महिला आरक्षण बिलः क्या सरकार विपक्ष का आभार मानेगी?
भारत के जिस विपक्ष को देश के अवतार पुरुष पानी पी-पीकर कोसते हैं आज उस विपक्ष की वंदना होना चाहिए क्योंकि उसने नयी बोतल में पुरानी शराब जैसा होते हुए भी महिला आरक्षण विधेयक यानि नारी शक्ति वंदन विधेयक लोकसभा में पारित करा दिया । राजनीति से ऊपर उठकर किये गए इस सहयोग के लिए अब सत्ता पक्ष को अपनी सनातनी ऐंठ छोड़कर देश के विपक्ष का अभिनंदन करने के साथ ही उसे ' घमंडिया ' गठबंधन कहना छोड़ देना चाहिए क्योंकि विपक्ष ने सरकार का सहयोग कर ये प्रमाणित कर दिया की वो ' घमंडिया ' नहीं बल्कि असली ' इंडिया' [आईएनडीआईए ] गठबंधन है। जैसा कि मै पहले दिन से कहता आ रहा हूँ कि इस विधेयक को संख्या बल के आधार पर लोकसभा और राज्य सभा में भी आसानी से पारित कराया जा सकता है, सो वैसा ही हुआ । ये ध्वनिमत से भी पारित हो सकता था यदि इसको लेकर विधेयक को सदन में लाने से पहले विपक्ष को भी विश्वास में लिया गया होता ।
दुर्भाग्य ये है कि सरकार देश का ही नहीं विपक्ष का भी विश्वास नहीं चाहती। सरकार का अपना आत्मविश्वास है। सरकार अपने डांवाडोल आत्मविश्वास के सहारे ही आगामी चुनाव की वैतरणी पार करना चाहती है। नारी शक्ति वंदन विधेयक के पक्ष में में 454 वोट पड़े, जबकि इसके विरोध में 2 मत पड़े। जाहिर है कि पूरा देश नारी शक्ति की वंदना करना चाहता है। ख़ुशी की बात ये है कि इस विधेयक के लोकसभा में बहुमत से पारित होने पर देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी खुश हुए। उन्होंने अपनी ख़ुशी ट्वीट कर जाहिर की। बेहतर होता कि वे अपनी ख़ुशी और विपक्ष के सहयोग के प्रति अपनी कृतज्ञता लोकसभा में ही जाहिर करते। लेकिन अवतारी लोग ऐसा करते तो शान नहीं चली जाती ?
इस विधेयक के खिलाफ मतदान करने वाले एआइएमआइएम के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी और उनकी ही पार्टी के सांसद इम्तियाज जलील ने भी यदि विधेयक के समर्थन में मतदान किया होता तो इससे सोने में सुहागा कहा जाता। जाहिर है कि लोकसभा में पारित नारी शक्ति विधेयक आधा -अधूरा और ' आकाश कुसुम ' जैसा आभासी है किन्तु अढ़ाई आबादी के अधिकारों को रेखांकित करने वाला तो है ही । तमाम विसंगतियों और असहमतियों के बावजूद इस विधेयक पर एकजुटता की आवश्यकता थी । औवेसी को इस मुद्दे पर अपनी असहमति के साथ भी विधेयक के साथ खड़ा होना था। इस जेबी संगठन की असहमति से अब एक ही अर्थ निकला जाएगा कि ये संगठन और इसके नेता नारी शक्ति की वंदना के खिलाफ हैं या नारी शक्ति से भय खाते हैं।
विधेयक की विसंगतियों पर देश के अधिकाँश राजनितिक दलों ने बहस के दौरान उँगलियाँ उठाई । सरकार की जमकर धुलाई भी की लेकिन अंतत: विधेयक का स्मार्थन किया। उन दलों ने भी जो अतीत में इस विधेयक कि विसंगतियों के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद करते हुए इसका विरोध करते रहे हैं। यहां खास तौर पर मै समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी,राजद, जेडीयू का उल्लेख करना चाहता हूँ। देश की आधी आबादी को इस विधेयक के लोकसभा में पारित होने के बाद ज्यादा खुश होने की आवश्यकता नहीं है । अभी इसे राज्य सभा में भी जाना है । वहां भी ईश्वर करे ये विधेयक पारित हो जाये ताकि देश की संसद पर महिला विरोधी होने का कलंक न लगे।
इस विधेयक के कानून बनने से भी देश की आधी आबादी का कुछ कल्याण नहीं होने वाला । ये विधेयक काल्पनिक है । इसके अमल में आने के लिए देश की महिलाओं को लम्बी प्रतीक्षा करना होगी। पहले लोकसभा और विधान सीटों का परिसीमन होगा, फिर जनगणना होगी तब कहीं जाकर तय किया जाएगा कि किसको कितना आरक्षण मिले ? भारत दुनिया के तमाम देशो की तरह आज भी पितृ सत्तात्मक देश है । हालाँकि देश के कुछ हलकों में मातृ सत्ता को भी प्रमुखता दी जाती है किन्तु इनकी संख्या बहुत कम है। देश कि पितृ सत्तात्मक प्रवृत्ति ने ही आजादी के 75 साल बाद भी महिलाओं को उनके अधिकारों से वांछित रखा । इस मामले में देश के सभी राजनितिक दलों का चरित्र कमोवेश एक जैसा ही रहा। कांग्रेस ने महिलाओं को स्थानीय निकायों और पंचायतो में 33 फीसदी आरक्षण देकर आधी आबादी को उनका हक देने का श्रीगणेश भी किया लेकिन वो भी अपने लम्बे कार्यकाल में इस क़ानून को विधानसभाओं और लोक सभा के लिए लागू नहीं करा सकी। तब भी जब उसके पास सख्या बल नहीं था और तब भी जबकि उसके पास अकूत संख्या बल था । आज की सरकार से भी ज्यादा। आज की सरकार का नेतृत्व कर रही भाजपा के पास तो कुल 303 सीटें हैं जबकि 1984 में कांग्रेस के पास 404 सीटें थी । इस आंकड़े तक शायद ही भाजपा कभी पहुँच पाए।
कांग्रेस भी चाहती तो उसी समय नारी शक्ति की वंदना करने के लिए आरक्षण विधयक ला सकती थी किन्तु कांग्रेस ने ये अवसर खो दिया। बाद में न उसके पास 1984 जैसा प्रचण्ड बहुमत मिला और न ये विधेयक पारित हो पाया। कांग्रेस ने इस विधेयक को क़ानून बनवाने के लिए भरपूर कोशिश भी की लेकिन कांग्रेस के किसी भी नेतृत्व ने अपने आपको अवतार नहीं बताया और हमेशा सदन कि भावनाओं का सम्मान करते हुए आगे बढ़ी। कांग्रेस भी चाहती तो आज की तरह एक आधा-अधूरा यानि काल्पनिक विधेयक पारित करा सकती थी लेकिन कांग्रेस भाजपा की तरह दुस्साहसी पार्टी नहीं है। आज की तारीख में तो बिलकुल नहीं है।
कांग्रेस के हाथों में भी जनता की आँखों में किसी समय काफी धूल हुआ करती थी किन्तु आज ये धूल सत्तारूढ़ भाजपा के हाथों में है जो उसने बड़ी ही एहतियात के साथ देश कि महिलाओं की आँखों में झौंक दी है। अब देश की महिलाएं जब तक इस धूल को साफ़ करेंगी तब तक एक आम चुनाव और हो चुकेगा। उन्हें आरक्षण का लाभ नहीं मिलेगा । उसके लिए उन्हें फिर एक चुनाव का इन्तजार करना पडेगा। आने वाले दिन चुनावों के दिन है। चुनावों में राजनितिक दल जनता की आँखों में धूल झौंकने का दुस्साहस करते आये हैं। राजनीतिक दल कभी धूल झौंकते हैं, कभी झुनझुने बजाते हैं, कभी लालीपॉप बांटते हैं। सतर्कता जनता को बरतना होती है। जहाँ भी जनता असावधान होती है वहां उसके न अच्छे दिन आते हैं और न खतों में पंद्रह लाख रूपये। न महंगाई रुकती है और न बेरोजगारी। सियासत दुकानदारी में बदल जाती है। हर राजनितिक दल जनता को 'हिप्टोनाइज ' कर अपना उल्लू सीधा करना चाहता है । कर भी लेता है। अब जिसके हाथ में उल्लू आता है वो हर शाख पर उल्लुओं को बैठा देता है।
आपके इर्दगिर्द देखिये। हकीकत सामने आ जाएगी। नारी शक्ति की वंदना का विधेयक लेकर आयी सरकार के सामने ही मणिपुर जलता है । हरियाणा दहकता है। दलितों के सर पर मूत्राभिषेक किया जाता है किन्तु ये सरकार न लज्जित होती है और न माफ़ी मांगती है। गौर करने वाली बात सोनिया गांधी की हैं ।सोनिया गांधी ने कहा कि कांग्रेस महिला आऱक्षण बिल का समर्थन करती है, मैं इस बिल के समर्थन में खड़ी हूं , यह मेरी जिंदगी का मार्मिक समय है। पहली बार निकाय चुनाव में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करने वाला बिल मेरे जीवनसाथी राजीव गांधी ही लाए थे। बाद में पीवी नरसिम्हा राव की सरकार में ये विधिक आया। उसका नतीजा है कि आज देशभर के स्थानीय निकायों में हमारे पास 15 लाख चुनी हुई महिला नेता हैं। राजीव गांधी का सपना अभी आधा ही पूरा हुआ है, इस बिल के पास होने के साथ ही वह पूरा होगा। कांग्रेस पार्टी इस बिल का समर्थन करती है। हमें इस बिल के पास होने की खुशी हैं, लेकिन एक चिंता भी हैं। मैं सवाल पूछना चाहती हूं कि पिछले 13 साल से महिलाएं राजनीतिक जिम्मेदारी का इंतजार कर रही हैं। अभी उनसे और इंतजार करने के लिए कहा जा रहा है। बहरहाल पूरा देश चाहता है कि युगावतार झूठ से बाहर आकर सच के साथ देश की सेवा करें।
2047 तक ही क्यों पूरी सदी तक करें। देश को तो सेवा से मतलब है ,सेवकों की शक्ल-सूरत और कद -काठी से नहीं। वे कीचड़ में सने हैं या उनके हाथ में लालटेन है, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।
(राकेश अचल के फ़ेसबुक पेज से)