इराक़ में बवाल, राष्ट्रपति भवन में घुसे शिया धर्मगुरु के समर्थक

04:07 pm Aug 30, 2022 | सत्य ब्यूरो

इराक़ के शिया धर्मगुरु आयतुल्लाह मोक्तदा अल सद्र के राजनीति से संन्यास लेने के एलान के बाद मुल्क में हालात बिगड़ गए हैं। इराक़ की राजधानी बगदाद में शिया धर्मगुरु के समर्थकों की सुरक्षा बलों के साथ झड़पें हुई हैं और लोगों ने सरकारी इमारतों पर कब्जा कर लिया है। शिया धर्मगुरु के समर्थक राष्ट्रपति भवन में भी घुस गए हैं और वहां से उनके स्विमिंग पूल में नहाने की तस्वीरें सामने आई हैं। 

कुछ ऐसी ही तस्वीरें श्रीलंका से भी सामने आई थी जब वहां प्रदर्शनकारियों ने राष्ट्रपति भवन पर कब्जा कर लिया था। शिया धर्मगुरु के समर्थकों ने राष्ट्रपति भवन और अन्य सरकारी इमारतों के अंदर झंडे लहराए हैं और जमकर नारेबाजी भी की है। उन्होंने सुरक्षाबलों पर पथराव भी किया। 

हिंसक झड़पों में अब तक 20 लोगों की मौत हो चुकी है और 200 से ज्यादा लोग घायल भी हो चुके हैं। देश में गृह युद्ध जैसे हालात बन गए हैं। पुलिस ने हालात को काबू में करने के लिए बल प्रयोग किया है। 

शिया धर्मगुरु के द्वारा संन्यास लेने के एलान के बाद सोमवार को उनके समर्थक बगदाद के बेहद सुरक्षित इलाके ग्रीन जोन में घुस गए। समर्थकों को हटाने के लिए सुरक्षा बलों ने आंसू गैस के गोले छोड़े और गोलियां चलाई। सुरक्षाबलों के द्वारा रोके जाने के बावजूद बड़ी संख्या में प्रदर्शनकारी ग्रीन जोन के अंदर बनी इमारतों में दाखिल हो गए। 

इराक़ के सुरक्षाबलों का कहना है कि मंगलवार को ग्रीन जोन में 4 रॉकेट भी गिरे हैं। लगातार बिगड़ रहे हालात को देखते हुए प्रधानमंत्री ने सरकार की सभी बैठकों को अगले आदेश तक के लिए रद्द कर दिया है। उन्होंने शिया धर्मगुरु से अपील की है कि वह अपने समर्थकों से सरकारी इमारतों से बाहर निकलने को कहें। शिया धर्मगुरु उनके समर्थकों के खिलाफ बल का प्रयोग न करने की मांग को लेकर भूख हड़ताल पर बैठ गए हैं। 

श्रीलंका में हो चुका है बवाल 

याद दिलाना होगा कि कुछ महीने पहले श्रीलंका में भी ऐसे ही हालात बने थे जब प्रदर्शनकारी राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के आवास में घुस गए थे। उन्होंने इन पर कब्जा कर लिया था। बिगड़े हालात के बीच तत्कालीन राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे को देश छोड़ना पड़ा था। लेकिन श्रीलंका में वजह यह थी कि वहां पर लंबे वक्त से पेट्रोल-डीजल, बिजली-पानी, दवाइयां, मिट्टी का तेल, खाने-पीने की चीजें लोगों को नहीं मिल पा रही थीं। महंगाई आसमान पर थी और इस वजह से लोग वहां की हुकूमत के खिलाफ सड़क पर उतर आए थे। 

यूरोपीय यूनियन ने बगदाद में हो रही इन हिंसक झड़पों को लेकर चिंता जाहिर की है और सभी राजनीतिक दलों से अपील की है कि वे हिंसा को बढ़ने से रोकें और बातचीत का रास्ता अपनाएं। हालत खराब होने की वजह से सभी सरकारी दफ्तरों को बंद कर दिया गया है और कर्फ्यू लगा दिया गया है। 

कुवैत के दूतावास ने इराक़ में रह रहे अपने नागरिकों से तुरंत मुल्क को छोड़ देने के लिए कहा है। न्यूज़ एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक दूतावास ने उन लोगों से जो इराक़ जाने वाले हैं अपने कार्यक्रम को टाल देने के लिए कहा है।

शिया आयतुल्लाह मोक्तदा अल सद्र।

राजनीतिक गतिरोध बरकरार

इराक़़ में राजनीतिक दलों के बीच चल रही उठापटक की वजह से नई सरकार का गठन नहीं हो पाया है।। आयतुल्लाह सद्र चाहते हैं कि इराक़़ के आंतरिक मामलों में अमेरिका और ईरान का प्रभाव पूरी तरह खत्म हो। आयतुल्लाह सद्र अपने राजनीतिक विरोधियों के साथ मिलकर सरकार बनाने को तैयार नहीं हैं और इस वजह से भी नई सरकार के गठन का काम रुका हुआ है। अक्टूबर में हुए चुनाव में आयतुल्लाह सद्र के राजनीतिक दल को 329 सदस्यों वाली संसद में सबसे ज्यादा 74 सीटें मिली थीं। 

इससे पहले भी इराक़़ में साल 2010 में लंबा राजनीतिक गतिरोध चला था और तब 289 दिन तक नई सरकार का गठन नहीं हो सका था। 

जुलाई में भी किया था प्रदर्शन 

जुलाई में भी सैकड़ों की संख्या में आयतुल्लाह मोक्तदा अल सद्र के समर्थक बगदाद में स्थित संसद के अंदर घुस गए थे। तब इन समर्थकों की नाराजगी इस बात को लेकर थी कि ईरान समर्थित शिया पार्टियों और उनके सहयोगियों के नेतृत्व वाले गठबंधन ने प्रधानमंत्री पद के लिए मोहम्मद अल-सुदानी को अपना उम्मीदवार बनाया है।

आयतुल्लाह सद्र और उनके समर्थक इसलिए मोहम्मद-अल-सुदानी का विरोध कर रहे थे क्योंकि उनका मानना था कि सुदानी ईरान के बेहद करीबी हैं।

साल 2016 में भी उनके समर्थकों ने ऐसा ही एक जोरदार प्रदर्शन किया था और तब भी वह देश की संसद में घुस गए थे और राजनीतिक सुधारों की मांग की थी।