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क्या बिहार में राजद अपने नये फॉर्मूले से दर्ज कर पायेगा बड़ी जीत ? 

क्या बिहार में राजद अपने नये फॉर्मूले से दर्ज कर पायेगा बड़ी जीत ? 

बिहार में राजद का अब तक आधार वोट बैंक एमवाई फॉर्मूला रहा है। एम मतलब मुस्लिम और वाई मतलब यादव, लेकिन अब राजद इस फॉर्मेले से इतर जाकर बीएएपी फॉर्मेले के साथ मैदान में चुनावी मैदान में उतरा है। ऐसे में बड़ा सवाल है कि क्या यह नया फॉर्मूला उसे बड़ी जीत दिला पायेगा? 

बिहार में राजद का अब तक आधार वोट बैंक एमवाई फॉर्मूला रहा है। एम मतलब मुस्लिम और वाई मतलब यादव, लेकिन अब राजद इस फॉर्मेले से इतर जाकर बीएएपी फॉर्मेले के साथ चुनावी मैदान में उतरा है। ऐसे में बड़ा सवाल है कि क्या यह नया फॉर्मूला उसे बड़ी जीत दिला पायेगा? 

बिहार में एमवाई समीकरण की बदौलत ही राजद कई बार सत्ता में आ चुका है। माना जाता है कि बिहार में मुस्लिम और यादव समाज का वोट आज भी सबसे अधिक राजद को मिलता है। 

यही राजद की सबसे बड़ी ताकत है। इसी वोट बैंक को ध्यान में रखकर राजद पिछले सभी चुनाव लड़ता आ रहा है। लेकिन वह अब सिर्फ मुस्लिम और यादव की पार्टी होने की पहचान से मुक्ति चाह रहा है। 

यही कारण है कि अब राजद इस समीकरण से आगे जाकर नए समीकरण बनाना चाह रहा है। वह अपने वोट बैंक का विस्तार करना चाहता है जिसके मकसद से उसने बीएएपी फॉर्मूला को स्वीकार किया है। राजद की कोशिश है कि एमवाई फॉर्मूले में ही बीएएपी फॉर्मूले को जोड़ दे। 

इस बीएएपी फॉर्मूले का मतलब समझाते हुए खुद राजद नेता तेजस्वी यादव कह चुके हैं कि इसके जरिए वह राज्य के 90 प्रतिशत लोगों को शामिल करते हैं। उनके मुताबिक बी का अर्थ बहुजन, ए का अर्थ अगड़ा, इसमें एक और ए का मतलब आधी आबादी से है और अंतिम के पी का अर्थ पुअर या गरीब से है। 

तेजस्वी यादव विभिन्न मंचों से कह चुके हैं कि यह फॉर्मूला उन लोगों को जवाब है जो कहते हैं कि राजद सिर्फ एमवाई की पार्टी है। तेजस्वी साफ-साफ कह चुके हैं कि हम सिर्फ मुस्लिम और यादव समाज की पार्टी नहीं बल्कि सबकी पार्टी हैं। 

तेजस्वी के पिछले कुछ बयानों और हाल के दिनों में हुए टिकट बंटवारे से साफ हो जाता है कि तेजस्वी यादव बिहार में लालू प्रसाद के पुराने एमवाई फॉर्मूले से अलग जाकर अपना बीएएपी फॉर्मूला अपनाना चाहते हैं। 

ऐसे में सवाल उठता है कि इस नए फॉर्मेूले की तरफ जाने की जरूरत या मजबूरी तेजस्वी यादव को क्यों पड़ी? 

बिहार की राजनीति पर पैनी निगाह रखने वाले राजनैतिक विश्लेषकों का मानना है कि बिहार में राजद के मजबूत समीकरण एमवाई में अब बिखराव शुरु हो चुका है। एम यानी मुस्लिम वोट बैंक को देखे तो बिहार में यह राजद से छिटक कर दो दल में बड़ी संख्या में गया है। 

इसमें सबसे बड़ी सेंध असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम लगा चुकी है। इसका सबसे बड़ा सबूत तब देखने को मिला था जब पिछले बिहार विधानसभा चुनाव में बिहार के सीमांचल इलाके से इसने चौंकाने वाली जीत दर्ज की थी। इसने 5 सीटें जीतने में कामयाबी हासिल कर ली थी। कई अन्य इलाकों में भी इसने मुस्लिम वोट बैंक में सेंध लगाने में कुछ हद तक कामयाबी पा ली है। 

दूसरी तरफ राजद के एमवाई समीकरण में से वाई की बात करे तो वाई यानी यादव वोट बैंक में अब भाजपा सेंध लगा चुकी है। भाजपा के कई सांसद और विधायक यादव समाज से आते हैं। बिहार में यादव वोट बैंक तेजी से भाजपा की तरफ मुड़ रहा है। 

ऐसे में बिहार में मुस्लिम और यादव वोट जिसकी कुल आबादी करीब 32 प्रतिशत है इसके भरोसे कोई सरकार बनाना मुश्किल है। 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में भी अगर राजद को कुछ और वोट प्रतिशत मिल जाता तो उसकी सरकार आसानी से बन जाती। 

यही कारण है कि 2020 के बाद से राजद या तेजस्वी यादव लगातार यह बात कह रहे हैं कि उनकी पार्टी सभी जातियों या समाज की पार्टी है। टिकटों का बंटवारा हो या पार्टी में अहम पद देना सभी जगह वह इस बीएएपी फॉर्मूले को ध्यान में रखते देखे जा रहे हैं। 

राजद की कोशिश है कि वह अगड़ी जातियों जिसमें भूमिहार, राजपूत, ब्राह्मण शामिल हैं, ओबीसी जातियां जिसमें कुर्मी, कोइरी आदि शामिल हैं उनके वोट का कुछ प्रतिशत अपनी तरफ लाए। बिहार में अगड़ी जातियां, यादव को छोड़ दूसरी ओबीसी जातियां और अति पिछड़ा वर्ग एनडीए गठबंधन का मजबूत वोट बैंक है। 

राजद की कोशिश है कि इसे एनडीए से तोड़ा जाए ताकि उससे छिटकने वाले एमवाई वोट बैंक से हुए नुकसान की भरपाई हो सके। 

बिहार में नीतीश कुमार ने महिलाओं के कल्याण के लिए विभिन्न सरकारी योजनाओं को चला कर और महिलाओं को सरकारी नौकरी में आरक्षण देकर एक अलग और मजबूत वोट बैंक बना रखा है। अब राजद महिलाओं के इस वोट बैंक को भी अपनी तरफ करने के लिए पूरी कोशिश कर रहा है। 

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