़रूरत की चीजों के भाव आसमान छू रहे हैं और आम जनता इमरान को कोस रही है कि चुनाव के दौरान बड़े-बड़े वादे करने वाले इमरान अब उनके सवालों के जवाब क्यों नहीं देते।
वित्त वर्ष 2019-20 में पाकिस्तान की आर्थिक विकास दर 3.3% रह सकती है, जबकि 2018-19 में यह 5.5 फ़ीसदी थी। महंगाई दर पिछले 10 साल के सबसे ऊंचे स्तर तक पहुंच सकती है और इसके 13% तक जाने का अनुमान है। दूसरी ओर वित्तीय घाटा लगातार बढ़ता जा रहा है और यह देश की कुल जीडीपी के 7.1% तक पहुंच चुका है।
एशियन डेवलपमेंट बैंक की ओर से हाल ही में जारी रिपोर्ट के मुताबिक़, पाकिस्तान की जीडीपी ग्रोथ बहुत कम रहने वाली है। वित्त वर्ष 2019-20 में यह 2.8 फ़ीसदी रह सकती है। एडीबी की रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि पाकिस्तान में महंगाई आने वाले वक्त में रिकॉर्ड तोड़ हो सकती है। पाकिस्तान का रुपया लगातार कमजोर होता जा रहा है और सरकार टैक्स में बढ़ोतरी करती जा रही है, इससे देश के हालात और ख़राब हो सकते हैं।
पाकिस्तान में जुलाई-अप्रैल 2019 में विदेशी निवेश 51% से ज़्यादा गिर चुका है और कमजोर नीतियों के कारण पाकिस्तान का राजकोषीय घाटा बढ़ता जा रहा है और जबतक आर्थिक नीतियां बेहतर नहीं होती, उसकी स्थिति सुधरना मुश्किल है। इसके लिए पाकिस्तान को भारी मात्रा में फ़ंडिंग की ज़रूरत है।
एफ़एटीएफ़ कर सकता है ब्लैक लिस्ट!
पाकिस्तान की मुसीबतें बस इतनी ही नहीं है। उस पर फ़ाइनेंशियल एक्शन टास्क फ़ोर्स (एफ़एटीएफ़) की ब्लैक लिस्ट में डाले जाने का ख़तरा मंडरा रहा है। पाकिस्तान मनी लॉन्ड्रिंग और टेरर फंडिंग पर नजर रखने वाली इस वैश्विक संस्था की ग्रे लिस्ट में है। एफ़एटीएफ़ अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद के वित्तपोषण की निगरानी करने वाली संस्था है और इसमें कुल 38 सदस्य देश हैं। एफ़एटीएफ़ ने बेहद सख़्त शब्दों में पाकिस्तान से कहा है कि वह अंतिम समय सीमा समाप्त होने से पहले कार्य योजना को लागू करे। एफ़एटीएफ़ कह चुका है कि पाकिस्तान पूरी तरह से आतंकवाद का आर्थिक समर्थन रोकने में नाकाम रहा है। अक्टूबर में ही एफ़एटीएफ़ की बैठक होनी है।
पाकिस्तान में विपक्षी दलों के नेता इमरान ख़ान पर हमलावर हैं। विपक्षी नेताओं का कहना है कि इमरान के वादे हवा हो गये हैं और उनकी सरकार आने के बाद देश के हालात और भी ज़्यादा ख़राब हुए हैं।
पैसों की कमी से जूझ रही इमरान ख़ान सरकार कोशिश कर रही है कि उसे दुनिया के दूसरे देशों से कुछ मदद मिल जाए। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ़) ने पाकिस्तान को इन ख़राब हालात से उबारने के लिए छह बिलियन डॉलर के बेलआउट पैकेज को मंजूरी दे दी है। लेकिन उसके बाद भी पड़ोसी देश के सामने चुनौतियाँ कम नहीं हैं।
लेकिन आईएमएफ़ ने इसके लिए शर्त रख दी है। उसने कहा है कि पाकिस्तान लिखित में गारंटी दे कि वह इस रकम को चीन का कर्ज चुकाने में इस्तेमाल नहीं करेगा। चीन-पाकिस्तान इकॉनमिक कॉरिडोर में चीन ने पाकिस्तान में बहुत पैसा लगाया है और आईएमएफ़ को डर है कि पाकिस्तान कहीं चीन को पैसा लौटाने में यह सारी रकम ख़र्च न कर दे।
पाकिस्तान में कुछ ही महीने पहले बजट पेश किया गया। इसके मुताबिक़, पाकिस्तान पर इतना कर्ज है कि उसके बजट का बड़ा हिस्सा यानी 42 फ़ीसदी तो कर्ज का ब्याज चुकाने में ख़र्च हो जाता है। जबकि भारत अपने बजट का 18 फ़ीसदी कर्ज चुकाने पर ख़र्च करता है।
पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार भी घटकर 8.8 अरब डॉलर पर पहुँच गया है। पाकिस्तान सरकार ने वहां के केंद्रीय बैंक स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान से इस वित्त वर्ष में अब तक 4.8 लाख करोड़ रुपये का कर्ज ले लिया है। केंद्रीय बैंक ने चेतावनी देते हुए कहा है कि अगर बढ़ती महंगाई को नहीं रोका गया तो देश के आर्थिक हालात क़ाबू से बाहर हो जाएँगे।
पड़ोसी मुल्क को अगर ख़ुद को दिवालिया होने से बचाना है तो सबसे पहले पाकिस्तान को ख़ुद को अक्टूबर में होने वाली एफ़एटीएफ़ की बैठक में ब्लैक लिस्ट होने से बचाना होगा। इसके लिए उसे आतंकवाद के ख़िलाफ़ सख़्त क़दम उठाने ही होंगे। लेकिन वह ऐसा करता नहीं दिखता। इमरान ख़ान को कश्मीर पर दुनिया भर में घूमने के बजाय आर्थिक नीतियों पर ध्यान देना चाहिए क्योंकि भारत उसे स्पष्ट कह चुका है कि जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाना पूरी तरह उसका आतंरिक मामला है और वह इस बारे में दुनिया के दूसरे देशों को गुमराह ना करे।