+
एक दिन में सेंसेक्स के 700 अंक टूटने का क्या है मतलब?

एक दिन में सेंसेक्स के 700 अंक टूटने का क्या है मतलब?

देश की अर्थव्यवस्था बदहाल है और तमाम इन्डीकेटर इसकी पुष्टि करते हैं। पर सरकार यह मानने को तैयार नहीं है। क्या है मामला?

बंबई स्टॉक एक्सचेंज का संवेदनशील सूचकांक यानी सेँसेक्स मंगलवार को 770 अंक टूट कर 36,563 अंक पर बंद हुआ, यानी दिन भर में 2 प्रतिशत नीचे गिरा। क्या है इसका मतलब पर्यवेक्षकों का कहना है कि इसकी मुख्य वजह एक दिन पहले जारी वह आँकड़ा है, जो यह बताता है कि 8 कोर सेक्टर में विकास दर सिर्फ़ 2.1 प्रतिशत है। पिछले साल इसी दौरान वृद्धि दर 7.3 प्रतिशत थी। ऑटो, मैन्युफैक्चरिंग, कृषि, उपभोक्ता उत्पाद, रियल इस्टेट, कंस्ट्रक्शन यानी निर्माण, इन सभी क्षेत्रों में गिरावट दर्ज की गई है। 

लेकिन केंद्र सरकार इसे शायद न माने। मोदी सरकार आर्थिक मुद्दों पर तथ्यों को छुपाती रही है और लगातार भ्रम फैलाती रही है। पर सत्तारूढ़ दल बीजेपी अब इस मुद्दे पर खुले आम झूठ बोल रही है। पार्टी ने 26 अगस्त को अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल से ट्वीट किया, वैश्विक मंदी के दौरान भारत सबसे तेज़ी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था बनी हुई है। इस ट्वीट में यह भी बताया गया है कि सरकार ने अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए क्या कदम उठाए हैं। 

यह सफ़ेद झूठ इसलिए है कि सबसे तेज गति से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था का तमगा पिछले साल ही छिन गया, जब चीन इस मामले में भारत से आगे निकल गया। बीजेपी ने जिस दिन यह ट्वीट किया, उसी दिन सकल घरेलू उत्पाद का आँकड़ा सरकारी एजेन्सी ने ही जारी किया। यह बताया गया कि अप्रैल-जून तिमाही में जीडीपी वृद्धि दर 5 प्रतिशत पर पहुँच गई है जो छह साल में न्यूनतम है। दूसरी ओर, इसी दौरान चीन का सकल घरेलू उत्पाद 6.2 प्रतिशत की दर से बढ़ाया। 

तमाम इन्डीकेटर यह बताते हैं कि अर्थव्यवस्था बुरी स्थिति में है। सरकार इसे किसी कीमत पर मानने को तैयार नहीं है। सवाल यह है कि यदि सरकार इसे मानेगी नहीं तो इससे बाहर निकलने की कोशिश कैसे करेगी। 

बढ़ती बेरोज़गारी

इसके साथ ही सेंटर फ़ॉर मॉनीटरिंग इंडियन इकॉनमी यानी सीएमआई ने बताया कि बेरोज़गारी की दर बढ़ कर 8.2 प्रतिशत हो गया, शहरों में बेरोज़गारी की दर 9.4 प्रतिशत दर्ज की गई। 

विदेशी निवेशकों ने निकाले पैसे

भारतीय अर्थव्यवस्था जिस तेज़ी से गिर रही है, उससे यहाँ काम करने वाली विदेशी कंपनियों और निवेशकों में भी बेचैनी है। इसे इससे समझा जा सकता है कि विदेशी निवेशकों ने भारतीय अर्थव्यवस्था से पैसे निकालना शुरू कर दिया है। उन्होंने अगस्त महीने में 5,920 करोड़ रुपए निकाल लिए। 

बिस्कुट बनाने वाली कंपनी से लेकर कार बनाने वाली कंपनी तक बदहाल है, उनके उत्पादों की बिक्री घट रही है, उनका मुनाफ़ा कम हो रहा है, उन्हें घाटा हो रहा है। इन तमाम कंपनियों से सरकार से गुहार की है कि वह उनके लिए कुछ करे। 

टूटता रुपया

भारतीय मुद्रा रुपया पूरे एशिया में सबसे कमज़ोर मुद्रा साबित हुआ है। अगस्त महीने में डॉलर की तुलना में इसका 3.65 प्रतिशत अवमूल्यन हुआ, जो छह साल में सबसे तेज़ अवमूल्यन है। एक डॉलर की कीमत 71.98 रुपये तक हो गई है। अंतरराष्ट्रीय ब्रोकरेज कंपनी नोमुरा का कहना है कि सरकार की नीतियों और उसके उठाए कदमों में लोगों का अविश्वास और इक्विटी के ख़राब होने का यह सबूत है। 

5 खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था

इस बदहाल अर्थव्यवस्था के दौर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि 2025 तक भारत 5 खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बन जाएगा। यही बात वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भी दुहराई। जब इस पर कुछ लोगों ने सवाल उठाए तो मोदी ने ऐसे लोगों का मजाक उड़ाया और कहा कि ये लोग 'पेशेवर निराशावादी' (प्रोफ़ेशनल पेसीमिस्ट) हैं।  

अंतरराष्ट्रीय संस्था 'अर्नस्ट एंड यंग' (ईवाई) ने अध्ययन कर बताया है कि 5 खरब डॉलर अर्थव्यवस्था बनने के लिए ज़रूरी है कि भारत अगले 5 साल तक हर साल 9 प्रतिशत की दर से विकास करे। उसका कहना है कि यदि भारत का जीडीपी हर साल 9 प्रतिशत की दर से बढ़े तो वित्तीय वर्ष 2021 में भारतीय अर्थव्यवस्था 3.3 खरब डॉलर, 2022 में 3.6 डॉलर, 2023 में 4.1 खरब डॉलर 2024 में 4.5 खरब डॉलर और 2025 में 5 खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बन सकती है। 

लेकिन सच्चाई तो यह है कि सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि की दर लगातार गिरती जा रही है और यह फ़िलहाल 5 प्रतिशत पर है। 

अब सवाल यह है कि आगे क्या होगा इस स्थिति से उबरने का तरीका क्या हो सकता है सरकार क्या करे कि अर्थव्यवस्था पटरी पर लौट आए लेकिन इलाज की व्यवस्था तो तब हो जब रोग का पता लगे या कम से कम यह माना जाए कि रोग है। लेकिन सरकार तो यह मान ही नहीं रही है कि अर्थव्यवस्था में कहीं कुछ गड़बड़ है। जीडीपी वृद्धि दर 5 प्रतिशत से 9 प्रतिशत पर ले जाने की बात करे तब तो 5 खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने पर काम हो। लेकिन सरकार यह मानने को तैयार ही नहीं है कि अर्थव्यवस्था धीमी चल रही है। इसके उलट प्रधानमंत्री ऐसा कहने वालों पर हमला करते हुए उन्हें पेशेवर निराशावादी (प्रोफेशनल पेसीमिस्ट) बताते हैं। असली संकट यहाँ है। 

सत्य हिंदी ऐप डाउनलोड करें