अब पूर्वी यूरोप कोरोना की चपेट में है। रूस, रोमानिया जैसे कई देशों में संक्रमण के रिकॉर्ड मामले आ रहे हैं। रोमानिया में हर रोज़ 18 हज़ार से ज़्यादा केस आ रहे हैं। इससे पहले वहाँ सबसे ज़्यादा मामले पिछले साल नवंबर में क़रीब 10 हज़ार दर्ज किए गए थे। रूस में भी हर रोज़ रिकॉर्ड 34 हज़ार मामले सामने आ रहे हैं। इससे पहले वहाँ सबसे ज़्यादा मामले पिछले साल दिसंबर में 28-29 हज़ार मामले आए थे। रूस में मौजूदा समय में रिकॉर्ड स्तर पर मौतें भी हो रही हैं। 20 अक्टूबर को ही एक हज़ार से ज़्यादा मौतें हुई हैं। इनके साथ ही पूर्वी यूरोप के बुल्गारिया, लिथुआनिया, लातविया जैसे देशों में भी संक्रमण काफ़ी ज़्यादा बढ़ा है। लातविया में तो लॉकडाउन लगाया गया है और कई देशों में इस पर विचार किया जा रहा है। आख़िर ऐसे हालात कैसे हुए?
यूरोपीय संघ के सदस्य देशों ख़ासकर बाल्टिक क्षेत्र के देशों में कोरोना संक्रमण बढ़ने से स्वास्थ्य व्यवस्था पर बेहद दबाव है। सरकारें फिर से प्रतिबंध लागू करने के लिए मजबूर हो रही हैं। रोमानिया में 19 अक्टूबर को 561 मौतें हुईं और संक्रमण के 18,863 नए मामले सामने आए। यह संख्या महामारी की शुरुआत के बाद से एक दिन में सबसे अधिक है। अस्पताल में व्यवस्थाएँ कम पड़ने लगी हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्यूएचओ और यूरोपीय संघ के देशों ने बुखारेस्ट के अनुरोध के बाद इलाज के लिए वेंटिलेटर, ऑक्सीजन कंसेंट्रेटर्स जैसे उपकरण भेजे हैं।
इन देशों से रिपोर्ट आ रही है कि जिन देशों में 30 प्रतिशत से कम वयस्क आबादी पूरी तरह से टीकाकृत है वहाँ मृत्यु दर ज़्यादा है।
बुल्गारिया में भी वैसे ही हालात बन रहे हैं। वहाँ क़रीब 25 प्रतिशत वयस्क आबादी को कोरोना वैक्सीन की दोनों खुराक मिली हैं। यह यूरोपीय संघ का सबसे कम टीकाकरण वाला देश है। देश में मंगलवार को 4,979 नए कोरोना मामले रिकॉर्ड किए गए जो मार्च के अंत के बाद से सबसे ज़्यादा हैं। नये आँकड़े बताते हैं कि 80 प्रतिशत से अधिक नए संक्रमण और लगभग 94 प्रतिशत मौतें बिना टीकाकरण वाले लोगों में हुई हैं।
ईयू ऑब्जर्वर की एक रिपोर्ट के अनुसार, डब्ल्यूएचओ के एक डॉक्टर हीथर पापोविट्ज़ ने मंगलवार को कहा कि तत्काल प्राथमिकता कमजोर समूहों के बीच टीकाकरण को बढ़ावा देना, अस्पताल में भर्ती होने और मौत के जोखिम को कम करना और स्वास्थ्य व्यवस्था पर दबाव को कम करना है।
रायटर की एक रिपोर्ट के अनुसार इस महीने की शुरुआत में लिथुआनिया की राजधानी के तीन सबसे बड़े अस्पतालों में से दो ने कोरोना के गंभीर रोगियों के बढ़ने के कारण ग़ैर-जरूरी रोगियों को भर्ती लेना बंद कर दिया था। ये हालात वहाँ हैं जहाँ 70 प्रतिशत से अधिक वयस्क आबादी पूरी तरह से टीका लगाई हुई है।
लातविया ने सोमवार को घोषणा की कि सरकार 21 अक्टूबर से 15 नवंबर तक चार सप्ताह के लॉकडाउन को फिर से लागू करेगी। इसमें रात 8 बजे से सुबह 5 बजे के बीच कर्फ्यू रहेगा और ग़ैर-ज़रूरी दुकानों को बंद करना होगा।
यह निर्णय देश की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली पर बढ़ते दबाव के बीच आया है, कुछ अस्पतालों में तो 80 प्रतिशत बेड भर गए हैं।
लातविया के प्रधानमंत्री क्रिस्जानिस कारिन्स ने सोमवार को एक आपात बैठक के बाद कहा था, 'हमारी स्वास्थ्य प्रणाली ख़तरे में है... इस संकट से निकलने का एकमात्र तरीक़ा टीकाकरण है।'
इस बीच एस्टोनिया में नए मामलों की वृद्धि से निपटने के लिए संभावित नए उपायों पर चर्चा की जा रही है। स्लोवाकिया भी संक्रमण की एक नई लहर का सामना कर रहा है। वहाँ सरकार ने सोमवार को पांच उत्तरी काउंटियों में फिर से प्रतिबंध लगाया है।
हालाँकि, पश्चिमी यूरोप के कई देशों में टीकाकरण ज़्यादा होने के बावजूद संक्रमण के मामले ज़्यादा आ रहे हैं। मिसाल के तौर पर ब्रिटेन में एक दिन पहले 49 हज़ार से भी ज़्यादा नये संक्रमण के मामले सामने आए। यूरोप में सबसे ज़्यादा मामले यहीं आ रहे हैं। हालाँकि इंग्लैंड की वयस्क आबादी के 68 फ़ीसदी लोगों को दोनों टीके लगाए जा चुके हैं। शायद इसी वजह से मौत के मामले बेहद कम हैं। एक दिन पहले पौने दो सौ लोगों की मौत हुई। जबकि रूस जैसे देश में हर रोज़ एक हज़ार से ज़्यादा लोगों की मौत हो रही है। वैसे, वैक्सीन से बनी एंटी-बॉडी धीरे-धीरे कमजोर पड़ जाती है और इस वजह से कई देशों में बूस्टर खुराक दी जा रही है।
ब्लूमबर्ग वैक्सीन ट्रैकर के अनुसार रूस में व्यस्क आबादी के क़रीब 31 फ़ीसदी लोगों को दोनों खुराक लगाई जा चुकी हैं। यानी अभी भी 69 फ़ीसदी आबादी संक्रमण के ख़तरे का सामना कर रही है। रूस में फ़िलहाल रिकॉर्ड संक्रमण के मामले भी आ रहे हैं और मौत के मामले भी। भारत में भी क़रीब 30 फ़ीसदी वयस्क आबादी को दोनों टीके लगे हैं। भारत में हर रोज़ क़रीब 18 हज़ार मामले आ रहे हैं।
बहरहाल, यूरोप के इन देशों में संक्रमण के हालात बताते हैं कि कोरोना के प्रति लापरवाही भारी पड़ सकती है। वैक्सीन लगवाने के बाद भी कोरोना प्रोटोकॉल का उल्लंघन करना ख़तरे से खाली नहीं होगा।