1977 के लोकसभा चुनाव के बाद एक शख़्स इंदिरा गाँधी को लेकर बहुत चिंतित था। यह वही शख़्स था जिसने केंद्र में कांग्रेस के तीस साल के अनवरत शासन के अंत की पटकथा लिखी थी यानी जयप्रकाश नारायण। उनकी चिंता थी कि उनके बड़े भाई जैसे जवाहरलाल नेहरू की बेटी और उनकी भतीजी इंदु अब घर ख़र्च कैसे चलायेगी। उन्हें पता था कि नेहरू-गाँधी परिवार ने अपनी सारी सम्पत्ति देश के नाम कर दी है। इंदिरा गाँधी से बदला लेने को आतुर जनता पार्टी के तमाम नेताओं को उन्होंने आगाह किया और इंदिरा गाँधी से मिलने उनके घर गये।
इस मुलाक़ात के बारे में 2017 में बीबीसी हिंदी वेबसाइट में एक लेख छपा था जो अभी भी देखा जा सकता है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के क़रीबी और मौजूदा समय में इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केंद्र, दिल्ली के निदेशक, वरिष्ठ पत्रकार राम बहादुर राय ने इस मुलाक़ात के बारे में बीबीसी को बताया था, “जे.पी. ने इंदिरा से पूछा कि अब तुम प्रधानमंत्री नहीं हो तो तुम्हारा ख़र्च कैसे चलेगा? इंदिरा ने जवाब दिया कि नेहरू जी की पुस्तकों की रॉयल्टी से उनका जीवन यापन हो जायेगा।”
लेकिन भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी चुनावी रैलियों में बता रहे हैं कि इंदिरा गाँधी की छोड़ी गयी भारी-भरकम सम्पत्ति पर टैक्स न देना पड़े इसलिए राजीव गाँधी ने 1985 में ‘विरासत टैक्स’ हटा दिया था। दरअसल, वे चुनावी रैलियों में दावा कर रहे थे कि कांग्रेस की सरकार बनने पर पैतृक सम्पत्ति पर ‘विरासत टैक्स’ लगाया जाएगा। कथित मुख्यधारा मीडिया उनका भोंपू बनकर इसे प्रचारित भी कर रहा था। लेकिन सोशल मीडिया में यह बात उजागर कर दी कि कांग्रेस घोषणापत्र में विरासत टैक्स के बारे में कुछ भी नहीं कहा गया है और भारत में जो विरासत टैक्स लगता था उसे राजीव गाँधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने ही ख़त्म किया था। इस रहस्योद्घाटन के बाद उन्होंने बैकफ़ुट पर जाने के बजाय राजीव गाँधी की मंशा पर सवाल उठाते हुए हमले का नया मोर्चा खोल दिया।
ज़ाहिर है चुनावी लाभ के लिए देश पर शहीद हुए दो प्रधानमंत्रियों, इंदिरा गाँधी और राजीव गाँधी को संदिग्ध बनाने से मोदी जी को कोई परहेज़ नहीं है। उनकी बात मानी जाये तो लगता है कि इंदिरा गाँधी ने करोड़ों की संपत्ति छोड़ी होगी जिसके लिए राजीव गाँधी ने विरासत टैक्स ख़त्म किया। इस बहाने वे गाँधी परिवार को भ्रष्ट भी साबित करना चाहते हैं जिसके पास काफ़ी सम्पत्ति थी, लेकिन इतिहास के दो-चार पन्ने खोलते ही आरएसएस की शाखाओं में पढ़ाया गया यह पाठ हास्यास्पद नज़र आने लगता है।
जयप्रकाश नारायण यूँ ही इस बात से चिंतित नहीं थे कि इंदिरा गाँधी प्रधानमंत्री न रहने पर घर खर्च कैसे चलायेंगी। वे नेहरू जी के बेहद निकट थे और एक ज़माने में परिवार के हिस्सा जैसे थे। उनकी पत्नी प्रभावती देवी और इंदिरा जी की माँ कमला नेहरू की दोस्ती जगज़ाहिर थी। जे.पी. से परिवार की आर्थिक हालत छिपी नहीं थी जिसने अपनी तमाम चल-अचल संपत्ति आज़ादी के पहले और आज़ादी के बाद देश पर न्योछावर कर दी थी। उनका चिंता करना घर के एक बुज़ुर्ग की चिंता जैसी थी।
इलाहाबाद के मशहूर वकील मोतीलाल नेहरू देश के उन चुनिंदा रईसों में थे जो सबसे पहले महात्मा गाँधी से प्रभावित हुए और 1920 के असहयोग आंदोलन के साथ हो लिए थे। उनका घर यानी ‘आनंद भवन’ धीरे-धीरे स्वतंत्रता आंदोलन का केंद्र बन गया और इस दशक में आज़ादी के आंदोलन से जुड़े तमाम बड़े फ़ैसले इसी घर में लिए गये। 1930 में इस भवन को मोतीलाल नेहरू ने औपचारिक रूप से कांग्रेस को दे दिया और वह अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी का राष्ट्रीय मुख्यालय बन गया। अब इसका नाम ‘स्वराज भवन’ रख दिया गया। मोतीलाल नेहरू के निधन के बाद 24 नवंबर 1931 को जवाहर लाल नेहरू ने स्वराज भवन को एक न्यास बनाकर देश को समर्पित कर दिया। यह भवन हमेशा अंग्रेज़ों के निशाने पर रहा और 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान इसे ज़ब्त भी कर लिया गया था। तब वहाँ पहरे के लिए फौजी टुकड़ी तैनात की गयी थी।
स्वराज भवन कांग्रेस पार्टी को दिये जाने के बाद नेहरू परिवार बग़ल में ही बनाये गये नये भवन में चला गया जिसे अब ‘आनंद भवन’ नाम दे दिया गया। इंदिरा गाँधी का जन्म 1917 में स्वराज भवन में हुआ था और उनकी शादी 26 मार्च 1942 को आनंद भवन में हुई। इस भावनात्मक जुड़ाव के बावजूद उन्होंने आनंद भवन को 14 नवंबर 1969 को राष्ट्र को समर्पित कर दिया।
जवाहरलाल नेहरू स्मारक निधि की देख-रेख में आनंद भवन को संग्रहालय में तब्दील कर दिया गया। ऐसा करते हुए उन्होंने नेहरू की राह ही पकड़ी थी जिन्होंने 3 सितंबर 1946 को अंतरिम सरकार में शामिल होने का फैसला किया तो आनंद भवन को छोड़ कर अपनी सारी संपत्ति देश को दान कर दी थी।
यानी इंदिरा गाँधी के रहते इस परिवार के पास कोई पैतृक आवास नहीं रह गया था। दोनों आवास देश को समर्पित कर दिये गये थे। रही बात नक़दी की तो नेहरू की हालत क्या थी, इसके तमाम दस्तावेज़ी प्रमाण उपलब्ध हैं। नेहरू जी के सचिव एम.ओ मथाई ने अपनी किताब ‘रेमिनिसेंसेज़ ऑफ़ नेहरू एज’ में लिखा है कि 1946 के शुरू में उनकी जेब में हमेशा 200 रुपए होते थे, लेकिन जल्द ही यह पैसे ख़त्म हो जाते थे क्योंकि नेहरू यह रुपए पाकिस्तान से आए परेशान शरणार्थियों में बाँट देते थे। इससे परेशान होकर मथाई ने उनकी जेब में रुपए रखवाने ही बंद कर दिये थे। ऐसे में नेहरू सुरक्षाकर्मियों से उधार माँगने लगते थे।
एक और चर्चित घटना यह है कि नेहरू जी की बहन विजय लक्ष्मी पंडित शिमला सर्किट हाउस में ठहरीं जिसका बिल ढाई हज़ार रुपये आया। तब हिमाचल नहीं बना था, शिमला पंजाब का हिस्सा था। पंजाब के मुख्यमंत्री भीमसेन सच्चर थे। उन्होंने सीधे नेहरू को पत्र लिख दिया कि इस बिल को किस मद में डाला जाये? नेहरू ने उन्हें लिखा कि इसका भुगतान वे स्वयं करेंगे लेकिन इतने पैसे नहीं हैं कि एक साथ दे सकें। नेहरू जी ने पाँच किस्तों में पाँच महीने तक पाँच सौ रुपये के चेक भेजे।
साफ़ है कि नेहरू जी के पास न घर बचा था और न नकदी। यही हाल इंदिरा गाँधी का भी था। उनके पास जो सोने-चाँदी के आभूषण थे, वह सभी उन्होंने 1962 के भारत-चीन युद्ध के समय राष्ट्रीय रक्षा कोष में दान कर दिया था। नेहरू-गाँधी परिवार का सम्पत्ति के बारे में क्या दृष्टिकोण रहा है, इसकी गवाही बिजनौर का सरकारी कोषागार देता है जहाँ पचास साल से इंदिरा गाँधी की 73 किलो चाँदी रखी हुई है लेकिन परिवार ने कभी इस पर दावा नहीं किया।
दरअसल, 1972 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी निर्माणाधीन कालागढ़ बांध का दौरा करने गयी थीं। वहाँ स्थानीय निवासियों ने उन्हें चाँदी से तौला था। इंदिरा जी इस चाँदी को अपने साथ नहीं ले गयीं और प्रशासन ने इसे कोषागार में रखवा दिया।
साल 2002 में जिला प्रशासन ने इस पर दावा करने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक को लिखा था लेकिन रिजर्व बैंक ने इसे निजी संपत्ति बताकर कब्जा लेने से इनकार कर दिया।
स्वाभाविक रूप से राजीव गाँधी को विरासत में न स्वराज भवन मिल सकता था और न आनंद भवन। जवाहरलाल नेहरू या इंदिरा गाँधी के पास कहीं और ज़मीन-जायदाद रही हो, ऐसी भी जानकारी नहीं है। फिर किस टैक्स से बचने के लिए राजीव गाँधी ने विरासत टैक्स ख़त्म किया होगा, इसका रहस्य सिर्फ़ प्रधानमंत्री मोदी को पता होगा!
सच ये है कि कांग्रेस ने ज़मींदारी उन्मूलन से लेकर बैंकों के राष्ट्रीयकरण तक तमाम ऐसे काम किये जिससे 1980 तक देश में ग़ैर-बराबरी तेज़ी से घटी। लेकिन बीते दस वर्षों में मोदी जी ने जिस तरह से अपने क़रीबी कॉरपोरेट मालिकों को छूट दी है उसने एक फ़ीसदी लोगों के पास देश की चालीस फ़ीसदी संपत्ति पहुँचा दी है। आज ग़ैरबराबरी अंग्रेज़ी राज से बदतर हो चली है। राहुल गाँधी इसी पर सवाल उठा रहे हैं जिससे मोदी जी परेशान हैं। दस साल के शासन के बावजूद वे अपनी उपलब्धियाँ गिनाने की हालत में नहीं हैं तो कांग्रेस घोषणापत्र को लेकर तमाम झूठ फैला रहे हैं। जिस भारत का ध्येय वाक्य ‘सत्यमेव जयते’ हो, उसके प्रधानमंत्री की यह हालत अफ़सोसनाक है। इंदिरा गाँधी और राजीव गाँधी जैसे शहीदों पर झूठ के सहारे किया जाने वाला हमला इस अफ़सोस को और बढ़ा देता है।