क्या संयुक्त राज्य अमेरिका असफल राज्य बन गया है?

08:26 am Nov 07, 2020 | पॉल क्रुगमैन - सत्य हिन्दी

जब मैं यह लेख लिख रहा हूँ, इसकी पूरी संभावना है कि जो बाइडन राष्ट्रपति का चुनाव जीत जाएं। और यह भी संभव है कि उन्हें अपने प्रतिद्वंद्वी से लाखों वोट अधिक मिले। वह यह दावा कर सकते हैं और उन्हें ऐसा करना भी चाहिए कि उन्हें देश चलाने के लिए ज़बरदस्त जनादेश मिला है। 

भितरघात करेगी रिपब्लिकन पार्टी

पर असली सवाल तो यह है कि क्या वह वाकई देश चला पाएंगे इस समय तो इसकी पूरी आशंका है कि सेनेट, जो अमेरिकी जनता का प्रतिनिधित्व बिल्कुल ही नहीं करता है, वह एक अतिवादी दल के कब्जे में रहे और हर मुमकिन तरीके से बाइडन के कामकाज में भितरघात करे। 

इसके पहले कि मैं यह बताऊँ कि सेनेट किस तरह अमेरिकी जनता का प्रतिनिधित्व नहीं करता है, मैं यह बताऊं कि वहां किस तरह का टकराव होने वाला है। 

सेनेट किसका प्रतिनिधि

हर राज्य से दो सेनेटर चुने जाते हैं, इसका मतलब यह है कि व्योमिंग के 5,79,000 नागरिकों का जितना वजन है, कैलिफ़ोर्निया के 3.90 करोड़ लोगों का भी उतना ही वजन है। ज़्यादा वजन वाले इन राज्यों में शहरीकरण जितना हुआ है, पूरे देश का उतना नहीं हुआ है। महानगरीय और ग्रामीण इलाक़ों में जिस तरह का विभाजन है, उससे सेनेट में दक्षिणपंथी तत्व अधिक प्रभावशाली हैं। 

फ़ाइवथर्टीएट. कॉम नामक वेबसाइट ने पाया है कि औसत जितने दक्षिणपंथी वोटर हैं, सेनेट उसका सात प्रतिशत अधिक लोगों का प्रतिनिधित्व करता है। सूज़न राइस का मामला अलग है, जिन्होंने डेमोक्रेट राज्य में भी अपनी पकड़ बनाए रखी, यह अपवाद है। पर अंदर ही अंदर दक्षिणपंथी भावनाएं रहने की वजह से राष्ट्रपति को अधिक पॉपुलर वोट हासिल होने के बावजूद सेनेट पर रिपब्लिकन पार्टी की ही पकड़ बरक़रार रहेगी। 

अड़ंगा डालेगा सेनेट

पर आप पूछ सकते हैं कि सरकार में इस तरह के विभाजन से  क्या समस्या है इसके पहले भी तो बराक ओबामा के राष्ट्रपति रहते हुए लगभग तीन चौथाई समय में कांग्रेस के एक या दोनों सदनों पर रिपब्लिकन पार्टी का कब्जा था और हम लोग ठीक ही हैं, नहीं क्या

हां, लेकिन। 

दरअसल, रिपब्लिकन पार्टी ने बराक ओबामा के दिनों में भी बहुत नुक़सान पहुँचाया था। वह हर बात पर अड़ंगा डालती रही, राष्ट्रीय स्तर पर हर मुद्दे पर बहस छेड़ने की धमकी देती रहती थी, सरकार के क़र्ज़ पर रोक लगाने की बात कहती थी, आर्थिक मदद मिलते रहने के प्रावधान को बंद करने की चेतावनी देती रहती थी, जिससे अर्थव्यवस्था को पटरी पर लौटने में अधिक समय लगा।

मेरा अनुमान है कि रिपब्लिकन पार्टी ने इस तरह का भितरघात नहीं किया होता तो 2014 में बेरोज़गारी की दर जितनी थी, उससे दो प्रतिशत बिन्दु कम हो सकती थी।

आज क्या स्थिति है

और सरकार के अधिक खर्च करने की ज़रूरत जितनी 2011 में थी, आज उससे अधिक है, जब रिपब्लिकन पार्टी का दोनों ही सदनों पर कब्जा है। 

डोनल्ड ट्रंप

अभी तो कोरोनावायरस का तांडव चल रहा है और रोज़ाना एक लाख नए मामले आ रहे हैं और यह संख्या बढ़ती ही जा रही है। राज्य और स्थानीय सरकारों ने फिर से लॉकडाउन नहीं लगाया तो भी अर्थव्यवस्था का बुरा हाल होने वाला है। 

फ़िलहाल यह ज़रूरी है कि स्वास्थ्य सेवाओं पर केंद्र सरकार अधिक खर्च करे, बेरोज़गारों और व्यवसायियों को अधिक मदद करे और पैसे की तंगी वाले राज्यों और स्थानीय निकायों को पहले से अधिक मदद दी जानी चाहिए।

सरकार का खर्च

एक मोटा अनुमान है कि नए केंद्र सरकार को 200 अरब डॉलर या इससे अधिक हर महीने कोरोना टीका पर खर्च करना चाहिए ताकि उस पर नियंत्रण किया जा सके। पर यदि मिच मैककॉनल के नियंत्रण वाला सेनेट इस पर राजी होता है तो मुझे ताज्जुब होगा। 

कोरोना महामारी ख़त्म हो जाने पर भी अभी आर्थिक स्थिति डावाँडोल ही बनी रहेगी और सरकार को अधिक से अधिक पूंजी निवेश करना होगा। पर मैककॉनल ने तो ढाँचागत सुविधाओं के विकास पर खर्च के प्रस्ताव को डोनल्ड ट्रंप के समय भी रोक दिया था। वह बाइडन के प्रति अधिक दरियादिली भला क्यों दिखाएंगे

कार्यकारी आदेश

नीति निर्धारण का एक मात्र पहलू सरकारी खर्च ही नहीं है। राष्ट्रपति अपने कार्यकारी आदेश के अधिकार का पालन कर कई अच्छे (जैसा का ओबामा ने किया था) या ख़राब फ़ैसले (जैसा कि डोनल्ड ट्रंप ने किया था) कर सकता है। दरअसल, गर्मियों के समय डेमोक्रेटिक पार्टी ने ऐसे कई कामों का पता लगाया था, जिसे जो बाइडन कार्यकारी आदेश के जरिए बगैर कांग्रेस से पारित करवाए ही कर सकते हैं।  

जो बाइडन

पर मैं एक बुरी तरह से एक पक्ष में झुके सुप्रीम कोर्ट की भूमिका पर चिंतित हूं-एक ऐसी अदालत तो मैककॉनल के परंपराओं को तोड़ने वाले व्यवहार पर अंकुश नहीं लगा सकती है। यह इससे भी साफ है कि चुनाव के महज कुछ दिन पहले एमी कोनी बैरेट को जज बनाने की पुष्टि कर दी गई। 

अदालत का रवैया

नौ में से छह जज उस पार्टी द्वारा चुने गए हैं, जिसे बीते 8 चुनावों में सिर्फ एक बार पॉपुलर बहुमत मिला है। और मुझे लगता है कि यह अदालत 1930 के दशक के सुप्रीम कोर्ट की तरह व्यवहार करेगी। उस वक्त अदालत ने न्यू डील प्रोग्राम के हर प्रस्ताव को रोका था और राष्ट्रपति एफ़ डी. रूज़वेल्ट को जजों की संख्या बढ़ाने की धमकी देनी पड़ी थी। बाइडन तो यह धमकी भी नहीं दे सकते क्योंकि सेनेट पर रिपब्लिकन पार्टी का नियंत्रण है। 

हम लोग गंभीर संकट में हैं। ट्रंप की हार का मतलब यह होगा कि हम एकाधिकारवाद के ख़तरे को कुछ समय के लिए टालने में कामयाब हो गए हैं। बहुत कुछ दाँव पर लगा हुआ है, सिर्फ ट्रंप के कारण नहीं, बल्कि इसलिए भी कि रिपब्लिकन पार्टी बहुत ही अतिवादी और लोकतंत्र-विरोधी है।

पंगु राष्ट्रपति

लेकिन हमारे असंतुलित चुनाव प्रणाली की वजह से ट्रंप की पार्टी न सिर्फ अगले राष्ट्रपति के कामकाज में अड़ंगा डाल सकती है, वरन, उन्हें पूरी तरह पंगु भी कर दे सकती है। और यह ऐसे समय होगा जब उन्हें महामारी, अर्थव्यवस्था और पर्यावरण  से जुड़ी चुनौतियों का सामना करना होगा। 

हम इसे ऐसे समझें। यदि हम किसी दूसरे देश को देखें, जहां अमेरिका के स्तर की ही राजनीतिक कार्यविहीनता हो तो वह एक असफल राज्य बनने के कगार पर पहुँच जाएगा। यह एक ऐसा राज्य होगा जिसकी सरकार स्थितियों पर नियंत्रण नहीं कायम कर सकती हो।

जॉर्जिया में फिर से चुनाव किए जाने से सेनेट पर डेमोक्रेटिक पार्टी का नियंत्रण हो सकता है। लेकिन बाइडन को कुछ ऐसे रिपब्लिकन सांसदों की तलाश करनी होगी जो देश को डूबने के कगार से वापस खींचने में दिलचस्पी रखते हों। पर इस जीत के बावजूद यह गणतांत्रिक देश ख़तरे में है।

(न्यूयॉर्क टाइम्स से साभार)