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एनडीए की परीक्षा में शामिल होंगी लड़कियां, कोर्ट ने केंद्र से कहा- बदलें माइंडसेट

एनडीए की परीक्षा में शामिल होंगी लड़कियां, कोर्ट ने केंद्र से कहा- बदलें माइंडसेट

एनडीए में प्रवेश के लिए 5 सितंबर को परीक्षा होनी है।  अब तक लड़कियों को एनडीए की परीक्षा में शामिल होने की अनुमति नहीं थी। 

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को दिए एक अहम आदेश में कहा है कि लड़कियां भी अब नेशनल डिफ़ेंस एकेडमी (एनडीए) की परीक्षा में हिस्सा ले सकेंगी। अब तक लड़कियों को एनडीए की परीक्षा में शामिल होने की अनुमति नहीं थी। 

अदालत ने केंद्र सरकार को झिड़कते हुए कहा कि जब बात देश की सेना में महिलाओं और पुरूषों को बराबर मौक़े मिलने की आती है तो ये माइंडसेट प्रॉब्लम आ जाती है। अदालत ने चेताया कि अच्छा होगा कि वह इसे बदल ले। कोर्ट ने कहा कि सरकार उन्हें आदेश पास करने के लिए मजबूर न करे। 

एनडीए में प्रवेश के लिए 5 सितंबर को परीक्षा होनी है। शीर्ष अदालत के इस आदेश के बाद महिलाएं भी बड़ी संख्या में सैन्य बलों में भर्ती हो सकेंगी। 

अदालत ने कहा कि इस मामले में किया गया नीतिगत फ़ैसला लिंग के भेदभाव पर आधारित है। कोर्ट ने कहा, “हम चाहेंगे कि सेना इस बारे में ख़ुद ही कुछ करे, बजाय इसके कि हमें आदेश पास करना पड़े।” 

जस्टिस एसके कौल ने नाराज़ होते हुए एडिशनल सॉसिसिटर जनरल से पूछा कि जस्टिस चंद्रचूड़ के द्वारा सेना में महिलाओं को स्थायी कमीशन दिए जाने के फ़ैसले के बाद भी इस दिशा में आगे कुछ नहीं किया गया। 

केंद्र सरकार ने अपनी दलील में कहा कि सरकार की ओर से की जाने वाली भर्ती की नीति में कोई भेदभाव नहीं है और ऐसे कई रास्ते हैं जिनके जरिये महिलाएं आवेदन कर सकती हैं। 

शीर्ष अदालत इस मामले में दायर जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी। याचिका में कहा गया था कि योग्य महिला उम्मीदवारों को एनडीए की परीक्षा में प्रवेश से बाहर रखे जाने को संवैधानिक रूप से सही नहीं ठहराया जा सकता है और इसे पूरी तरह लिंग पर आधारित किया गया है। 

इस साल मार्च में दिए गए एक और अहम फ़ैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सेना में स्थायी कमीशन पाने के लिए महिलाओं के लिए मेडिकल फिटनेस का जो नियम है वह 'मनमाना' और 'तर्कहीन' है। कोर्ट ने कहा था कि ये नियम महिलाओं के साथ पक्षपात करता है। सेना में स्थायी कमीशन की मांग को लेकर कई महिला अधिकारियों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। कोर्ट ने कहा था कि हमें यह स्वीकार करना चाहिए कि समाज का जो ढांचा है वह पुरुषों द्वारा और पुरुषों के लिए तैयार किया गया है। 

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