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क्या मध्य वर्ग को लुभाने के लिये आयकर छूट की सीमा बढ़ाएगी मोदी सरकार?

क्या मध्य वर्ग को लुभाने के लिये आयकर छूट की सीमा बढ़ाएगी मोदी सरकार?

मध्यम वर्ग और किसानों की नाराज़गी दूर करने के लिए चुनाव के पहले केंद्र सरकार कुछ लोकलुभावन फ़ैसले कर सकती है, ताकि वह उनसे मुखातिब होकर उनसे वोट माँग सके। 

चुनाव जीतने के लिए मोदी सरकार कितनी बेताब या परेशान है? क्या हार का ख़तरा उसके सिर पर मँडराने लगा है? क्या उसे लगने लगा है कि सरकार की उपलब्धियाँ नहीं के बराबर हैं और इस आधार पर चुनाव नहीं जीता जा सकता? विधानसभा चुनावों में हार के बाद से ही मोदी सरकार काफ़ी चिंतित है। लिहाज़ा पिछले कुछ हफ़्तों से वह लोकलुभावन फ़ैसले कर रही है। अब नया फ़ैसला आया है कि वह आयकर की सीमा बढ़ाने की सोच रही है। साथ ही किसानों को भी ख़ुश करने के लिए ब्याज मुक्त क़र्ज़ देने जैसी योजनाओं पर भी विचार कर रही है। 

2014 लोकसभा चुनावों में मोदी को मध्यवर्ग ने हाथों-हाथ लिया था। उसके कंधे पर सवार होकर उन्होंने लोकसभा में बहुमत का आँकड़ा पार कर लिया और तीस साल में पहली बार बहुमत की सरकार बनाई। यह किसी चमत्कार से कम नहीं था। किसान हो या मध्यवर्ग सभी को मोदी में एक उम्मीद दिखी थी। लोग कांग्रेस के भ्रष्टाचार से बुरी तरह से त्रस्त थे। दस साल के शासन से छुटकारा चाहते थे।

मोदी ने लोगों को सपने दिखाए, किसानों को लगा कि 2022 तक उनकी आय दुगुनी हो जाएगी। मध्यवर्ग को लगा कि उसके बच्चों को थोक के भाव नौकरियाँ मिलेंगी। हर साल दो करोड़ नौकरियों का वादा किया गया था। पर पाँच साल होने को है, नौकरियाँ नदारद हैं।

मध्यवर्ग को लुभाने की कोशिश

नए रोज़गार तो नहीं मिले, पुराने भी ग़ायब हो रहे हैं। किसान आत्महत्या करने को मजबूर है। उसे कुल लागत भी वापस नहीं मिल रही है। वह क़र्ज़ के पहाड़ के तले दबा जा रहा है। लिहाज़ा वह सड़क पर उतरने को मजबूर है। मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ की हार का बड़ा कारण किसानों की नाराज़गी भी है। अब मोदी सरकार शहरी मध्यवर्ग और गाँव के किसानों, दोनों की नाराज़गी कम करने में लगी है। सरकार ने आयकर की सीमा बढ़ाने का मन बनाया है। अभी तक ढाई लाख रुपये प्रति वर्ष आय वालों को आयकर नहीं देना पड़ता है। इसके ऊपर पाँच लाख तक की आय वालों को 5%, पाँच से दस लाख प्रति वर्ष आय वालों को 20% तक आय देना होता है और दस लाख से ऊपर वालों को 30% तक टैक्स देना होता है। सरकार अब इसमें बदलाव करने की सोच रही है। 1 फ़रवरी को पेश होने वाले अंतरिम बजट में वह इसकी घोषणा कर सकती है।

सरकार के स्तर पर यह सोचा जा रहा है कि आयकर से छूट की सीमा को बढ़ाया जाए। अभी तक ढाई लाख रुपये प्रति वर्ष आय वालों को टैक्स नहीं देना पड़ता। अब इस सीमा को बढ़ाकर पाँच लाख रुपये प्रति वर्ष करने की योजना सरकार बना रही है, यानी पाँच लाख रुपये तक सालाना कमाने वालों को टैक्स नहीं देना होगा।

अभी तक सिर्फ़ 80 साल से ज़्यादा उम्र के लोगों को ही पाँच लाख सालाना कमाने पर टैक्स नहीं देना होता था। अब सब उम्र के लोगों को छूट देने पर विचार किया जा रहा है। इसके अलावा मेडिकल और ट्रांसपोर्ट अलाउंस में भी रियायत देने पर विचार चल रहा है। अगर ऐसा होता है तो निश्चित तौर पर कम आय वालों के लिए यह बड़ी राहत होगी।

किसानों को राहत?

किसान भी सरकार से काफ़ी नाराज़ हैं। उनके ग़ुस्से को संभालने के लिए वह कुछ नई योजनाओं पर काम कर रही है। 'इंडियन एक्सप्रेस' की ख़बर के मुताबिक़, इस देश में तक़रीबन 22 करोड़ छोटे और मझोले किसान है जिनकी हालत फ़िलहाल ठीक नहीं है। वे बैंकों से लिए क़र्ज़ लौटाने की स्थिति में नहीं हैं। लिहाज़ा सरकार तीन लाख रुपए तक का ब्याज मुक्त क़र्ज़ इस तबके को देने के बारे में सोच रही है। इस बारे में नीति आयोग के साथ सरकार की मीटिंग भी हो चुकी है।

 - Satya Hindi

बैंकों से भी बात चल रही है। सरकार इसके अलावा एक और स्कीम के बारे में सोच रही है। तेलंगाना और झारखंड में सरकारों ने ग़रीब किसानों को उनकी उपज की एवज़ में एकमुश्त रक़म देना तय किया है। तेलंगाना में प्रति एकड़ चार हज़ार रुपये सरकार देती है। साल में दो फ़सलें होती हैं। हर फ़सल का चार हज़ार देने से किसानों को साल में आठ हज़ार रुपए प्रति एकड़ मिलते हैं। इस योजना की वजह से ही हाल के चुनावों में तेलंगाना राष्ट्र समिति को भारी बहुमत मिला है। झारखंड सरकार ने भी इसी तरह पाँच हज़ार रुपये प्रति एकड़ प्रति फ़सल देने का एलान किया है। 'इंडियन एक्सप्रेस' के मुताबिक़, मोदी सरकार साल में दो फ़सल के लिए छोटे और मझोले किसानों को बारह हज़ार रुपये प्रति वर्ष प्रति एकड़ देने का फ़ैसला कर सकती है। अगर यह हुआ तो किसानों की मुसीबत कुछ तो कम होगी। यह सब चुनाव के मद्देनज़र किया जा रहा है। क्या इसका फ़ायदा होगा, यह अभी कहना मुश्किल है। 

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