राजस्थान: सचिन पायलट ने क्यों समर्पण कर दिया?
200 सदस्यीय विधानसभा में सचिन पायलट ने शुरुआत में 107 में से 30 कांग्रेस विधायकों के समर्थन का दावा किया था लेकिन बाद में पता चला कि वे केवल 19 थे। निर्दलीय उम्मीदवारों के समर्थन के साथ, अशोक गहलोत का मंत्रालय कम से कम अभी के लिए सुरक्षित है। इसलिए अगर सचिन का इरादा गहलोत मंत्रालय को गिराने और बीजेपी से मिलकर ख़ुद मुख्यमंत्री बनने का था तो उनका प्रयास स्पष्ट रूप से विफल रहा।
सचिन, जिन्हें उपमुख्यमंत्री और कांग्रेस की राज्य इकाई के अध्यक्ष पद से बर्खास्त कर दिया गया है, ने शुरू में घोषणा की थी कि वह दिल्ली में एक प्रेस कॉन्फ़्रेंस करेंगे। उन्होंने ऐसा नहीं किया। इसके बदले बीजेपी में शामिल होने की ख़बर को नकारते हुए एक बयान जारी किया कि उन पर ग़लत आरोप लगाकर कुछ लोग उनकी छवि नेहरू-गाँधी परिवार के सामने धूमिल करने की कोशिश कर रहे हैं। और यह भी कहा कि उन्होंने बीजेपी को हराने के लिए कड़ी मेहनत की है तो वह फिर क्यों उसमें शामिल होना चाहेंगे
लगता है कि राजस्थान विधानसभा के अध्यक्ष से दलबदल निरोधक क़ानून (संविधान की 10वीं अनुसूची) के तहत नोटिस प्राप्त करने के बाद सचिन और उनके 18 समर्थक विधायकों ने महसूस किया होगा कि वे राजस्थान विधानसभा की सदस्यता से अध्यक्ष द्वारा अयोग्य घोषित किए जा सकते हैं।
संविधान की 10वीं अनुसूची की धारा 2 के तहत, संसद या राज्य विधानसभा का कोई सदस्य अध्यक्ष द्वारा अयोग्य घोषित किया जा सकता है अगर (1) वह स्वेच्छा से अपने राजनीतिक दल की सदस्यता छोड़ देता है, या (2) वह अपने राजनीतिक दल द्वारा दिए गए निर्देश के विरुद्ध वोट देता है या सदन में मतदान से परहेज करता है।
रवि नायक बनाम भारत संघ (1994) और राजेंद्र सिंह राणा बनाम स्वामी प्रसाद मौर्य (2007) के मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 'स्वेच्छा से राजनीतिक पार्टी की सदस्यता छोड़ देना’ और औपचारिक रूप से एक राजनीतिक पार्टी से इस्तीफ़ा देना, दोनों समानार्थक नहीं है। किसी व्यक्ति के व्यवहार द्वारा यह माना जा सकता है कि उसने पार्टी की सदस्यता छोड़ दी है।
राजेंद्र सिंह राणा के मामले में संविधान पीठ के फ़ैसले में, यूपी में सत्तारूढ़ बहुजन समाज पार्टी के कुछ विधायक विपक्षी समाजवादी पार्टी के कुछ सदस्यों के साथ राज्य के राज्यपाल के पास गए और उन्हें सरकार बनाने के लिए विपक्षी समाजवादी पार्टी को आमंत्रित करने के लिए कहा।
हालाँकि बीएसपी विधायकों ने औपचारिक रूप से अपनी पार्टी से इस्तीफ़ा नहीं दिया था, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उनके आचरण/व्यवहार से स्पष्ट था कि उन्होंने बीएसपी की सदस्यता छोड़ दी थी।
इस क़ानूनी स्थिति के कारण, यह संभव है कि सचिन पायलट और उनका समर्थन करने वाले 18 विधायकों ने क़ानूनी सलाह ली, और उनके वकीलों द्वारा सलाह दी गई होगी कि भले ही उन्होंने औपचारिक रूप से कांग्रेस पार्टी से इस्तीफ़ा नहीं दिया लेकिन उन्होंने ऐसे कार्य किए जिनकी संभवतः कांग्रेस की सदस्यता छोड़ने के रूप में व्याख्या की जा सकती है। जैसे दो मौक़ों पर कांग्रेस विधायकों की बैठकों में भाग नहीं लेना जबकि सभी कांग्रेस विधायकों को उपस्थित होने के निर्देश दिए गए थे, कांग्रेस नेताओं की बातों और निर्देशों की ओर ध्यान न देना और बग़ावती तेवर दिखाना और बयान जारी करना।
10वीं अनुसूची के तहत, इस अयोग्यता के सवाल का फ़ैसला सदन के अध्यक्ष पर निर्भर है, न कि न्यायालय पर (हालाँकि उनके फ़ैसले के बाद स्पीकर के फ़ैसले को उच्च न्यायालय या उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है)। राज्य में सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी के सदस्य होने के नाते अध्यक्ष निश्चित रूप से वही तय करेंगे जो उन्हें कांग्रेस नेताओं द्वारा बताया जाए।
ऐसा लगता है कि पायलट और उनके समर्थकों को अपनी दुर्दशा का एहसास हो जाने पर वे सभी इस स्थिति के आगे झुक गए हैं।