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एक साल में ही 5.6 करोड़ भारतीय ग़रीबी में धकेल दिए गए: विश्व बैंक

एक साल में ही 5.6 करोड़ भारतीय ग़रीबी में धकेल दिए गए: विश्व बैंक

कोरोना महामारी और लॉकडाउन के पहले साल में यानी 2020 में कितने लोग ग़रीबी में धकेल दिए गए, इस पर अब एक पुख्ता रिपोर्ट सामने आई है। जानिए, इससे कितने लोग प्रभावित हुए।

विश्व बैंक ने बुधवार को एक रिपोर्ट में कहा है कि 2020 के कोरोना महामारी वर्ष में कुल 5.6 करोड़ भारतीय गरीबी में धकेल दिए गए। इसने थिंक टैंक सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी यानी सीएमआईई द्वारा तैयार किए गए एक घरेलू सर्वेक्षण के आँकड़ों का हवाला देते हुए यह रिपोर्ट दी है। इसमें खास बात यह है कि इसने सीएमआईई के आँकड़ों पर भरोसा जताया है और कारण बताया है कि क्यों इसने किसी थिंक टैंक के आँकड़ों के हवाले से रिपोर्ट तैयार की है। 

विश्व बैंक ने कहा है कि सीएमआईई सर्वेक्षण के आँकड़ों का इस्तेमाल वैश्विक और क्षेत्रीय गरीबी अनुमानों में उस गैप को भरने के लिए किया गया था क्योंकि भारत ने 2011 से आधिकारिक आँकड़े प्रकाशित ही नहीं किए हैं। 

विश्व बैंक की यह रिपोर्ट सरकार की आँखें खोलने वाली भी हैं क्योंकि सरकार की तरफ़ से बारबार ग़रीबी कम करने के दावे किए जाते हैं। सवाल है कि सरकार ने जब ग़रीबी के आँकड़े जारी ही नहीं किए हैं तो ग़रीबी कम होने का दावा किस आधार पर सरकार करती है? हालाँकि, एक सवाल इससे भी उठता रहा है कि सरकार क़रीब 80 करोड़ लोगों को सरकारी अनाज मुहैया करने का दावा करती रही है तो ग़रीबी बढ़ी होगी या कम हुई होगी, यह सवाल तो उठता ही है। 

बहरहाल, सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी द्वारा किए गए उपभोक्ता पिरामिड घरेलू सर्वेक्षण के निष्कर्षों को अभी अंतिम रूप दिया जाना बाक़ी है, लेकिन उनका उपयोग विश्व बैंक ने अपनी रिपोर्ट में किया है। विश्व बैंक ने 'गरीबी और साझा समृद्धि 2022' शीर्षक वाली अपनी रिपोर्ट में वैश्विक ग़रीबी अनुमानों का आकलन जारी किया है।

विश्व बैंक ने उल्लेख किया है कि भारत में गरीबी पर उसका अनुमान अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष में पेश एक पेपर की तुलना में काफी अधिक था। उस पेपर में दावा किया गया था कि 2020 में 2.3 करोड़ भारतीय गरीबी में पहुँच गए।

आईएमएफ़ वाला वह पेपर अर्थशास्त्री सुरजीत भल्ला, करण भसीन और अरविंद विरमानी द्वारा तैयार किया गया है। 2018 में प्रधानमंत्री को आर्थिक सलाहकार परिषद के सदस्य के रूप में इस्तीफा देने वाले भल्ला वर्तमान में आईएमएफ में भारत के कार्यकारी निदेशक हैं।

इस बीच, विश्व बैंक की रिपोर्ट में कहा गया है कि अंतिम संख्या अधिक या कम हो सकती है, लेकिन सभी संकेतों से पता चलता है कि कोरोना वायरस महामारी के परिणामस्वरूप ग़रीबी में कमी पर वैश्विक झटका 'ऐतिहासिक रूप से बड़ा' था।

रिपोर्ट में कहा गया है कि महामारी ने वैश्विक अति ग़रीबी की दर को 2020 में अनुमानित 9.3% तक बढ़ा दिया, जो 2019 में 8.4% थी।

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि 2011 के बाद से भारत में गरीबी में गिरावट आई है, ख़ासकर ग्रामीण इलाक़ों में। विश्व बैंक के पहले के एक अनुमान ने सुझाव दिया था कि 2017 में भारत की 10.4% आबादी 155 रुपये की ग़रीबी रेखा से नीचे होगी। हालाँकि, नवीनतम अनुमान से पता चला है कि 2017 में 13.6 फ़ीसदी लोग ग़रीबी रेखा के नीचे थे। स्क्रॉल.इन की रिपोर्ट के अनुसार विश्व बैंक की रिपोर्ट में कहा गया है कि 2019-2020 में भारत की 10% आबादी 175.50 रुपये की गरीबी रेखा के नीचे रह रही थी। ग्रामीण क्षेत्रों में 12% आबादी गरीबी रेखा से नीचे रह रही थी, जबकि 6% शहरी लोग गरीबी रेखा के अंदर थे।

विश्व बैंक ने कहा है कि गरीब आबादी की स्थिति कोविड-19 महामारी से और ख़राब हो गई थी क्योंकि सरकार को ज़रूरतमंद लोगों तक पहुँचना मुश्किल हो गया था। बहरहाल, बैंक ने दावा किया कि सरकार महामारी के दौरान अपनी योजनाओं के साथ 85% ग्रामीण घरों और शहरी क्षेत्रों में 69% तक पहुंची।

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