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जगन रेड्डी की पार्टी के संविधान की जाँच क्यों करेगा चुनाव आयोग?

जगन रेड्डी की पार्टी के संविधान की जाँच क्यों करेगा चुनाव आयोग?

चुनाव आयोग की आपत्ती के बाद पार्टी की तरफ से दिए गए जवाब में कहा गया था कि जगन पांच साल तक ही पार्टी अध्यक्ष रहेंगे। पार्टी के स्पष्टीकरण को अभी तक चुनाव आयोग में रिपोर्ट नहीं किया गया है। चुनाव आयोग इसे अपने रिकॉर्ड में रखने के लिए पार्टी के संविधान की जांच कर रहा है।

हिंदुस्तान टाइम्स में छपी खबर के मुताबिक चुनाव आयोग की नज़र अब जगन मोहन रेड्डी की पार्टी वाईएसआरसी पर भी है। चुनाव आयोग का मानना है कि जुलाई 2022 में हुए पार्टी अधिवेशन में एक प्रस्ताव पारित करके जगन मोहन रेड्डी को पार्टी का आजीवन अध्यक्ष घोषित कर दिया गया था। चुनाव आयोग ने इस पर आपत्ती जाहिर करते हुए पार्टी से जवाब मांगा था। चुनाव आयोग की आपत्ती के बाद पार्टी की तरफ से दिए गए जवाब में कहा गया था कि जगन पांच साल तक ही पार्टी अध्यक्ष रहेंगे। पार्टी के स्पष्टीकरण को अभी तक चुनाव आयोग में रिपोर्ट नहीं किया गया है। चुनाव आयोग इसे अपने रिकॉर्ड में रखने के लिए पार्टी के संविधान की जांच कर रहा है।

चुनाव आयोग की आपत्ती के बाद पार्टी की तरफ से दिए गए जवाब में कहा गया था कि जगन पांच साल तक ही पार्टी अध्यक्ष रहेंगे। पार्टी के स्पष्टीकरण को अभी तक चुनाव आयोग में रिपोर्ट नहीं किया गया है। चुनाव आयोग इसे अपने रिकॉर्ड में रखने के लिए पार्टी के संविधान की जांच कर रहा है।

पिछले हफ्ते चुनाव आयोग ने शिवसेना में ठाकरे और शिंदे गुट के बीच पार्टी पर दावेदारी को लेकर चल रही लड़ाई में एक अहम फैसला सुनाते हुए पार्टी को शिंदे गुट की दावेदारी को मान्यता दे दी थी। चुनाव आयोग ने अपने फैसले में शिवसेना के 2018 के पार्टी संविधान को भी अलोकतांत्रिक करार दिया था। पार्टी के 2018 के संविधान के हिसाब से यह पार्टी के अध्यक्ष को बहुत अधिक शक्तियां देता जो अलोकतांत्रिक था, इसके सात ही इसे चुनाव आयोग के रिकॉर्ड पर भी नहीं रखा गया था। हालांकि शिंदे गुट को पार्टी पर दावेदारी देने के पीछे यह इकलौता कारण नहीं था।

पार्टी के 2018 के संविधान के हिसाब से यह पार्टी के अध्यक्ष को बहुत अधिक शक्तियां देता जो अलोकतांत्रिक था। इसे चुनाव आयोग के रिकॉर्ड पर भी नहीं रखा गया था।

चुनाव आयोग के एक सदस्य का कहना है कि सभी दल संविधान में संशोधन कर सकते हैं, लेकिन चुनाव आयोग किसी भी प्रकार के अलोकतांत्रिक कदम को मान्यता नहीं दे सकता है। इस मसले पर हमारे सामने दो मुद्दे थे- पहला नाम बदलना (पार्टी ने अपने नाम के संक्षिप्त संस्करण, वाईएसआर कांग्रेस पार्टी पर टिके रहने का फैसला किया) और दूसरा जगन रेड्डी का  आजीवन अध्यक्ष पद पर बने रहना। अगर वाईएसआर आजीवन अध्यक्ष पद के मसले टिकी रहती तो  हमें वाईएसआर को सूची से हटाना पड़ता क्योंकि यह जनप्रतिनिधित्व कानून में परिभाषित किए गये  लोकतांत्रिक मानदंडों का उल्लंघन है।

चुनाव आयोग के एक सदस्य का कहना है कि सभी दल संविधान में संशोधन कर सकते हैं, लेकिन चुनाव आयोग किसी भी प्रकार के अलोकतांत्रिक कदम को मान्यता नहीं दे सकता है।

बीते 4 नवंबर को पार्टी ने चुनाव आयोग को लिखे एक पत्र में बताया कि "जगन मोहन रेड्डी को केवल पांच साल के कार्यकाल के लिए ही अध्यक्ष पद पर चुना गया था। आजीवन अध्यक्ष चुने जाने की खबरें झूठी हैं। पार्टी लोकतांत्रिक मूल्यों में भरोसा करती है और हमेशा लोकतांत्रिक सिद्धांतों का पालन करती है।

पार्टी की तरफ से यह जवाब, चुनाव आयोग के बीते सितंबर के उस आदेश के जवाब में था जिसमें रेड्डी को आजीवन अध्यक्ष बनाने की खबरों पर सार्वजनिक रूप से स्पष्टीकरण देने को कहा गया था। चुनाव आयोग ने अपने आदेश में कहा था कि, 'ऐसी कोई भी कार्रवाई जो समय-समय पर चुनाव की संभावनाओं से इनकार करती है, वह आयोग के मौजूदा निर्देशों का पूरी तरह से उल्लंघन है।

वाईएसआर पार्टी के एक प्रवक्ता ने हिंदुस्तान टाइम्स को बताया कि 'पार्टी के कुछ सदस्यों को पता नहीं था कि जो प्रस्ताव वह ला रहे हैं इसकी अनुमति नहीं है, इसलिए उन्होंने यह प्रस्ताव पेश कर दिया। लेकिन जब उन्हें मालूम हुआ कि इसकी अनुमति नहीं है, तो उन्होंने प्रस्ताव वापस ले लिया। चुनाव आयोग के आदेश और पार्टी की तरफ से स्पष्टीकरण आने में हुई देरी के कारण, पार्टी के संविधान की जांच में देरी हुई।

चुनाव आयोग के एक और अधिकारी ने हिंदुस्तान टाइम्स से बात करते हुए कहा कि बड़ी राजनीतिक दल तो नियमों का पालन करते हैं, लेकिन छोटे और क्षेत्रीय नियमों पर ध्यान नहीं देते। शिंदे मामले में चुनाव आयोग का हालिया आदेश सभी पक्षों को यह सुनिश्चित करने के लिए मजबूर कर सकता है कि पार्टियों का वर्तमान संविधान और संगठन आयोग के रिकॉर्ड में परिलक्षित हो।    

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