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हरियाणा के तर्ज पर संस्कृत भाषा को गुजरात में क्यों बढ़ाना चाहता है RSS

हरियाणा के तर्ज पर संस्कृत भाषा को गुजरात में क्यों बढ़ाना चाहता है RSS

आरएसएस गुजरात में पहली क्लास से संस्कृत भाषा को अनिवार्य बनाने की कोशिश कर रहा है। हरियाणा में उसकी ऐसी कोशिश कामयाब है, हालांकि ये अलग बात है कि तमाम छात्र-छात्राओं और उनके माता-पिता की पहली पसंद संस्कृत आज भी नहीं है।

बीजेपी शासित राज्यों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) संस्कृत को अनिवार्य भाषा बनाने की कोशिश में जुट गया है। हरियाणा के बाद गुजरात में इस तरह की कोशिश की जा रही है। गुजरात सरकार के साथ बैठक में आरएसएस या ने पहली क्लास से अनिवार्य रूप से संस्कृत पढ़ाने की अपील की है। हालांकि गुजरात की क्षेत्रीय भाषा गुजराती है।

इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक शिक्षा मंत्री जीतू वघानी और गुजरात बीजेपी के संगठन महासचिव ने विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ मुलाकात कर नई शिक्षा नीति (एनईपी) को लागू करने पर चर्चा की थी।

वाघानी के साथ बैठक में आरएसएस से संबद्ध संगठनों के लगभग 20 प्रतिनिधियों का मुख्य एजेंडा संस्कृत शिक्षा प्रदान करना था, जिसमें लगभग 25 वरिष्ठ सरकारी प्रतिनिधियों ने सहायता की थी। संघ का यह भी विचार था कि स्कूलों में संस्कृत, महाभारत, भगवद्गीता और रामायण के अलावा वैदिक गणित को भी पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए और उपनिषदों और वेदों पर आधारित शिक्षा दी जानी चाहिए।

इस प्रेजेंटेशन के दौरान स्पष्ट कहा गया कि अंग्रेजी पढ़ाना ठीक है लेकिन भारतीय भाषाओं की कीमत पर इसे अंजाम नहीं दिया जाए।

सरकार की नई एजुकेशन पॉलिसी तीन भाषा नीति अनिवार्य रूप से सिखाई जाने वाली किसी विशिष्ट भाषा पर जोर नहीं देती है। इसमें कहा गया है कि भाषा का चयन राज्यों, क्षेत्रों और जाहिर तौर पर स्वयं बच्चों द्वारा किए गए विकल्पों के आधार पर होगा; बशर्ते तीन में से दो भाषाएं भारत की स्वदेशी हों।

आरएसएस का संस्कृत पढ़ाने का सुझाव स्कूलों तक ही सीमित नहीं है। संघ ने सुझाव दिया है कि संस्कृत को माध्यमिक और उच्च शिक्षा में दूसरी भाषा के रूप में पढ़ाया जाना चाहिए, जिसमें गुजराती पहली भाषा होगी और सरकार तय कर सकती है कि तीसरी भाषा क्या होगी। उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि जिन छात्रों ने 11वीं और 12वीं क्लास में संस्कृत नहीं ली है, उन्हें बीएएमएस (बैचलर ऑफ आयुर्वेदिक मेडिसिन एंड सर्जरी) में प्रवेश लेने से मना किया जाना चाहिए।

सूत्रों के अनुसार जुलाई में आरएसएस और राज्य सरकार के बीच प्रस्तावित बैठक में इस पर क्रियान्वयन को लेकर चर्चा होनी है। उसके बाद इसे लागू कर दिया जाएगा।

हरियाणा का मामला

हरियाणा में 2014 में बीजेपी की सरकार बनी। 2015 में तत्कालीन शिक्षा मंत्री राम विलास शर्मा ने घोषणा की कि राज्य में संस्कृत को अनिवार्य बनाया जाएगा। इसके बाद बात आई-गई हो गई। लेकिन जब संघ की ओर से हरियाणा का प्रभारी विनोद तावड़े को बनाया गया तो राज्य में संस्कृत को आगे बढ़ाने का काम शुरू हो गया। हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड भारत का पहला ऐसा बोर्ड है, जिसने हरियाणा में 42 संस्कृत स्कूलों को मान्यता दी और उनका पाठ्यक्रम तय कर दिया। संस्कृत पढ़ाने वाले शिक्षकों को सैलरी सरकारी ग्रांट के तहत मिलती है। संस्कृत में पूर्व मध्यमा और उत्तर मध्यमा से पढ़ने वाले छात्रों को 10वीं और 12वीं पास का प्रमाणपत्र मिलता है। 

आरएसएस, दरअसल, यही नीति हर राज्य में चाहता है। जब 10वीं और 12वीं के संस्कृत वाले छात्रों के सर्टिफिकेट को मान्यता मिलने लगेगी तो आगे चलकर डिग्री स्तर पर इसे लागू करने की बात की जाएगी और अंततः इसे रोजगार से जोड़ा जाएगा।

हरियाणा में हर साल 15 दिनों का संस्कृत पखवाड़ा हर स्कूल में अनिवार्य रूप से मनाया जाता है। राज्य में संस्कृत अकादमी भी है। इस तरह संघ के निर्देश पर हरियाणा में जिस तरह संस्कृत आगे बढ़ रही है, उसी तरह वो अन्य राज्यों में भी चाहती है। यह अलग बात है कि स्कूलों में तमाम छात्रों की पहली पसंद अंग्रेजी के बाद हिन्दी भाषा होती है। संघ चाहता है कि दो भाषाएं संस्कृत और हिन्दी अनिवार्य कर दी जाए और अंग्रेजी छात्र के विवेक पर छोड़ दी जाए।

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