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ईरान की जवाबी कार्रवाई नेतन्याहू की चतुर चाल का नतीजा?

ईरान की जवाबी कार्रवाई नेतन्याहू की चतुर चाल का नतीजा?

ईरान और इज़राइल के बीच मौजूदा राजनीतिक संकट की वजह क्या है? क्या यह उकसावे वाली कार्रवाई नहीं थी? यदि ऐसा था तो इसके पीछे असल वजह क्या है?

कहा जाता है कि छल का सच्चा माहिर वही है जो बिना कोई निशान छोड़े सच्चाई में हेरफेर कर सकता है। इज़राइली प्रधानमंत्री नेतन्याहू इस कला में माहिर दिखते हैं।

यदि 1 अप्रैल को दमिश्क में ईरानी रक्षाकर्मियों पर हुए इज़राइली मिसाइल हमले से एक सप्ताह पहले की घटनाओं पर ग़ौर किया जाए तो यह आभास मिलेगा कि इज़राइली प्रधानमंत्री बेंजमिन नेतन्याहू का राजनीतिक करियर अंत की ओर बढ़ रहा था। लेकिन इस मिसाइल हमले ने ग़ज़ा में इज़राइली सैन्य सफलता की मंथर गति, नागरिकों की बेहिसाब मौतों के प्रति दुनिया की बढ़ती चिंता और नेतन्याहू के लिए घटते घरेलू समर्थन से लोगों का ध्यान भटका दिया।

25 मार्च को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने रमज़ान के महीने के लिए ग़ज़ा में तत्काल युद्धविराम की मांग करते हुए एक संकल्प अपनाया। 14 सदस्यों ने पक्ष में मतदान किया जबकि इज़राइल का सबसे कट्टर समर्थक अमेरिका अनुपस्थित रहा। इसके बाद अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने ग़ज़ा के लिए और अधिक राहत केंद्र खोलने और दक्षिण ग़ज़ा में राफा शरणार्थी शिविर क्षेत्र में इज़राइली सेना को कार्रवाई करने के खिलाफ चेतावनी दी। इज़राइल ने दावा किया कि राफा इलाक़े में हमास के अधिकतर लोगों के साथ-साथ बंधकों को भी रखा गया है। अमेरिकी विरोध के कारण इज़राइल को अपने सैनिकों को ग़ज़ा से निकालने पर मजबूर होना पड़ा। यह असली झटका था। अमेरिका के बाद अन्य राष्ट्र भी इज़राइल पर प्रतिकूल दबाव बनाने लगे थे। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इज़राइल के प्रति सहानुभूति कम होती दिखाई देने लगी थी। 

अमेरिकी समर्थन खोने के बाद घरेलू हालात भी बेंजमिन नेतन्याहू के लिए प्रतिकूल हो गए थे। सड़कों पर ‘Go Bibi Go’ यानी नेतन्याहू गद्दी छोड़ो के नारे लगने लगे थे। इज़राइली नागरिकों ने  सैन्य अभियानों में देरी से मिलती सफलता और बंधकों की रिहाई के लिए हमास के साथ बातचीत को अवरुद्ध करने के लिए नेतन्याहू को दोषी ठहराया।

इसलिए मार्च के अंतिम सप्ताह में नेतन्याहू इज़राइली प्रधानमंत्री के पद पर लगभग 24 वर्षों के अपने कार्यकाल के बाद पदच्युत होने और संभावित कानूनी मुक़दमेबाज़ी की ओर बढ़ रहे थे। इसलिए उन्होंने दमिश्क (सीरिया) में मिसाइल हमले कर कहानी बदल दी और अपने लिए राहत ख़रीद ली। 

नेतन्याहू ने अपनी चतुर राजनीतिक कुशलता का परिचय दिया जिससे उनके सभी नकारात्मक पहलू ईरानी ड्रोन और मिसाइलों के मलबे के नीचे दब गए। अब अमेरिका ही नहीं, अन्य राष्ट्र भी हमास को भूल इज़राइल का समर्थन कर रहे हैं और उनके नागरिक अपनी सेना की काबिलियत की प्रशंसा।

अब क्या?

इस झड़प में इज़राइल और ईरान दोनों ने अपने-अपने आधुनिक हथियारों की क्षमताओं का प्रदर्शन किया है। ईरान ने 1000 किलोमीटर की दूरी से 185 कैमिकाज़ी मिसाइलों को लक्ष्य तक पहुँचाकर अपनी दक्षता दिखलाई। 30 क्रूज़ और 110 बलिस्टिक मिसाइलें भी छोड़ीं जो दो राष्ट्रों के हवाई क्षेत्र से गुजरकर इज़राइल के समीप पहुंचीं। इनमें सात बलिस्टिक मिसाइलें इज़राइल की जमीन पर भी गिरीं। ईरान ने इस हमले के बाद इज़राइल को चेतावनी भी दे डाली कि भविष्य में उसके खिलाफ इज़राइल की किसी भी सैन्य गतिविधि का बहुत ही कड़ा जबाब मिलेगा और यह सिर्फ झाँकी है। ईरान के इन ड्रोनों का इस्तेमाल रूसी सेना द्वारा यूक्रेन युद्ध में भी किया जा रहा है।

दूसरी तरफ़, इज़राइल ने इस हमले के दौरान अपनी कारगर वायु रक्षा प्रणाली का प्रदर्शन किया। दुनिया भर के अख़बार उसके द्वारा इस्तेमाल की गई आयरन डोम, एरो और आयरन बीम जैसे प्रणालियों की जानकारियों से भरे हैं। इन्हीं के कारण ईरानी मिसाइलें इज़राइल का उतना नुक़सान नहीं कर पाईं जितना वे कर सकती थीं। एक इज़राइली सैन्य प्रवक्ता के अनुसार 99% ईरानी मिसाइलें अपने लक्ष्य तक पहुँचने में विफल रहीं, हालाँकि यह अतिरंजना भी हो सकती है।

एक रात की यह झड़प भले ही हमारे देश में होने वाली दिवाली का एक महंगा संस्करण प्रतीत होती है लेकिन इसके पीछे नेतन्याहू की एक कामयाब रणनीति भी नज़र आती है - किस तरह किसी तीसरे देश को भड़काकर और उससे प्रतिशोधात्मक कार्रवाई करवाकर घरेलू और अंतरराष्ट्रीय स्थिति को अपने अनुकूल किया जा सकता है।

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