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महिला दिवस पर विशेष : काम पाने के लिए औरतों को निकलवाना पड़ता है गर्भाशय

महिला दिवस पर विशेष : काम पाने के लिए औरतों को निकलवाना पड़ता है गर्भाशय

ऐसे समय जब पाँच ट्रिलियन डॉलर इकॉनमी की बात की जा रही है, महाराष्ट्र में महिलाओं को मज़दूरी पाने के लिए गर्भाशय निकलवाना पड़ा ताकि माहवारी की वजह से काम में कमी न हो।

दुनिया के तमाम देशों की तरह भारत में भी श्रमशक्ति के मामले में महिलाओं की हिस्सेदारी अच्छी ख़ासी है, लेकिन उनके शोषण के जितने आयाम उन्हें देवी का दर्जा देने वाले हमारे देश में हैं, उतने किसी और देश में नहीं हैं।

स्त्री सशक्तिकरण की दिशा में खूब काम करने के सरकारी और ग़ैर सरकारी दावों के बीच इस हक़ीक़त को रेखांकित किया है महाराष्ट्र से आई एक दर्दनाक और शर्मनाक ख़बर ने। 

ख़बर यह है कि महाराष्ट्र में मराठवाडा इलाक़े के बीड और उस्मानाबाद ज़िले में बीते तीन साल के दौरान 20 से 30 वर्ष की 4,605 महिलाओं को अपने गर्भाशय इसलिए निकलवाना पड़े ताकि उन्हें काम मिलने में अड़चन न आए। 

अड़चन यह कि वहाँ गन्ने की कटाई के समय ठेकेदार ऐसी मज़दूर महिलाओं को काम पर रखना बेहतर समझते हैं, जिनके गर्भाशय निकाले जा चुके हो, क्योंकि ऐसे मे माहवारी उनके काम में बाधा नहीं बनती।

अगर कोई महिला माहवारी की वजह से काम पर नहीं आती है तो ठेकेदार इसे काम में अड़चन मानता है और उस महिला को बतौर जुर्माना 500 रुपए ठेकेदार को देने पड़ते हैं।

अनदेखा रहा अत्याचार

बीड और उस्मानाबाद ज़िले से महाराष्ट्र के कई दिग्गज नेताओं का नाता रहा है। राज्य के सबसे क़द्दावर नेता और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के मुखिया शरद पवार का भी इस क्षेत्र में काफी असर है। केंद्र और राज्य सरकार में मंत्री रहे बीजेपी के दिवंगत नेता गोपीनाथ मुंडे का कार्यक्षेत्र भी यही इलाक़ा रहा है। उनकी बेटी पंकजा मुंडे और भतीजे धनंजय मुंडे के निर्वाचन क्षेत्र भी इन्हीं ज़िलों में हैं।

इसके बावजूद गन्ना ठेकेदारों द्वारा कामगार महिलाओं पर किया जाने वाला यह अमानवीय अत्याचार अनदेखा होता रहा। इन ज़िलों में कई रसूखदार नेताओं के चीनी मिल हैं। इसी वजह से श्रम क़ानूनों को लागू कराने वाला प्रशासनिक अमला सबकुछ जानते-समझते हुए भी खामोश रहा।

क्या है मजबूरी

मराठवाडा इलाक़ा हमेशा ही सूखे के कारण चर्चा में रहता है और इसी सूखे के चलते ग़रीबी से त्रस्त परिवारों की महिलाओं को अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए गाँव से बाहर जाकर बड़े किसानों के खेतों में मज़दूरी करनी पड़ती है। रोज़ाना काम मिलता रहे और कोई छुट्टी न करनी पड़े, इसके लिए ये महिलाएं अपना गर्भाशय निकलवा लेती हैं।

अपनी ग़रीबी और बेबसी की मार झेलती इन महिलाओं के साथ इस तरह के अमानवीय बर्ताव का मामला करीब एक साल पहले महाराष्ट्र विधान परिषद में शिवसेना की सदस्य नीलम गोरहे ने उठाया था।

तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री एकनाथ शिंदे ने बीड ज़िले के 99 निजी अस्पतालों में 4,605 महिलाओं के गर्भाशय निकाले जाने की बात स्वीकार करते हुए पूरे मामले की जाँच कराने का आश्वासन दिया था।

शून्य में खो गया पूरा मामला

लेकिन मामले की गंभीरता के अनुपात में इस पर जितनी व्यापक चर्चा होनी चाहिए थी, वह नहीं हुई।  यह मुद्दा चर्चा में तब आया था जब संसद के पिछले वर्षाकालीन सत्र के दौरान राज्यसभा में एनसीपी की वंदना चह्वाण ने इसे उठाते हुए केंद्र सरकार से जाँच कराने की माँग की थी। 

चूँकि मामला शून्यकाल के दौरान उठाया गया था, शायद इसीलिए शून्य में खो गया। जिस वक्त वंदना चह्वाण ने यह मामला सदन में उठाया था, उस वक्त महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी भी सदन में मौजूद थीं।

देश-दुनिया के हर मुद्दे पर बोलने वाली स्मृति ईरानी ने न तो तब इस पर कोई प्रतिक्रिया दी थी और न ही बाद में ऐसी कोई ख़बर आई कि उन्होंने इस बारे में कोई कार्रवाई की है।

फिर उठा मामला

पिछले दिनों यह मामला एक बार फिर सुर्खियों में आया, जब महाराष्ट्र की गठबंधन सरकार के ऊर्जा मंत्री और कांग्रेस नेता नितिन राउत ने मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को पत्र लिख कर इस गंभीर मसले की ओर उनका ध्यान आकर्षित किया।

राउत ने मुख्यमंत्री से दोषी गन्ना ठेकेदारों के ख़िलाफ़ सख़्त कार्रवाई करने और गन्ना खेतों में काम करने वाली महिलाओं को क़ानूनी संरक्षण देने की गुहार लगाई। 

सवाल है कि देश और राज्य में बने श्रम क़ानूनों के बरक्स कुछ ठेकेदारों को अपनी मनमानी करने की छूट कैसे मिली

हैरानी की बात यह भी है कि पहले महाराष्ट्र की विधान परिषद में और फिर देश की संसद में उठने के बाद यह मामला मुख्यधारा के मीडिया में अपेक्षित जगह नहीं पा सका।

कुछेक अख़बारों में ज़रूर चलताऊ ढंग से जिक्र हो गया, पर पाकिस्तान की बदहाली दिखाने और हिंदू-मुसलिम खेलने में मगन ख़बरिया टीवी चैनलों को तो इस ओर झाँकने की फुरसत ही नहीं मिली।

सवाल है कि जब किसी नियम के अमल के सिलसिले मे पड़ताल करनी होती है तो प्रशासन की निगाह से कोई छोटी से छोटी घटना भी छिप नहीं पाती, तो महिला मजदूरों के शोषण की पृष्ठभूमि में इतनी बड़ी अमानवीय गतिविधि पूरे तीन साल तक कैसे और किसकी शह पर चलती रही 

मज़दूरी की ख़ातिर गर्भाशय निकलवाने जैसी ख़बरें भारत को पूरी दुनिया में शर्मसार करती है, भले ही 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था का लक्ष्य हासिल करने का दावा करने वाली हुक़ूमत और उसके कारिंदों को कोई शर्म न आए।

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