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राजस्थान के बाद क्या अब महाराष्ट्र में मचेगा सियासी घमासान?

राजस्थान के बाद क्या अब महाराष्ट्र में मचेगा सियासी घमासान?

राजस्थान में अभी विधायकों की ख़रीद-फ़रोख़्त का मामला शांत भी नहीं हुआ और अब महाराष्ट्र में भी ऐसा ही कुछ होने की ख़बरें गर्म हैं।

राजस्थान में अभी विधायकों की ख़रीद-फ़रोख़्त का मामला शांत भी नहीं हुआ और अब महाराष्ट्र में भी ऐसा ही कुछ होने की ख़बरें गर्म हैं। राष्ट्रवादी कांग्रेस के विधायकों के दल-बदल की चर्चाओं के बीच प्रदेश पार्टी प्रवक्ता नवाब मलिक ने बड़ा ख़ुलासा किया। उन्होंने कहा कि जो लोग राष्ट्रवादी कांग्रेस के 12 विधायकों दल-बदल की ख़बरें उड़ा रहे हैं, उन्हें शायद यह नहीं पता कि उनकी पार्टी से विधायकों की घर वापसी होने वाली है। 

मलिक ने कहा कि राष्ट्रवादी कांग्रेस छोड़कर विधानसभा चुनाव से पहले जो विधायक भारतीय जनता पार्टी में गए थे वे वापस आने को बेताब हैं। उन्होंने कहा कि बहुत दिनों से उनकी तरफ़ से प्रस्ताव आ रहे हैं लेकिन हमारी पार्टी ने अब तक उस पर निर्णय नहीं लिया है। मलिक ने कहा कि शीघ्र ही उनके बारे में निर्णय होगा और उन्हें कब और कैसे वापस लिया जाएगा, इस बात की सार्वजनिक रूप से घोषणा की जाएगी। इसलिए जो लोग अफवाह फैला रहे हैं, वे सजग रहें।

उल्लेखनीय है कि कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस के क़रीब 41 विधायक विधानसभा चुनावों के ठीक पहले भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए थे। इनमें से 19 विधायक वापस चुनाव जीतने में भी सफल रहे। विधायक इस उम्मीद से बीजेपी में गए थे कि प्रदेश में वापस उसी की सरकार आ रही है, लेकिन बाज़ी पलट गयी। शिवसेना के साथ कांग्रेस व एनसीपी सरकार बनने के बाद से ही दल-बदलू विधायकों की बेचैनी बढ़ने की चर्चाएँ होना शुरू हो गयी थीं। विधायकों की वापसी के संकेत अजीत पवार ने भी दिए थे, लेकिन अब पार्टी प्रवक्ता ने जिस तरह से सामने से आकर यह बयान दिया है उससे प्रदेश में राजनीतिक सरगर्मियाँ बढ़ गयी हैं। 

वैसे, देवेंद्र फडणवीस ने गृह मंत्री अमित शाह से जाकर मुलाक़ात की थी तब भी ख़बरें गर्म थीं कि महाराष्ट्र में कोई सियासी ड्रामा शुरू हो सकता है। इसी क्रम में सामना में संजय राउत को दिए इंटरव्यू में मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने चुनौती भरे लहजे में कहा था, जिसमें दम है मेरी सरकार गिरा कर देखे। क्रमवार इस तरह के बयानों से ये संकेत तो मिल ही रहे थे कि कहीं न कहीं कुछ पक रहा है। 

बता दें कि शिवसेना गठबंधन टूट जाने के बाद बीजेपी सत्ता से बाहर हो गयी। सरकार बनाने में विफल रहने बाद बड़े नाटकीय तरीक़े से प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया था और रातो-रात उससे बड़े नाटकीय घटनाक्रम के साथ राष्ट्रपति शासन हटा भी। सूरज की किरणें निकलने से पहले देवेंद्र फडणवीस और अजीत पवार ने मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री पद की शपथ भी ले ली थी। इस घटनाक्रम से इस बात का अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि भारतीय जनता पार्टी किस कदर से प्रदेश में सरकार बनाने को बेचैन है। इस बेचैनी का एक कारण दूसरे दलों से आये विधायक भी हैं जो वापस अपनी पुरानी पार्टियों में जाना चाहते हैं। और शायद यह भी एक वजह है कि प्रदेश में जब से नयी सरकार बनी है, हर महीने मीडिया में सरकार के भविष्य को लेकर ख़बरें गर्म रहती हैं।

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