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यूएस में डोनाल्ड ट्रंप की वापसी के भारत के लिए क्या मायने हैं?

यूएस में डोनाल्ड ट्रंप की वापसी के भारत के लिए क्या मायने हैं?

अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप की वापसी क्या हुई, भारत में उन्हें मोदी का मित्र, भारत का मित्र कह कर प्रचारित किया जा रहा है। भारतीय मीडिया का एक बड़ा हिस्सा ट्रंप को भारत का मित्र साबित करने के लिए ट्रंप के वीडियो को तोड़मरोड़ कर पेश करने से परहेज नहीं कर रहा है। लेकिन ट्रंप की भारत के लिए वीजा नीति, भारत सहित तमाम देशों की चीजों पर भारी भरकम टैरिफ (टैक्स), इमीग्रेशन नीति आदि ऐसे मुद्दे हैं, जिसमें ट्रंप भारत को भी कोई रियायत नहीं देंगे। जानिए कि ट्रंप की जीत का भारत के लिए क्या मायने हैंः

यूएस के 47वें राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ताजपोशी और उसके बाद उनकी भारत नीति का बेसब्री से इंतजार न सिर्फ भारत को है बल्कि अमेरिका में रह रहे असंख्य अमेरिकी भारतीय को भी है। हालांकि यूएस में डेमोक्रेट या रिपब्लिकन किसी का भी शासन आए, उनकी विदेश नीति और इजराइल नीति कभी नहीं बदलती। लेकिन पूरे चुनाव प्रचार अभियान के दौरान ट्रंप के दिए गए भाषण बता रहे हैं कि वो अपनी विदेश नीति को नई शक्ल देंगे। जिसमें भारत के लिए प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष चुनौतियां कम नहीं होंगी। मसलन हाई टैरिफ और वीजा प्रमुख है, जिसका सीधा सरोकार भारत से है। अगर चीन की तरह भारत में निर्मित वस्तुओं पर हाई टैरिफ पर लगा तो इसका असर भारत के  उद्योग जगत पर होगा। वीजा के नियम कड़े हुए तो भारतीय प्रोफेशनल्स पर असर पड़ेगा। यही वजह है कि तमाम विदेश मुद्रा बाजार इस समय अस्थिर हो गए हैं। खुद अमेरिका की ट्रेजरी का रुख और फेडरल रिजर्व द्वारा कम कटौती के बाद अमेरिका में महंगाई बढ़ने की आशंकाएं जताई जा रही हैं। इसका असर भारत समेत कई देशों की मौद्रिक नीति (monetary policy) के फैसलों पर असर पड़ सकता है।

ट्रंप अपने राष्ट्रपति चुनाव अभियान के दौरान भारत का उल्लेख पहले ही कर चुके हैं। जब उन्होंने भारत को आयात शुल्क का " एब्यूजर (दुर्व्यवहार)" कहा था। उनका यह बयान उनके अक्टूबर 2020 के बयान की ही कॉपी है जिसमें उन्होंने भारत को 'टैरिफ किंग' करार दिया था। भारत से आयात होने वाली वस्तुओं पर अमेरिका में जो टैक्स लगता है, उसे टैरिफ कहा जाता है।

फिर भी सबकुछ इस बात पर निर्भर होगा कि ट्रंप अपने राष्ट्रपति पद को कैसे आगे बढ़ाते हैं। नए अमेरिकी राष्ट्रपति की आर्थिक नीति में सभी आयातों पर हाई टैरिफ मुख्य मुद्दा है। कहा जा रहा है कि मोदी के मित्र भारत के लिए 10 फीसदी टैरिफ और चीन के लिए 60 फीसदी तक टैरिफ रख सकते हैं। इसके अलावा ट्रंप के लिए इमीग्रेशन (आव्रजन) पर रोक भी बड़ा मुद्दा है। 

तमाम इंडस्ट्री एक्सपर्ट अभी से कहने लगे हैं कि भारत को मोदी के दोस्त ट्रंप बख्श देंगे, इसकी मामूली संभावना भी नहीं है। भारत को यूएस में अब प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से हाई टैरिफ का सामना करना ही पड़ेगा। विशेषज्ञों का मानना ​​है कि ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद शायद भारत सहित अन्य देशों में भी टैरिफ चीन से भी ज्यादा हो जाएगा।

आर्थिक थिंक टैंक ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (जीटीआरआई) की एक रिपोर्ट में कहा गया है, "ट्रंप भारत में आने वाली वस्तुओं पर टैरिफ में कटौती करने और भारतीय वस्तुओं पर विशेष रूप से ऑटोमोबाइल, कपड़ा, फार्मास्यूटिकल्स और वाइन जैसे क्षेत्रों में हाई टैरिफ लगा सकते हैं। इन हालात में अमेरिकी बाजार भारतीय निर्यात को कम प्रतिस्पर्धी बना सकता है, जिससे राजस्व प्रभावित हो सकता है।"

वित्त वर्ष 2024 में 77.5 बिलियन डॉलर के कुल निर्यात के साथ अमेरिका भारत का सबसे बड़ा निर्यात भागीदार है और कुल द्विपक्षीय व्यापार लगभग 120 बिलियन डॉलर था। हालांकि ट्रंप की चीन विरोधी नीति का भारत पर पॉजिटिव प्रभाव पड़ सकता है। लेकिन ट्रंप 'भारत द्वारा अमेरिकी वस्तुओं पर हाई टैरिफ' के आलोचक रहे हैं और जब अपनी बारी आएगी तो वो हाई टैरिफ लागू करने में संकोच नहीं करेंगे। इसका सीधा असर भारत के आयात-निर्यात पर पड़ेगा।

हालाँकि, जीटीआरआई रिपोर्ट में कहा गया है कि ट्रंप अमेरिका में चीनी इन्फ्रास्ट्रक्चर पर निर्भरता कम करने की पहल कर सकते हैं, जिससे भारत के लिए सेमीकंडक्टर और इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे क्षेत्रों में प्रमुख उत्पादों की आपूर्ति के नए अवसर पैदा हो सकते हैं।

ट्रंप की एच1 बी वीजा नीति

भारतीय प्रोफेशनल्स में इस बात को लेकर भी चिंता बनी हुई है कि एच-1बी वीजा नीति पर ट्रंप की नीतियां क्या होंगी, जिसका भारत के आईटी क्षेत्र पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ सकता है। आउटसोर्सिंग पर सख्त नीतियां और एच-1बी वीजा पर संभावित प्रतिबंध भारत के आईटी क्षेत्र की रफ्तार को रोक सकते हैं, जो अमेरिकी बाजार पर बहुत अधिक निर्भर है। जीटीआरआई रिपोर्ट में कहा गया है कि आउटसोर्सिंग कम होने से भारतीय कंपनियों की कमाई प्रभावित हो सकती है और कुशल प्रतिभा को काम पर रखना मुश्किल हो सकता है।

तमाम विश्लेषक अमेरिकी अर्थव्यवस्था और ग्लोबल मार्केट पर इन नीतियों के प्रभाव को लेकर भी सतर्क हैं। कम अवधि में, ऐसे उपाय अमेरिकी विकास को बढ़ा सकते हैं। लेकिन बाकी देशों में वे महंगाई बढ़ाने के साथ-साथ चीनी अर्थव्यवस्था की संभावित मंदी का कारण भी बन सकते हैं। यह सब मिलकर एक बहुत बड़ा आर्थिक प्रभाव डाल सकता है।

यह भी उम्मीद की जा रही है कि डॉलर के मजबूत होने से भारतीय मुद्रा कमजोर होगी। 2025 की पहली छमाही में 84.50-85 तक जाने से पहले, अगले दो से तीन महीनों में रुपया 84.20-84.50 की सीमा तक गिर सकता है। 

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