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ग़ज़ा को लेकर ट्रम्प की खतरनाक घोषणा, क्या मध्य पूर्व को उकसा रहा है यूएस

ग़ज़ा को लेकर ट्रम्प की खतरनाक घोषणा, क्या मध्य पूर्व को उकसा रहा है यूएस

अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प के ग़ज़ा पर कब्जे के बयान को लेकर दुनिया में हलचल मच गई है। लेकिन ट्रम्प ने इज़राइली प्रधानमंत्री नेतन्याहू की मौजूदगी में ही ऐसा बयान क्यों दिया। तमाम देशों ने इसे ठुकरा दिया है। जानिये पूरा मामलाः 

एक हैरान कर देने वाले और भड़काने वाले बयान में, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने घोषणा की है कि अमेरिका को ग़ज़ा पट्टी पर "कब्जा" कर लेना चाहिए। हमास, अरब देशों और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से फौरन ही जबरदस्त ढंग से प्रतिक्रिया देते हुए ट्रम्प के बयान को नामंजूर कर दिया। ट्रम्प ने यह घोषणा तब कि जब मंगलवार को इज़राइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू व्हाइट हाउस में ट्रम्प से मिलने आये।

ट्रम्प की घोषणा अपने आप में एक राजनीतिक स्टंट लग रही है, उसने पहले से ही अस्थिर क्षेत्र में तनाव को फिर से बढ़ा दिया है। मध्य पूर्व जियोपॉलिटिक्स को लेकर ट्रम्प की समझ पर गंभीर सवाल उठाए जा रहे हैं। इस तरह के बयान के निहितार्थ दूरगामी हैं। इससे क्षेत्र में नाजुक अमनचैन को अस्थिर करने और यूएसए को ग्लोबल मंच पर अलग-थलग पड़ने का खतरा भी है।

ट्रम्प अब लगातार भड़काऊ टिप्पणियाँ कर रहे हैं। अवैध प्रवासियों को डिपोर्ट करने और अमेरिकी नागरिकता की वजह से पहले ही यूएस में उथलपुथल मची हुई है। उनकी टैरिफ संबंध घोषणाओं ने पूरी दुनिया के शेयर बाजार पर पहले ही असर डाल रखा है। ट्रम्प के बयान उनकी लापरवाही और कूटनीतिक बारीकियों की कमी को बार-बार सामने ला रहे हैं। 

घनी आबादी वाला फिलिस्तीनी क्षेत्र ग़ज़ा पट्टी दशकों से इज़राइल-फिलिस्तीनी संघर्ष का केंद्र रहा है। 2007 से हमास द्वारा शासित, ग़ज़ा के अंदर और चारों तरफ इज़राइल नाकाबंदी, अवैध कब्जे और लगातार सैन्य हमले से तबाह हो चुका है। अमेरिका द्वारा ग़ज़ा पर "कब्जा" करने का विचार न केवल कानूनी और नैतिक रूप से संदिग्ध है, बल्कि अव्यावहारिक भी है।

ट्रंप रणनीति की वजहें

इज़राइल के साथ संबंध मजबूत करना:

ट्रंप ने अपने कार्यकाल के दौरान इज़राइल के साथ अमेरिका के संबंधों को मजबूत करने पर जोर दिया है। उन्होंने यरूशलम को इज़राइल की राजधानी के रूप में मान्यता दी थी और अमेरिकी दूतावास को तेल अवीव से यरूशलम ट्रांसफर किया था। ग़ज़ा पर कब्ज़े की बात करके ट्रंप इज़राइल को यह संकेत दे रहे हैं कि अमेरिका उसकी सुरक्षा और रणनीतिक हितों का समर्थन करता है।

मध्य पूर्व में अमेरिकी प्रभाव बढ़ाना:

ट्रम्प की प्रशासनिक नीतियों का एक मुख्य उद्देश्य मध्य पूर्व में अमेरिकी प्रभाव को बढ़ाना है। ग़ज़ा पर कब्ज़े की बात करके वह इस क्षेत्र में अमेरिकी उपस्थिति को मजबूत करना चाहते हैं। यह कदम अमेरिका के लिए मध्य पूर्व में अपनी स्थिति को सुदृढ़ करने का एक रणनीतिक कदम भी हो सकता है।

फिलिस्तीनी-इज़राइल संघर्ष में हस्तक्षेप:

ट्रम्प ने फिलिस्तीनी-इज़राइल संघर्ष को सुलझाने के लिए "सदी का सौदा" (Deal of the Century) पेश किया था। हालांकि, इस सौदे को फिलिस्तीनी अधिकारियों ने खारिज कर दिया था। ग़ज़ा पर कब्ज़े की बात करके ट्रंप संभवतः इस सौदे को फिर से जीवित करना चाहते हैं और इज़राइल को एक मजबूत स्थिति में लाना चाहते हैं।

हमास के प्रभाव को कम करना:

हमास का ग़ज़ा पट्टी पर नियंत्रण है और इज़राइल के लिए हमेशा एक बड़ी सुरक्षा चुनौती है। ट्रम्प का बयान हमास के प्रभाव को कम करने और इज़राइल को ग़ज़ा में अपनी स्थिति मजबूत करने का संकेत देता है। यह कदम इज़राइल की सुरक्षा चिंताओं को दूर करने के लिए उठाया गया हो सकता है। इज़राइल और अमेरिका पूरा ज़ोर लगाने के बावजूद हमास को खत्म नहीं कर पाये हैं।

अरब देशों पर दबाव बनाना:

ट्रम्प का बयान अरब देशों के लिए एक संदेश हो सकता है कि अमेरिका इज़राइल के साथ अपने संबंधों को प्राथमिकता देता है। यह कदम अरब देशों पर दबाव बनाने के लिए भी हो सकता है ताकि वे इज़राइल के साथ संबंध सुधारें और अमेरिकी नीतियों का समर्थन करें।

अपने पिछले राष्ट्रपति कार्यकाल में ट्रम्प ने इज़राइल के पक्ष में कई विवादास्पद कदम उठाए, जिनमें यरूशलम को इज़राइल की राजधानी के रूप में मान्यता देना और फिलिस्तीनी शरणार्थियों की सहायता में कटौती करना शामिल था। उनकी ताजा टिप्पणियाँ इज़राइल की स्थिति को मजबूत करते हुए राज्य के दर्जे के लिए फ़िलिस्तीनी उम्मीदों को कमज़ोर करने की उनकी व्यापक रणनीति लगती है। हालाँकि, ग़ज़ा पर अमेरिकी नियंत्रण का सुझाव एक नाटकीय मोड़ है, जिसे इज़राइल ने भी प्रस्तावित नहीं किया है।

ट्रम्प ने ऐसा क्यों कहा?

ट्रम्प अवैध प्रवासियों, जन्मस्थान नागरिकता कानून, टैरिफ घोषणाओं को लेकर पहले से ही विवाद में हैं और अब अमेरिका में भी उनका विरोध हो रहा है। कुछ शहरों में प्रदर्शन भी हुए हैं। लग यह रहा है कि ट्रम्प ने ध्यान भटकाने के लिए यह बयान दे डाला है। हालांकि इस विवादास्पद बयान के बाद वो अंतरराष्ट्रीय सुर्खियां तो बटोर रहे हैं लेकिन बड़बोलेपन वाली अपनी छवि को भी मजबूत किया है। अमेरिका में यहूदी लॉबी काफी मजबूत है। यहूदी लॉबी शुरू से ही अमेरिका की नैतिक भागीदारी को अपने समर्थन में देखना चाहते हैं। ट्रम्प के बयान से इस लॉबी का जबरदस्त समर्थन ट्रम्प को हासिल होगा। ट्रम्प की यह टिप्पणी पूर्व राष्ट्रपति जो बाइडेन के विपरीत खुद को एक निर्णायक नेता के रूप में स्थापित करने की एक कोशिश हो सकती हैं। ट्रम्प अक्सर विदेश नीति को लेकर बाइडेन की आलोचना करते रहे हैं।

ट्रम्प का प्रस्ताव वैसे भी वास्तविकता पर आधारित नहीं है। अमेरिका के पास ग़ज़ा पर "कब्जा" करने का कोई कानूनी या नैतिक अधिकार नहीं है। न ही उसके पास ऐसी जटिल राजनीतिक और मानवीय चुनौतियों वाले क्षेत्र का प्रशासन संभालने की क्षमता है। यह विचार इस क्षेत्र की गतिशीलता और अंतरराष्ट्रीय कानून के सिद्धांतों की बुनियादी गलतफहमी को बताता है।


हमास और अरब देशों की प्रतिक्रियाएँ

ट्रम्प के बयान की चारों तरफ निंदा हो रही है। ग़ज़ा पर शासन करने वाले हमास ने प्रस्ताव को सिरे से खारिज कर दिया और इसे "खतरा" करार देते हुए फिलिस्तीनी संप्रभुता पर हमला बताया। हमास के प्रवक्ता हाजेम कासिम ने कहा कि इस तरह के कदम से ग़ज़ा की आबादी की पीड़ा और बढ़ेगी और अवैध इज़राइली कब्जा और मजबूत होगा। हमास ने यह भी चेतावनी दी कि ग़ज़ा पर नियंत्रण जताने के अमेरिका के किसी भी प्रयास का भारी प्रतिरोध किया जाएगा।

मिस्र और जॉर्डन जैसे प्रमुख अमेरिकी सहयोगियों सहित अरब देशों ने भी ट्रम्प की टिप्पणियों की आलोचना की है। मिस्र जो संघर्ष में मध्यस्थता की भूमिका निभाता रहा है, ने ट्रम्प प्रस्ताव को "अस्वीकार्य" और फिलिस्तीनी अधिकारों का उल्लंघन बताया। जॉर्डन, जहां बड़ी संख्या में फिलिस्तीनी आबादी है, ने चेतावनी दी कि इस तरह के कदम से दो-राज्य समाधान प्राप्त करने के प्रयास कमजोर होंगे और क्षेत्र अस्थिर हो जाएगा। यहां तक कि सऊदी अरब, जो इज़राइल के साथ संबंधों को सामान्य बनाने के लिए काम कर रहा है, ने ट्रम्प के बयान से खुद को दूर कर लिया। सऊदी अरब फिलिस्तीनी अधिकारों का सम्मान करने और बातचीत से समाधान की जरूरत पर जोर देता रहा है।

अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने भी इस पर विचार किया है। संयुक्त राष्ट्र और यूरोपीय यूनियन ने 1967 की सीमाओं के आधार पर दो-राज्य समाधान के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दोहराई है। ऑस्ट्रेलिया ने भी साफ शब्दों में कहा कि दो राज्य ही एकमात्र समाधान है। कई अंतरराष्ट्रीय नेता ट्रम्प के प्रस्ताव को स्थापित राजनयिक मानदंडों की जगह खतरनाक ढंग से आगे बढ़ने और हिंसा भड़काने की वजह बनने के रूप में देख रहे हैं।

ट्रम्प के अमेरिकी नियंत्रण के विचार से क्षेत्र में तनाव बढ़ने की आशंका है। यह हमास और अन्य फिलिस्तीनी गरम दलों के हिंसक प्रतिरोध को भड़का सकता है, जिससे संघर्ष का एक और दौर शुरू हो सकता है। इससे अरब देशों के साथ अमेरिकी संबंधों में भी तनाव आएगा। जिनमें से कई पहले से ही फिलिस्तीनी मुद्दे से निपटने के लिए वाशिंगटन की आलोचना कर रहे हैं। ऐसे क्षेत्र में जहां अमेरिकी विरोधी भावना पहले से ही ऊंची है, ट्रम्प के प्रस्ताव से प्रमुख सहयोगियों के अलग-थलग होने और अमेरिकी प्रभाव के कमजोर होने का जोखिम है।

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