अफ़ग़ानिस्तान की सत्ता में काबिज होने का सपना पूरा करने जा रहे तालिबान को आतंकवादी संगठन आईएसआईएस से जोरदार चुनौती मिली है। गुरूवार को काबुल एयरपोर्ट के बाहर हुए बम धमाकों की जिम्मेदारी आईएस के गुट इसलामिक स्टेट ऑफ़ खोरासान या आईएस (के) ने ली है। बर्बरता का इतिहास रखने वाले तालिबान ने इसे आतंकवादी संगठन बताया है। आईएस (के) आईएसआईएस का ही विस्तार है।
सवाल यह है कि क्या आईएस (के) तालिबान के लिए कोई चुनौती बनेगा। इन दोनों के बीच में आख़िर झगड़ा क्या है, इसे भी समझना होगा।
आईएसआईएस की ओर से अल नाभा नाम के अख़बार में लिखे गए एक हालिया संपादकीय में ‘नए तालिबान’ की आलोचना की गई है और कहा गया है कि वह अमेरिका का प्रतिनिधि है।
संपादकीय में यह भी कहा गया है कि वह अफ़ग़ानिस्तान-पाकिस्तान के इलाक़े में इसलाम की आड़ लेकर आईएसआईएस को कमजोर करने की कोशिश कर रहा है। आईएस ने संपादकीय में कहा है कि वह जिहाद के नए चरण की तैयारी कर रहा है।
इससे समझ आता है कि आईएस तालिबान के पूरी तरह ख़िलाफ़ है।
ये दोनों ही तंजीमें जिहाद की विचारधारा पर चलती हैं और एक वक़्त में इनके बीच भयंकर खूनी संघर्ष हो चुका है। काबुल एयरपोर्ट के बाहर हुए धमाकों से पहले भी तालिबान ने आईएस के कई आतंकवादियों को खोजकर उन्हें मौत के घाट उतारा था। इस दौरान तालिबान के भी कई आतंकवादी मारे गए थे।
शरिया की अलग-अलग व्याख्या
तालिबान ने भी कहा है कि वह अफ़ग़ानिस्तान में इसलाम का शासन क़ायम करना चाहता है। इन दोनों के बीच लड़ाई इसी बात की है कि आईएस (के) जो शरिया वह मानता है, उसे लागू करना चाहता है जबकि तालिबान ने वह शरिया अफ़ग़ानिस्तान में लागू किया है, जिसे वह मानता है। इन दोनों के बीच 2017 में अफ़ग़ानिस्तान के तोरा-बोरा इलाक़े में भी जबरदस्त लड़ाई हुई थी।
ये विचारधारा का अंतर ही इन दोनों आतंकवादी संगठनों को एक-दूसरे से अलग करता है। आईएस (के) इसलाम के सलाफी आंदोलन से संबंध रखता है जबकि तालिबान देवबंदी स्कूल से मिली तालीम को मानता है।
हालांकि तालिबान इन दिनों बदला हुआ दिखता है और उसने किसी से बदला न लेने की बात कही है जबकि आईएस (के) दक्षिण व सेंट्रल एशिया में इसलामिक राज्य की स्थापना के काम में जुटा है और उसने आईएस की ग़ैर मुसलिमों के ख़िलाफ़ दुनिया भर में जिहाद की विचारधारा को अपनाया है।
तालिबान के आतंकवादी बुरे मुसलमान?
आईएस (के) कहता है कि तालिबान के विचार पूरी तरह कठोर नहीं हैं। आईएस (के) के आतंकवादी कहते हैं कि तालिबान के आतंकवादियों ने धर्म का त्याग कर दिया है और वे बुरे मुसलमान हैं क्योंकि उन्होंने अमेरिका के साथ शांति समझौता कर लिया है और ऐसा करके उन्होंने जिहाद का जो मक़सद है, उसके साथ धोखा किया है।
तालिबान जब काबुल में पहुंचा तो उसे कई जिहादी संगठनों ने जीत की बधाई दी लेकिन आईएस (के) ने कहा कि वह तालिबान के ख़िलाफ़ लड़ाई लड़ता रहेगा।
संयुक्त राष्ट्र की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक़, आईएस (के) के पास 500 से 1,500 लड़ाके हैं और इसने काबुल के आसपास अपनी स्थिति को मजबूत किया है। यह आतंकवादी संगठन उन लड़ाकों को जो तालिबान के अमेरिका के साथ हुए शांति समझौते से नाराज़ हैं, उन्हें भर्ती कर रहा है। इसके अलावा सीरिया, इराक़ से आने वाले लड़ाके भी उसके साथ आ रहे हैं।
आईएसआईएस का सरगना अबु बकर-अल बग़दादी।
खूंखार है आईएस (के)
लेकिन बहुत कम लड़ाके होने के बाद भी आईएस (के) बेहद खूंखार है और यह 2021 के शुरुआती चार महीनों में 77 हमले कर चुका है। यह पिछले साल इसी अवधि में किए गए हमलों से तीन ग़ुना ज़्यादा है। मई में इसने काबुल में स्थित शिया लड़कियों के स्कूल पर हमला कर दिया था, इसमें 85 लोगों की मौत हो गई थी और 300 घायल हो गए थे।
तालिबान के सामने चुनौती
तालिबान को अफ़ग़ानिस्तान में सरकार चलाने के लिए दुनिया भर के देशों से ताल्लुकात बनाने होंगे, पैसे जुटाने होंगे, उदार बनना होगा, तभी अंतरराष्ट्रीय समुदाय उस पर भरोसा कर उसे मान्यता देने के बारे में सोचेगा। लेकिन आईएस (के) जिस शरिया को वहां लागू करना चाहता है, उसके लिए वह तालिबान से लड़ता रहेगा। और अगर आईएस (के) ने अपनी ताक़त बढ़ा ली तो तालिबान के लिए सरकार चलाना मुश्किल हो जाएगा।