बंगाल: बीजेपी में चेहरे को लेकर संघर्ष, तथागत-घोष में जंग
मौजूदा वक़्त में बीजेपी ने जिस राज्य में सबसे ज़्यादा ताक़त झोंकी हुई है, वह पश्चिम बंगाल है। बिहार के चुनाव में बीजेपी नीतीश कुमार के साथ मिलकर लड़ रही है और यहां ज़्यादा सीटें लाकर ख़ुद का मुख्यमंत्री चाहती है। बिहार में वह गठबंधन में एक बार फिर सरकार चला सकती है लेकिन किसी भी कीमत पर बंगाल फतेह करना उसके एजेंडे में सबसे ऊपर है।
याद कीजिए, 2014 के लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद जब अमित शाह को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया था, तो उन्होंने बंगाल के तूफानी दौरे शुरू किए थे। 2016 के विधानसभा चुनाव में शिकस्त के बाद भी शाह बंगाल जाते रहे।
राजनीतिक विश्लेषक तब हैरान रह गए, जब 2019 के चुनाव में बीजेपी ने बंगाल की 18 सीटें अपनी झोली में डाल लीं, जबकि 2014 में यह आंकड़ा सिर्फ 2 था। बीजेपी ने राज्य में वाम मोर्चा और कांग्रेस को पीछे धकेल दिया है।
वोट बैंक में किया इज़ाफा
2019 के चुनाव नतीजों के बाद बीजेपी को लगने लगा कि अब वह ममता बनर्जी सरकार को सत्ता से हटा सकती है क्योंकि 2014 में मिले 23.23 फ़ीसदी वोट के मुक़ाबले 2019 में उसने 40.25 फ़ीसदी वोट हासिल किए। जबकि ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस 2014 में मिले 39.79% फ़ीसदी वोटों में थोड़ा ही इज़ाफा कर सकी और 2019 में उसे 43.28% वोट मिले।
आलाकमान तक पहुंची बात
कुल मिलाकर बीजेपी ने मैदान सजा लिया है। अब बहस इस बात की शुरू हो गई है कि विधानसभा चुनाव में पार्टी का चेहरा कौन होगा। इसे लेकर पार्टी में झगड़ा शुरू हो चुका है और यह बात केंद्रीय स्तर तक पहुंच चुकी है। इसलिए ही पश्चिम बंगाल जीतने के लिए भेजे गए बीजेपी के कमांडर कैलाश विजयवर्गीय को कई बार यह कहना पड़ा कि मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर फ़ैसला चुनाव के बाद किया जाएगा।
मई, 2021 में विधानसभा चुनाव होने हैं और इस लिहाज से वक़्त ज़्यादा नहीं बचा है। क्योंकि तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) में यह कोई मुद्दा ही नहीं है। बीजेपी जानती है कि नेताओं की गुटबाज़ी उसकी मेहनत पर पानी फेर सकती है, इसलिए वह बंगाल के नेताओं को साधने के मामले में फूंक-फूंककर क़दम रख रही है।
तथागत रॉय की एंट्री
बीजेपी में मुख्यमंत्री पद के दावेदारों के बीच लड़ाई तब तेज़ हुई, जब मेघालय के राज्यपाल पद से रिटायर होकर लौटे तथागत रॉय ने अगस्त के महीने में इंडिया टुडे से बातचीत में कहा, ‘यदि मेरी पार्टी फैसला लेती है कि मैं मुख्यमंत्री पद के लिए योग्य उम्मीदवार हूं, तो मैं इसे स्वीकार करूंगा।’ रॉय ने कहा था कि उन्होंने इस बारे में केंद्रीय नेतृत्व को बता दिया है और जवाब का इंतजार कर रहे हैं।
इसे लेकर देर क्यों हो रही है, न्यूज़ 18 को दिए ताज़ा इंटरव्यू में रॉय कहते हैं, ‘आपको यह राज्य बीजेपी से पूछना चाहिए। मैं विधानसभा चुनाव के लिए बीजेपी की विचारधारा और उसकी नीतियों का प्रचार करना चाहता हूं। यह पार्टी पर निर्भर करता है कि वह कब मुझे काम पर लगाना चाहती है।’
पार्टी नेताओं पर बोला हमला
रॉय ने इस दौरान बिना नाम लिए बंगाल बीजेपी के कुछ नेताओं पर निशाना साधा और कहा कि कुछ लोग टीएमसी के लिए काम कर रहे हैं और प्रशांत किशोर की बात सुनते हैं। रॉय ने कहा कि उन्होंने पार्टी नेतृत्व को इस बारे में बता दिया है। उन्होंने कहा कि ऐसे लोग पार्टी को किसी भी वक़्त धोखा दे सकते हैं। बता दें कि प्रशांत किशोर बंगाल चुनाव में ममता बनर्जी के लिए रणनीति बनाने का काम कर रहे हैं।
संघ से आते हैं रॉय
रॉय राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की पृष्ठभूमि से आते हैं। वह सरकारी नौकरी छोड़कर राजनीति में आए थे। बंगाल बीजेपी के अध्यक्ष रह चुके हैं और बीजेपी के ख़राब वक़्त में उन्होंने पार्टी का झंडा उठाया है। आज जब बीजेपी का बेहतर वक़्त है तो वह और उनके समर्थक उन्हें मुख्यमंत्री बनाने की मांग उठा रहे हैं। उनके प्रतिद्वंद्वियों की बात करें तो उनका मुख्य मुक़ाबला राज्य बीजेपी के अध्यक्ष दिलीप घोष से है। दिलीप घोष भी संघ के लिए काफी काम कर चुके हैं।
इसके अलावा राष्ट्रीय उपाध्यक्ष मुकुल रॉय, सांसद सौमित्र ख़ान, केंद्रीय मंत्री बाबुल सुप्रियो की भी ख़्वाहिश सूबे का मुखिया बनने की है लेकिन अगर बीजेपी राज्य की सत्ता में आती है तो घोष और रॉय में से किसी एक नेता को मुख्यमंत्री का पद मिलेगा।
ममता की मुश्किल
बीजेपी की राज्य इकाई ने ममता के ख़िलाफ़ धरने-प्रदर्शन शुरू कर दिए हैं। हाल के प्रदर्शन में जब बीजेपी कार्यकर्ताओं पर लाठीचार्ज हुआ तो राज्यपाल ने इसकी तुलना जलियावालां बाग से कर दी। इसका मतलब ममता बनर्जी को दो मोर्चों पर लड़ना है। बंगाल में सरकार के अलावा राज्यपाल भी ममता सरकार को घेरने की कोशिश करते रहते हैं।
ममता बनर्जी को इस बात का अंदाजा है कि बीजेपी राज्य में हिंदू मतदाताओं के ध्रुवीकरण में जुटी हुई है। उन्होंने बीजेपी द्वारा लगाए गए मुसलिम तुष्टिकरण के आरोपों का सामना करते हुए पुजारियों को पेंशन, दुर्गा पूजा समितियों को पैसे देने व कोरोना काल में भी सांस्कृतिक कार्यक्रमों के आयोजन की अनुमति देने जैसे अहम क़दम उठाए हैं। बहरहाल, यह तय है कि आने वाले दिनों में बीजेपी-टीएमसी का संघर्ष और तेज़ होगा।