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क्या केंद्र कश्मीर में अनुच्छेद 35-ए ख़त्म कर देगा?

क्या केंद्र कश्मीर में अनुच्छेद 35-ए ख़त्म कर देगा?

पुलवामा हमले के बाद जम्मू कश्मीर में गरमाये माहौल में अब अनुच्छेद 35ए पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई से उबाल आ सकता है। राज्य में सुरक्षा बलों की 100 से ज़्यादा कंपनियाें के भेजे जाने से लोग आशंकित हैं। 

जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने कहा है कि पुलवामा हमले के बाद संविधान की अनुच्छेद 35-ए पर प्रशासन के रवैए में कोई बदलाव नहीं आया है। उन्होंने यह भी कहा है कि निर्वाचित सरकार ही इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में अपने तर्क रखेगी। इस अनुच्छेद के अनुसार राज्य के लोगों को विशेष अधिकार दिए गए हैं। 

राज्यपाल का यह बयान ऐसे समय आया है जब यह आशंका जताई जा रही है कि पुलवामा पर हमले के मद्देनज़र सरकार इस अनुच्छेद को ख़त्म करना चाहती है। कश्मीर के पुलवामा ज़िले के अवंतीपोरा में एक आतंकवादी हमले में सीआरपीएफ़ के 40 जवान शहीद हो गए, हमले की ज़िम्मेदार पाकिस्तानी आतंकवादी  गुट जैश-ए-मुहम्मद ने ली है। अदालत फ़िलहाल धारा 35-ए से जुड़ी कई याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई कर रही है। एक याचिक 'वी द सिटीज़न' नामक ग़ैर-सरकारी संगठन ने दायर की है, जिसमें उसने इस अनुच्छेद की संवैधानिक वैधता को ही चुनौती दी है। 

राज्य में सुरक्षा बलों की 100 से ज़्यादा कंपनियाें के भेजे जाने से लोग आशंकित हैं। अब रिपोर्टें हैं कि कश्मीर के ‘स्थायी निवासियों’ के अधिकारों को सुरक्षित रखने वाले 35ए पर केंद्र की मोदी सरकार कोई निर्णायक क़दम उठा सकती है। यदि 35ए को हटाया जाता है तो उनमें ज़बर्दस्त प्रतिक्रिया भी हो सकती है। 

सुप्रीम कोर्ट में 35ए को हटाने की माँग को लेकर पाँच याचिकाएँ लंबित हैं। ख़बरें हैं कि सुप्रीम कोर्ट इस हफ़्ते इस मुद्दे पर सुनवाई करेगा। हालाँकि 35ए पर सरकार क्या रुख़ अख्तियार करेगी, यह अभी साफ़ नहीं है, लेकिन मीडिया रिपोर्टों में कहा गया है कि 35ए पर केंद्र सरकार कड़ा रुख़ अपना सकती है। कुछ रिपोर्टों में तो यहाँ तक कहा गया है कि 35ए को ख़त्म करने के लिए सरकार अध्यादेश भी ला सकती है। 

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इससे पहले 35ए के मुद्दे पर केंद्र सरकार टाल-मटोल का रवैया अपनाती रही थी। ख़बरों के मुताबिक़ पुलवामा हमले के बाद बीजेपी अब इस मुद्दे पर सुनवाई में तेज़ी चाहती है।

'इंडिया टुडे' ने सूत्रों के हवाले से कहा है कि सरकार ने इस मसले पर अपना रुख़ तय करने के लिए कोर ग्रुप बनाया है, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह, गृह मंत्री राजनाथ सिंह और वित्त मंत्री अरुण जेटली शामिल हैं। 

ध्रुवीकरण का लाभ उठाने की कोशिश

35ए का मामला बीजेपी और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के लिए बड़ा एजेंडा रहा है और वे अनुच्छेद 370 और 35ए को ख़त्म करने की माँग लंबे अरसे से उठाते रहे हैं। उग्र हिंदुत्ववादी और तथाकथित राष्ट्रवादी तत्वों ने पुलवामा हमले के बाद देश भर में कश्मीरियों के ख़िलाफ़ कई जगह हिंसा की है। देश भर में बनाये गये इस कश्मीर विरोधी माहौल के बीच अगर 35ए को ख़त्म कर दिया जाता है तो उससे उपजे ध्रुवीकरण का बड़ा लाभ बीजेपी को लोकसभा चुनाव में मिल सकता है। चुनाव में क़रीब दो महीने का ही समय बचा है।

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क्या है अनुच्छेद 35ए

भारत के संविधान का अनुच्छेद 35ए जम्मू कश्मीर के बाहर के लोगों को राज्य में अचल संपत्ति ख़रीदने, स्थायी तौर पर बसने और राज्य सरकार की योजनाओं का लाभ उठाने से प्रतिबंधित करता है। 35ए राज्य में काम कर रही कंपनियों को राज्य से बाहर के लोगों को नौकरी देने से भी रोकता है। 35ए ने जम्मू कश्मीर विधानसभा को 'स्थायी निवासी' तय करने और उनको विशेष अधिकार देने के लिए विशेष शक्तियाँ दी हैं।

35ए को हटाने का विरोध क्यों

जम्मू-कश्मीर के स्थानीय लोगों की आशंका है कि यदि 35ए को हटा दिया जाएगा तो राज्य के बाहरी लोग राज्य में बस जाएँगे जो कि उनकी सांस्कृतिक पहचान के लिए ख़तरनाक होगा। इस अनुच्छेद के हटने पर बाहरी लोग वहाँ के संसाधनों पर कब्ज़ा कर लेंगे। ऐसी स्थितियों को रोकने के लिए ही भारत के संविधान में 35ए के रूप में विशेष प्रावधान किया गया है। इसमें कहा गया है कि भारत एक संघ है जहाँ राष्ट्रीय एकता के साथ ही क्षेत्रीय पहचान को भी सुरक्षित रखने को तरजीह दी गयी है। देश की भौगोलिक, भाषायी, धार्मिक और सांस्कृतिक विविधता को देखते हुए ही यह प्रावधान किया गया है ताकि यदि किसी समय पर केंद्रीय ताक़त मज़बूत हो जाए तो राष्ट्रीय एकता के नाम पर क्षेत्रीय पहचान से छेड़छाड़ न की जा सके। 

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किस आधार पर 35ए को हटाने की माँग

सुप्रीम कोर्ट में यह दलील दी गई कि 35-ए का हवाला देकर सरकार ने सभी नागरिकों को संविधान में दिये गये मूल अधिकारों का उल्लंघन किया है, इसलिए सुप्रीम कोर्ट को इसे तुंरत ख़ारिज़ कर देना चाहिए। उनका तर्क है कि राज्य में बाहरी लोगों को देश के अन्य राज्यों की तरह ही अधिकार मिलने चाहिए। सुप्रीम कोर्ट में दलील दी गयी है कि 35ए को संसद के ज़रिए लागू नहीं करवाया गया है, इसलिए इसे हटाया जाना चाहिए। एक दलील यह भी है कि देश के विभाजन के समय बड़ी संख्या में शरणार्थी जम्मू-कश्मीर में आए, लेकिन अनुच्छेद 35ए के हवाले से इन शरणार्थियों को निवासी बनाने से वंचित कर दिया गया। इनमें 85 फ़ीसदी पिछड़े और दलित समुदाय से हैं।

किन हालातों में 35ए को लागू किया गया था

अनुच्छेद 35ए जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 के लिए एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। 

1947 में 'विशेष दर्जा' दिए जाने की सहमति के बाद कश्मीर भारत में शामिल हुआ था। यह विशेष दर्जा 370 के तहत दिया गया था, जिसमें रक्षा, विदेश मामले और संचार के अलावा सभी मामले राज्य को तय करने का अधिकार दिया गया था। बाद में केंद्र और राज्य के रिश्तों को सुचारु रखने और अन्य मसलों के निपटारे के लिए 1952 में दिल्ली समझौता हुआ। इसमें कश्मीर के संबंध में राज्य के अधिकारों का ज़िक्र है। इसी में इसका भी ज़िक्र है कि 'स्थायी निवासियों' और उनको मिलने वाली सुविधाओं और हक़ को तय करने का अधिकार राज्य सरकार के पास होगा। इसके लिए ही 35ए को शामिल किया गया।

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इस पर नेहरू के क्या थे विचार 

दिल्ली समझौते को लेकर तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने संसद में कहा था, 'एक या दो मामलों में कश्मीर के लोगों की कुछ चिंताएँ हैं। अंग्रेज़ी हुकूमत के समय कश्मीर के महाराजा इस बात को लेकर काफ़ी चिंतित थे कि कश्मीर के प्राकृतिक सौंदर्य के कारण अंग्रेज़ कहीं बड़ी संख्या में वहाँ बसने की कोशिश न करें। इसलिये वहाँ बाहरी लोगों को ज़मीन ख़रीदने या रखने पर पाबंदी लगा दी गयी। महाराजा ने कभी इस पाबंदी को नहीं हटाया। मौजूदा समय में भी कश्मीर के लोगों की यही चिंता है कि बाहरी लोग स्थायी रूप से बस न जाएँ। और मुझे लगता है कि उनकी चिंताएँ वाजिब हैं कि कश्मीर को उन लोगों द्वारा रौंद दिया जाएगा जिनका मक़सद सिर्फ़ वहाँ पैसा बनाना और कब्ज़ा जमाना होगा।... वे लोग महाराजा के क़ानून को कुछ सुधारों के साथ लागू रखे रहना चाहते हैं जिसमें बाहरी लोगों को ज़मीन ख़रीदने की मनाही हो। और हम भी इससे सहमत हैं कि इसे बरक़रार रखा जाना चाहिए।'

दिल्ली समझौते को अपनाए जाने के साथ ही 1954 में 35ए भी लागू कर दिया गया। 

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