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पीपीई किट घोटाला: ख़बर बीजेपी से जुड़ी थी, इसलिए ‘ग़ायब’ कर गया राष्ट्रीय मीडिया?

पीपीई किट घोटाला: ख़बर बीजेपी से जुड़ी थी, इसलिए ‘ग़ायब’ कर गया राष्ट्रीय मीडिया?

हिमाचल में पीपीई किट घोटाले का मामला हो या गुजरात में नकली वेंटिलेटर का। इन दोनों बड़ी ख़बरों पर राष्ट्रीय मीडिया में बहस क्यों नहीं हुई। यह एक बड़ा सवाल है। 

कोरोना महामारी के इस संकट में भी कुछ लोगों ने  आपदा में ‘अवसर’ खोज लिया है। हिमाचल में इन दिनों पीपीई किट घोटाले की जबरदस्त चर्चा है और अब यह चर्चा राज्य से निकलकर राष्ट्रीय स्तर पर आ गई है। लेकिन राष्ट्रीय मीडिया ने इस मामले में चुप्पी साधी हुई है। लेकिन क्यों, इस पर चर्चा बाद में, पहले आपको मामला क्या है, ये बताते हैं। 

हिमाचल प्रदेश और देश भर में इन दिनों कथित रिश्वत मांगने की एक ऑडियो क्लिप वायरल हो रही है। इस ऑडियो क्लिप में हिमाचल प्रदेश के स्वास्थ्य महकमे के निदेशक डॉ. अजय गुप्ता की किसी एक दूसरे शख़्स के साथ बातचीत हो रही है। डॉ. अजय गुप्ता जिस शख़्स से बात कर रहे हैं, उसे एक बीजेपी नेता का क़रीबी बताया गया है।

ऑडियो क्लिप में 5 लाख रुपये देने की बात सुनी जा सकती है। ऑडियो क्लिप वायरल होने के बाद राज्य में सियासी भूचाल आ गया है और बात यहां तक बढ़ गई है कि हिमाचल बीजेपी के अध्यक्ष डॉ. राजीव बिंदल को अपने पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा है।

इस मामले में एक और गंभीर बात है। वह बात यह है कि अंग्रेजी अख़बार टाइम्स ऑफ़ इंडिया ने बताया है कि डॉ. अजय गुप्ता की कॉल डिटेल से पता चला है कि गिरफ़्तारी वाले दिन वह बीजेपी ऑफ़िस के पास में ही मौजूद थे। कांग्रेस ने पूछा है कि गुप्ता बीजेपी ऑफ़िस में किससे मिले थे। 

अब सवाल यह है कि इतनी बड़ी ख़बर पर राष्ट्रीय मीडिया चैनलों पर कहीं कोई चर्चा क्यों नहीं हुई। पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान पर पिछले पांच साल से लगातार चर्चा कर रहे राष्ट्रीय मीडिया ने अपने देश की इतनी बड़ी ख़बर को ‘मिस’ हो जाने दिया। कुछ न्यूज़ पोर्टलों को छोड़कर ये ख़बर राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा नहीं पा सकी। लेकिन क्यों

ख़बर का सबूत यानी ऑडियो क्लिप मौजूद है। केंद्र और राज्य में सत्ताधारी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष को इस्तीफ़ा तक देना पड़ गया है। सीधे-सीधे तौर पर भ्रष्टाचार का मामला है। लेकिन राष्ट्रीय मीडिया इस ख़बर को पी गया।

गुजरात में नकली वेंटिलेटर!

इसके अलावा बीजेपी शासित राज्य गुजरात के दो मामले हैं। गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रुपाणी ने जिन मशीनों को वेंटिलेटर बताकर उद्घाटन किया था, बाद में वे सिर्फ़ सांस देने वाले उपकरण निकले। सच्चाई सामने आने के बाद राज्य सरकार को भारी शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा। कांग्रेस के मुताबिक़, इस मामले में घोटाले की बू आती है। इसके अलावा गुजरात में N95 मास्क बेचने के मामले में भी बीजेपी सरकार पर मुनाफाखोरी के आरोप लगे हैं। 

ये दोनों ख़बरें भी राष्ट्रीय मीडिया में जगह नहीं बना सकीं। सवाल फिर वही, लेकिन क्यों सांस देने वाले उपकरण का राज्य के मुख्यमंत्री वेंटिलेटर कहकर प्रचार करें और उनसे क्या सवाल भी न पूछे जाएं। 

सामान्य राजनीतिक ज्ञान रखने वाले व्यक्ति को भी यह समझ आ जाएगा कि इन ख़बरों को राष्ट्रीय मीडिया ने क्यों नहीं छुआ या छुआ भी तो सिर्फ़ रस्म अदायगी की। जबकि ये तीनों ही ख़बरें महामारी के इस दौर में पत्रकारिता के सिद्धांतों के मुताबिक़ सबसे अहम थीं और इन्हें चैनलों पर ठोककर चलाया जाना चाहिए था और अख़बारों में स्याही ख़त्म होने तक लिखा जाना चाहिए था। लेकिन ऐसा नहीं हो सका। 

सोचिए कि अगर ऐसा ही कुछ विपक्षी दलों की सरकारों में हुआ होता तो अब तक क्या इसी राष्ट्रीय मीडिया ने आसमान सिर पर नहीं उठा लिया होता। मतलब यह कि सब कुछ शीशे की तरफ साफ है कि किस मुद्दे पर पर बहस करनी है और किस पर नहीं

बहरहाल, हिमाचल और गुजरात के मामले को लेकर सोशल मीडिया पर जोरदार चर्चा है और बीजेपी को जवाब देते नहीं बन रहा है। लेकिन लोग राष्ट्रीय मीडिया चैनलों से सवाल पूछ रहे हैं कि वे इन ख़बरों पर क्यों मुंह सिलकर बैठे हुए हैं 

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