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डिपोर्टेशन पर ट्रंप ने क्या अदालती आदेश भी नहीं माना? जानें विवाद क्यों

डिपोर्टेशन पर ट्रंप ने क्या अदालती आदेश भी नहीं माना? जानें विवाद क्यों

अमेरिका ने वेनेजुएला के सैकड़ों कथित गैंग मेंबर्स को एल साल्वाडोर डिपोर्ट किया। ट्रंप प्रशासन ने युद्धकालीन शक्तियों का इस्तेमाल किया, बावजूद इसके कि एक फेडरल जज ने इसे रोकने का आदेश दिया था। क्या यह कानून का उल्लंघन है?

डिपोर्टेशन पर अपने एक फ़ैसले को लेकर डोनाल्ड ट्रंप विवादों में घिर गए हैं। दरअसल, अमेरिका से वेनेजुएला के सैकड़ों कथित गैंग मेंबरों को रविवार को एल साल्वाडोर की एक जेल में डिपोर्ट किया गया। ट्रंप प्रशासन ने इस कार्रवाई के लिए युद्धकालीन शक्तियों का इस्तेमाल किया। वह भी तब जब एक फेडरल जज ने शनिवार शाम को इस क़दम को रोकने का आदेश दिया था। यह घटना व्हाइट हाउस और न्यायपालिका के बीच एक नया टकराव बन गई है। ट्रंप ने इसे आक्रमण करार दिया, जबकि आलोचकों ने इसे कानून का उल्लंघन बताया है।

ट्रंप प्रशासन ने 1798 के एलियन एनेमीज एक्ट का हवाला देकर वेनेजुएला के ट्रेन डे अरागुआ गैंग के कथित सदस्यों को डिपोर्ट करने की प्रक्रिया शुरू की। शनिवार को यूएस डिस्ट्रिक्ट जज जेम्स बोसबर्ग ने इस क़ानून के इस्तेमाल पर अस्थायी रोक लगा दी। यहाँ तक कि जज ने उड़ान भर चुके विमानों को वापस अमेरिका लौटाने का मौखिक आदेश दिया। उनका तर्क था कि सरकार ने निर्वासन के ख़िलाफ़ दायर याचिकाओं का जवाब नहीं दिया और प्रक्रिया को रोकना ज़रूरी है। यह रोक 14 दिनों तक प्रभावी रहेगी।

हालाँकि, रविवार तक ये लोग एल साल्वाडोर पहुँच चुके थे और वहाँ की कुख्यात सेकॉट जेल में स्थानांतरित कर दिए गए। व्हाइट हाउस प्रेस सेक्रेटरी कैरोलिन लेविट ने दावा किया कि अदालती आदेश आने के पहले निर्वासन पूरा हो चुका था, इसलिए कोई उल्लंघन नहीं हुआ। लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि मौखिक आदेश का भी कानूनी वजन होता है, और यह सवाल उठता है कि क्या प्रशासन ने जानबूझकर अदालत को नज़रअंदाज़ किया।

राष्ट्रपति ट्रंप ने इस क़दम का बचाव करते हुए कहा कि ये बुरे लोग थे और अमेरिका पर आक्रमण हो रहा था। उन्होंने इसे "युद्ध का समय" करार दिया, जो उनके पिछले दावों को दोहराता है कि बाइडन प्रशासन ने आव्रजन यानी इमिग्रेशन से नहीं निपटा। ट्रंप ने यह भी कहा कि अदालती आदेश का उल्लंघन हुआ या नहीं, इसके लिए वकीलों से पूछें। यह ट्रंप की आक्रामक आव्रजन नीति का हिस्सा है, जिसके तहत उन्होंने गैंग मेंबरों को आतंकवादी ठहराया और तेजी से कार्रवाई की। 

एल साल्वाडोर के राष्ट्रपति नायिब बुकेले ने इस निर्वासन का स्वागत किया और ट्विटर पर घोषणा की कि ट्रेन डे अरागुआ गैंग के 238 मेंबर और एमएस-13 गैंग के 23 सदस्य उनके देश पहुंच गए हैं। इन्हें सेकॉट यानी सेंटर फॉर टेररिज्म कनफाइनमेंट में एक साल के लिए रखा जाएगा। अमेरिका इसके लिए 60 लाख डॉलर देगा, जो बुकेले के अनुसार उनकी जेल प्रणाली को आत्मनिर्भर बनाने में मदद करेगा। 

आलोचकों का कहना है कि बिना सही प्रक्रिया के डिपोर्टेशन अन्यायपूर्ण है। अदालत के आदेश के बीच ट्रंप का यह क़दम कई सवाल उठाता है।

  • पहला, क्या ट्रंप प्रशासन ने जानबूझकर अदालती आदेश की अवहेलना की? सीएनएन ने कानूनी विशेषज्ञ एली होनिग के हवाले से कहा है कि मौखिक आदेश भी बाध्यकारी होते हैं, और यह सवाल महत्वपूर्ण है कि विमान कहां थे जब आदेश जारी हुआ।
  • दूसरा, एलियन एनेमीज एक्ट का इस्तेमाल, जो पहले युद्ध के दौरान ही हुआ, शांतिकाल में कितना वैध है?
  • तीसरा, सेकॉट जेल की अमानवीय परिस्थितियां - जहां 40,000 कैदी बिना बुनियादी सुविधाओं के रखे जाते हैं - मानवाधिकारों पर सवाल उठाती हैं। 

सीएनएन की रिपोर्ट के अनुसार रिपब्लिकन सीनेटर माइक राउंड्स ने कहा है कि जनता सुरक्षा चाहती है और पुराने कानून का इस्तेमाल जायज है, भले ही समय पर सवाल हों। वहीं, डेमोक्रेट नेता हकीम जेफरीज ने इसे कानून के शासन के ख़िलाफ़ बताया और चेतावनी दी कि यह नीति वैध नागरिकों और परिवारों को भी प्रभावित कर सकती है। यह विभाजन अमेरिकी राजनीति में इमिग्रेशन पर गहरे मतभेद को उजागर करता है।

ट्रंप का यह क़दम उनकी सख़्त आव्रजन नीति और कार्यकारी शक्ति के दावे को दिखाता है, लेकिन यह अमेरिका की कानूनी प्रणाली और अंतरराष्ट्रीय छवि पर सवाल उठाता है। एल साल्वाडोर के साथ सौदा क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा दे सकता है, लेकिन सेकॉट जेल की स्थितियां और प्रक्रिया की पारदर्शिता चिंता का विषय है। क्या यह सुरक्षा के लिए ज़रूरी कदम था या क़ानून की अनदेखी? यह बहस आगे बढ़ेगी, खासकर जब जज इस उल्लंघन की जांच करेंगे। 

(इस रिपोर्ट का संपादन अमित कुमार सिंह ने किया है)

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